Piyush mohan
मैं एक चित्रकार व साहित्यकार हूं।
ब्लाइंड
प्रस्तुत उपन्यास" ब्लाइंड: आनंद की खोज एक पीरियड ड्रामा है जो वर्ल्ड वार के समय घटित हुआ था। जिसके विरोध में साहित्यकारों, चित्रकारों, संगीतकारों ने मिलकर एक आंदोलन शुरू किया था जिसे दादावाद नाम दिया गया था। इसका नायक एक बाइसेक्सुअल चरित्र है जिसे ब
ब्लाइंड
प्रस्तुत उपन्यास" ब्लाइंड: आनंद की खोज एक पीरियड ड्रामा है जो वर्ल्ड वार के समय घटित हुआ था। जिसके विरोध में साहित्यकारों, चित्रकारों, संगीतकारों ने मिलकर एक आंदोलन शुरू किया था जिसे दादावाद नाम दिया गया था। इसका नायक एक बाइसेक्सुअल चरित्र है जिसे ब
गांव
गांव वह सुहानी सी पुरवाई , लहलहाते खेत, झूमती अमराई। क्या देखा है आपने गांव? जहां अल्हड़- सी प्रकृति, नव यौवना की भांति मुस्काई। दूर गायों की घंटियों की रुनझुन , लौटते ग्वाल ,उछलते जानवरो के निनाद , जैसे गाते कोई गीत- बधाई । जलते चुल्हो के उठते
गांव
गांव वह सुहानी सी पुरवाई , लहलहाते खेत, झूमती अमराई। क्या देखा है आपने गांव? जहां अल्हड़- सी प्रकृति, नव यौवना की भांति मुस्काई। दूर गायों की घंटियों की रुनझुन , लौटते ग्वाल ,उछलते जानवरो के निनाद , जैसे गाते कोई गीत- बधाई । जलते चुल्हो के उठते
कॉलेज गोइंग लड़कियां
(कॉलेज गोइंग लड़कियां) यह कॉलेज गोइंग लड़कियां! कितनी बेलौस, बेतरतीब ,बे खौफ! चलती नहीं, उड़ती है! अपने तमन्नाओं के पंख पर बेहिसाब। आंखो में सैंकड़ों ख़्वाब। परम आधुनिका। हाथों में लिए स्मार्ट फोन पर उंगलियां फिराती, अधखिली-सी! हंसती, मुस्काती। राह च
कॉलेज गोइंग लड़कियां
(कॉलेज गोइंग लड़कियां) यह कॉलेज गोइंग लड़कियां! कितनी बेलौस, बेतरतीब ,बे खौफ! चलती नहीं, उड़ती है! अपने तमन्नाओं के पंख पर बेहिसाब। आंखो में सैंकड़ों ख़्वाब। परम आधुनिका। हाथों में लिए स्मार्ट फोन पर उंगलियां फिराती, अधखिली-सी! हंसती, मुस्काती। राह च