भाग-25
नील का जीवन अब बदलाव की ओर अग्रसर था ,पर इस बदलाव में सिर्फ खुशियां ही नहीं थी बहुत कुछ गलत भी घटित होने वाला था। नील के चित्रों की आय ने जॉनथन को शराबी बना दिया ।पहले तो जॉनथन यह काम चोरी छिपे करता था पर अब नील उसका प्रत्यक्ष गवाह भी बनने लगा।
नील ने देखा कि उसने कितना बड़ा मुखौटा ओढ़ रखा है। किस तरह वह लोगों को धर्म का डर दिखाकर अपना मतलब साधता है ।उसने जॉनथन की ऐय्याशियों को महसूस किया ।रात के अंधेरे में अक्सर वह जॉनथन की महिला मित्रों की आवाजें सुनता जो उसके कमरे से आती। इन आवाजों में हमेशा कामुकता की गंध समाई रहती। प्रारंभ में उसे विश्वास नहीं हुआ लेकिन जब एक दिन जॉनथन शराब के नशे में गिर पड़े तो वह उन्हें छोड़ने उनके कमरे तक गया ।वहां एक महिला को आपत्तिजनक अवस्था में देख उसका अविश्वास दूर हो गया ।
अब तो जॉनथन उसके सामने ही यौन व्यापार में लिप्त रहने लगे और नील को इसके लिए प्रेरित करते। एक दिन जॉनथन ने इसके लिए नील पर दबाव डाला तो वह रोने लगा। नील के लिए सर्वथा यह नवीन अनुभव था ।धर्म की आड़ में चलने वाले यौन- व्यापार ने उसके मन में घृणा भर दी थी ।चर्च के पाखंड पूर्ण दिखावे ,पादरी ,कार्डिनल, पॉप से नफरत सी होने लगी। उन्हें वह यौन व्यापार में लिप्त अपराधियों से भी बुरे दिखने लगे ,क्योंकि वह खुद को देवत्व का प्रतीक भी मानते और ईश्वर के नाम पर दंड देने का विधान भी रचते जबकि स्वयं वे इस गंदगी में गर्दन तक फंसे हैं ।सही मायने में वे ईशा के आदर्शों को भूल चुके हैं और बाइबिल धर्म ग्रंथों का प्रयोग अपने स्वार्थ-लिप्सा के लिए करने लगे हैं।
जॉनथन जब अपनी महिला मित्रों के साथ यौन क्रियाओं में संलिप्त होता तो नील बैठकर अपनी पेंटिंग के विषय में सोचता।
जॉनाथन ने तो एक दिन हद ही कर दी ।उसने नील को खुद की उत्तेजना को शांत करने के लिए दबाव डाला ।नील सहम गया। ना चाहते हुए भी उसे जॉनथन का सहयोग करना पड़ा। उस दिन वह नशे में धुत था ,अंदर घुसते ही वह गिर पड़ा।नील उसे उठाने के लिए दौड़ा, देखा तो उसके माथे से खून बह रहा था। नील ने उसे बिस्तर पर लिटाया, खून साफ कर पट्टी बांध ी। जॉनथन आत्मग्लानि में उलझा पड़ा था।
" मुझे माफ कर दो बेटे!" उसने शर्मिंदा होते हुए कहा ।
नील कुछ ना बोला उसने जॉनथन के कपड़े बदलने शुरू कर दिए जो कि खून से भीग गए थे ।
"नील तुम कुछ बोलते क्यों नहीं? क्या तुम्हें यह सब बुरा नहीं लगता?"
" मैं कर भी क्या सकता हूं!" नील ने सपाट-सा उत्तर दिया। "आप सो जाइए, रात काफी हो चुकी है!" वह जाने लगा ।
"नील।"जॉनथन ने उसका हाथ पकड़ लिया ।"आज मेरे पास रुक जाओ, मेरे लिए।" नील ने देखा उसका चेहरा आंसुओं से भीगा है, माथे पर दर्द की शिकन थी ।
वह रुक गया ,कुछ ही पल बाद उसे नीद आने लगी ।वह जॉनथन के बगल में लेट गया। नील के स्पर्श ने शराब पिए जॉनथन को भड़का दिया। करुणा ने अब उत्तेजना का रूप धारण कर लिया। मासूम नील के लिए सब कुछ अप्रत्याशित था। उसने विरोध किया परंतु वह हार गया ।जॉनथन ने उस पर शारीरिक ताकत के साथ भावनात्मक दबाव डाला। संवेदनशील नील उसके झांसे में आ गया ।फिर तो वह जॉनथन की जरूरत ही बन गया ।
"इस प्रकार नील ने प्रौढ़ होते बचपन और किशोरावस्था में यौन- उत्कंठाओं का जो रूप देखा उसे सामान्य त्यौन-व्यवहार को लेकर घृणा सी हो गई ।"
जॉनथन के अनैतिक दबाव के कारण वह बचपन में ही बड़ा हो गया। इन सबके साथ ही वह कला जगत का एक उभरता नाम बनता जा रहा था ।बचपन में घृणा पाने वाला नील लोगों का चहेता बनने लगा। जॉनथन उसका दोहन करता और पैसे बटोरता।
अब नील युवा हो चुका था पर जॉनथन का नियंत्रण उस पर अभी भी था। उसे महसूस होता कि जॉनथन का साथ उसे छोड़ देना चाहिए पर नील को अपने पुराने दिन याद आ जाते जब उसने नील की मदद की थी। पर जॉनथन की अपेक्षाएं नील से बढ़ती जा रही थी। जानथन को हमेशा भय बना रहता कि नील उसे छोड़कर चला ना जाए, इसके लिए वह नील के भोलेपन को तरह तरह के धार्मिक आडंबर का डर दिखाता। उसने नील के अंदर एक हीन भावना भरने की कोशिश की जिससे कि वह खुद को कभी संपूर्ण न समझे।
जॉनथन के लिए वह सोने की अंडे देने वाली मुर्गी के समान था। नील को भी जॉनथन के इस भावना का एहसास था अतः उसने जॉनसन से किनारा करना ही उचित समझा।
अब नील की प्रतिभा अंतरराष्ट्रीय बनने की ओर अग्रसर थी। उसे पेरिस में प्रदर्शनी के लिए आमंत्रण मिला, जहां उसकी कृतियों को समीक्षकों ने जमकर सराहा और उसके सारे चित्र बिक गए। उन चित्रों के बिकने से उसको इतनी आमदनी हुई उसने पैरिस जैसे शहर में अपना घर ले लिया। उसकी प्रसिद्धि के साथ ही उसके मित्रों की संख्या बढ़ने लगी जिसमें महिलाओं की संख्या अधिक थी पर नील उनके प्रति उदासीन बना रहा ।
जीवन को पाने के लिए उसने अपना सब कुछ दाव पर लगा दिया। वह ढूंढता रहा ऐसा दोस्त जो उसे समझ सके। रिश्तो को उसने बहुत ज्यादा अहमियत दी । इसका परिणाम उसके लिए बुरा ही हुआ ,लोग उसके पास आते ,झूठा प्रेम दिखाते, और अपना मतलब साथ किनारा कर लेते। ऐसा नहीं कि नील उनके मनोभाव नहीं पहचानता ,पर फिर भी वह सोचता, इस तलाश में रहता कि कोई तो सच्चा मिलेगा।
बचपन से ही नन्हा नील हमेशा बेचैन रहा। यह बेचैनी बड़े होने पर भी ख़त्म ना हो सकी, और जब भी अकेला होता बेचैन होता।
आज अकेला बैठा नील अपने बचपन के दिनों की ओर उन्मुख था। वह जेनी को दिखाना चाहता था कि देखो तुम्हारी प्रेरणा ने मुझे कहां पहुंचा दिया। उसके चेहरे पर एक मंदस्मित मुस्कान उभर आई। ऐसा लगता जैसे जेनी सामने खड़ी हो और उससे कह रही हो," मैं सब कुछ देख रही हूं नील! तुम्हारी खुशी भी!" अचानक सामने से उसकी मां आती दिखाई पड़ी किसी देवी की तरह ।उसने नील के माथे पर हाथ रखा, ऐसा लग रहा था जैसे बचपन से आज तक के सफर में जितनी थकान हुई है वह सब गायब हो गया।नील ने भावमग्न हो आंखें बंद कर ली। अचानक उसने आंखें खोल दी, पूरे शरीर पर पसीने की बूंदें घिर आई थी। ऐसा लग रहा था जैसे उसके पिता वापस आ गए हो और उन्हीं के साथ जॉनथन भी। उसके चेहरे पर घृणा के भाव उभर आए ।नील के वे दिन हमेशा के लिए उसकी अमानत बन गए थे जिनमें पिता का आतंक ,मां का बिछड़ना, जेनी का अलगाव, और जॉनथन की करतूतें थी। चाह कर भी इन बुरे तथ्यों से वह अपनी पीछा नहीं छुड़ा पाता था। वह जब भी अकेला होता चाहे अनचाहे यह चीजें उसके सामने तैर जाती ।
दर्द को जीना उसका शगल बन गया था। ऐसे में हमेशा वह अपनी मां को याद करता ।बीमार मां में भी उसने पिता से ज्यादा मजबूती देखी थी जो उसके हर दुख को अपनी ममता के आवरण से ढक देती ।उस आवरण की टूटने के बाद वह विक्षिप्त हो गया था। मां की मौत ने उसे इतना निरीह बना दिया था कि एक बारगी वह मौत के विषय में सोचने लगा था। जेनी में मां की कमी पूरी होता है दिखाई दी ,परंतु उसका साथ भी तो छीन गया ।जॉनथन के कुकृत्यों के बाद धर्म से भी उसे घृणा हो गई ।इसका एक कारण और भी था, धार्मिक होने के बाद भी उसकी मां की अस्वाभाविक मौत ।चर्च उसके लिए ईश्वरीय आवास नहीं एक ठहरने का स्थान था ,साधारण घरो जैसा। नील के लिए धर्म का एक ही मतलब था ,अच्छा कार्य और किसी को दुख ना पहुंचाना।
ऐसा नहीं कि वह जॉनथन से सिर्फ घृड़ा ही करता था ,जॉनथन ने उसके बुरे वक्त में उसे संभाला था ।अतः वह उसका वह प्रतिकार नहीं करना चाहता था। पर जब नील ने उसका दूसरा रूप देखा सृष्टि पर से उसका विश्वास ही उठ गया ।वह इतना हताश हो गया था कि दोबारा उसने आत्महत्या की कोशिश की ।वह सोचता कि अंततः किस प्रेरणा ने उसे अभी तक जिंदा रखा है और क्यों ।
इन सब के साथ ही वह अपने पेंटिंग में लगा रहा और एक-एक करके सफलता मिलती रही ।कितने अवार्ड मिले ,कितनी संस्थाओं ने उसे पुरस्कृत किया, नील को स्वयं याद नहीं। कितने चित्र बिकते हैं ,कितने पैसे आते हैं ,उसने कभी इसका हिसाब ना रखा। बस वह अपने कार्य में लीन रहा जैसे वह तलाश रहा हो किसी को या फिर अपने अभाव को भरने का एक तरीका। इस सफलता से वह संतुष्ट नहीं था और ना ही पैसा उसके लिए कोई जरूरी वस्तु थी । उसे एक आंतरिक भूख थी, पाने की। पर वह क्या पाना चाहता है कभी-कभी वह खुद ही नहीं समझ पाता ।लोग उसके पास आते, हाथ पसारते, वह शहर्ष उन्हें दान कर देता। कितनी कल्याणकारी संस्थाएं नील के पैसे से चलती थी। उससे पेंटिंग सीखने वालों की भीड़ लगी रहती थी और नील उन्हें एक अच्छी गुरु की भांति चित्रकला के नियमों से अवगत कराता।
नील ने कला को कभी भी पैसा कमाने का माध्यम ना समझा और अपने शिष्यों को भी यही सिखाया। जिस तरह प्राकृतिक रचनाए ,हवा, खुशबू, फूल, पानी लोगों को खुशियां प्रदान करने के लिए वैसे ही हमारी कलात्मक रचनाएं हो, क्योंकि कला का एक अभिप्राय,"स्वांतः सुखाय के साथ बहुजन हिताय भी है"।
नील के शिष्यों में कई महिला चित्रकार थी शामिल थी, इनमें याना नील के ज्यादा नजदीक थी ।कारण था उसका भारतीय मूल का होना ।
याना के माता पिता ने उन्हें निमंत्रण दिया था घर पर आने के लिए ,अतः वह कुछ ज्यादा ही खुश थी ।उसने अपनी मां की सबसे अच्छी साड़ी पहनी ।वह जानती थी नील भारतीय चीजों से काफी प्रभावित हैं। नील को प्रभावित करने के लिए आज वह कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी ।कॉल बेल बजने के साथ ही वह भी चहक उठी ।दरवाजा खोला, सामने उसकी आशा के अनुरूप नील खड़े थे। माता पिता ने आगे बढ़कर उनका स्वागत किया।
" सर आपको यहां आने में कोई समस्या तो नहीं हुई ?"उसने नील की खामोशी तोड़ते हुए कहा ।
"हुई ना! देखो ना इतना सारा खाना मुझे जबरदस्ती खाना पड़ेगा !"नील बच्चों के सदृश्य मुंह बनाते हुए बोले।
नील की इस हरकत से याना के साथ उसके माता-पिता भी हंस पड़ें।
"ईतन बड़ा व्यक्तित्व और इतनी सादगी! घमंड तो जैसे छू भी नहीं पाया है।" याना कि मां सोच में पड़ गई ।
"अरे मां जी और कुछ मिलेगा?" नील प्लेट खटखटाते हुए बोले।
भारतीय व्यंजनों से नील का आज पहला परिचय था ।
"अब तो मुझे जब भी कुछ खाने को जी चाहेगा मैं आपके घर चला आऊंगा।" नील ने कहा।
" हां सर, मुझे भी आपके आने से खुशी होगी।" याना ने अपने चेहरे पर मुस्कान की पतली रेखा लाते हुए कहा।
खाने के बाद याना नील को अपना घर दिखाने लगी। उन्होंने देखा घर के हर कोने में भारतीयता की झलक थी ।उसके माता-पिता फ्रांस आने के बाद भी भारतीय परंपराओं को समेटे हुए थे और खुद याना भी। नील ने वहां हिंदू देवी-देवताओं के चित्र देखें। शिव- पार्वती ,राधा- कृष्ण इत्यादि। एक जगह उन्होंने शिव का विषपान वाला चित्र देखा ।याना ने उन्हें समुद्र मंथन की कथा सुनाई कि किस प्रकार अमृत के लिए सारे लोग मचल उठे थे, पर विष की तरफ किसी का ध्यान नहीं था। जिसके कारण सारी सृष्टि में त्राहि-त्राहि मची हुई थी। और भगवान शिव ने स्वयं इस विष का पान किया, इस सृष्टि की रक्षा हेतु ।
नील को शिव की इस भावना ने काफी उद्वेलित किया । शिव की आध्यात्मिक ऊर्जा को उन्होंने महसूस किया ।एक ऐसी ऊर्जा जो जगत कल्याण के लिए जहर को भी मात दे सकती है। तभी से नील को भारतीय लोगों से लगाव हो गया और उनके मन में भारत यात्रा की बात बैठ गई ।
इन सबके बीच याना को महसूस हो रहा था कि वह नील को थोड़ा भी प्रभावित नहीं कर पाई। वह उसे अबूझ से लगे, जिन्हें समझना खासा मुश्किल था। याना के मन में नील के प्रति काफी भावनाएं भरी थी, पर नील के लिए यह सब कुछ समझना दुसह्य प्रतीत होता। याना ने उन्हें कई बार प्रदर्शित करना चाहा, पर नील या तो उसके प्रति नासमझ थे या फिर समझना नहीं चाहते थे।
याना जिस तरह चित्रकला में विकास करती गई उसकी संवेदनाएं भी नील के प्रति उत्तरोत्तर बढ़ती गई ।लेकिन वह जन्म से भारतीय थी, भारतीय संस्कृति में रची बसी। नील की तरफ से कोई प्रतिक्रिया न पाकर खुद को अपने आप में सीमित कर लिया और चित्रों में रम गई।