कहाँ रहे वो पुरुष संत सरीखे,
कहाँ उनका वो साधु ह्रदय !
कहाँ आँखों में निश्छलता वो ,
कहाँ सद्पथ पर उनकी सुर लय!!
शुचिता से कोसों दूर ,
'नूतन' वे नर तो हुए कपूर ,
नर आज के तो अत्याचारी हैं ,
काम वासना में तप्त ह्रदय ,जिनका
जिनको नारी उत्पीड़न की बीमारी है।
जो नारी शक्ति का करते दुर्पयोग,
चिंतन रखते ,नारी बस भोग्य योग ,
जगत जननी का मूल्य न जानें,
उनकी शक्ति को न पहचानें ,
विवेक हीन,प्रज्ञामलीन ,
करें क्या उनकी लाचारी है ।
करके नारी से व्यभिचार,
खोलते स्वयं हेतु पतन द्वार ,
जानकर जो बने नासमझ,
इनके कुकृत्यों के बोझ तले,
धरती दबती बेचारी है ।