रेल यात्रा का विषय देखकर मुझे वो घटना याद आ गयी जो आपसब के साथ साझा करने का मन किया।मेरे पापा के साथी प्रोफेसर थे वर्मा अंकल( अब नहीं रहे )वो अपनी पत्नी के साथ रेलयात्रा कर रहे थे।आंटी जी बैठी थीं और वो ,अमूमन जैसा बहुत लोग करते ट्रेन के दरवाजे के पास खडे़ थे।आंटी देख रही थीं कि वो खडे़ हैं। कुछ देर बाद वो शायद वाशरूम चले गये आंटी ने देखा वर्मा जी दिखे नहीं।वहां खडे़ लड़के किसी संदर्भ में कहे कि चाचा जी गिर गये।वो अपनी किसी बात के संदर्भ में कह रहे थे ।आंटी को लगा वर्मा जी ट्रेन के दरवाजे के पास खडे़ थे वो नीचे गिर गये।वो चिल्लाकर दौडी़ं और बदहवास सी ट्रेन के दरवाजे से कूद पडी़ं कि हाय वर्मा जी गिर गये।
अंकल जी जब आये तो शोरशराबा मचा था कि एक औरत ट्रेन से कूद गयी।वर्मा जी ने देखा कि वो सीट पर नहीं।फौरन चेन खींचकर गाडी़ रुकवाई गयी।वर्मा जी और बहुत लोग उतरे और जाकर देखा तो आंटी के एक पैर की केवल एडी़ रह गयी थी बाकी हिस्सा कट गया था ।वर्मा जी हक्क से रह गये।उन्हें नज़दीकी अस्पताल ले गये ।बाल्टी भर खून गिर चुका होगा।हम सब बाद में उनके घर उन्हें देखने गये।उनकी बिटिया ससुराल में थी ,दोनों बेटे बाहर।बिचारे वर्मा जी काॅलेज जाने से पहले सब काम करते ।खाना बनाते,सफाई करते ,नौकर रखने के वो पक्ष में न थे ।नौकर रखकर अपने लिये मुसीबत मोल कौन ले ।खाना बनाकर उनकी थाली उनके पास रख जाते ,गेट में बाहर से ताला डालकर चाभी पडोसी को देकर जाते कि देखे रहना जरा।घर खुला भी न छोडा़ जा सकता था।उन दिनों बहुत चोरियां होती थीं।
उनका ट्रेन का सफर उनके लिये बहुत कष्टदायी सफर हो गया था।हमारा उनके यहां बहुत आना जाना था।पहले हम जाते तो वह चाय पानी ले आतीं।
अब जाते तो वह कहतीं आंखों में आंसू भर कि फ्रिज में मीठा रखा है ,निकाल कर खा लो,रसोई से ग्लास लेकर पानी पी लो।चाय बनाकर पी लो ।नहीं खाया ,पिया तो मुझे बहुत खलेगा ।मैं सोचूंगी कि अपने पैर की वजह से आप सब का स्वागत न कर पाई।एक बाद में पैर वाली बैसाखी ले ली थी।