भाग-28
यह वह समय था जब गांधी जी के चरखे ने जोर पकड़ रखा था। याना भी इससे अछूती नहीं थी ।समय मिलने पर चरखा तो कातती ही, लोगों को इसके लिए प्रेरित भी करती ।ऐसा नहीं कि वह गांधी जी से प्रभावित थी, बल्कि उसे गांधी जी की इस कथन पर विश्वास था कि ,"हर गांव में ...हर एक घर अगर चरखा काटने में जुटे तो यह गरीबों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाएगा ....और भारत की गरीबी में यह खासा कमी ला सकता है। याना का यह मानना था कि व्यक्ति का, खासकर औरतों का आत्मनिर्भर होना अत्यंत आवश्यक है।
नील ने भारत आकर याना का दूसरा ही रूप देखा। उन्होंने फिर से महसूस किया कि जीवन के जिन तथ्यों, उपलब्धियों को पाने के लिए वे हमेशा तरसते रहे उन्हें याना ने सहज ही पा लिया है ।सही मायने में जीवन के अर्थ ,उसके मूल्यों को आत्मसात कर लिया है। याना का साथ मिल जाने से उन्हें खुद का जीवन सार्थक जान पड़ा ।
ऐसा नहीं कि नील में कभी सादा जीवन जिया ही ना हो ,पर इस बार खासा मुश्किल था। हां मन में कहीं जॉन के दूर जाने की पीड़ा की कसक थी, पर उनके लिए जीवन की परीक्षाओं की या एक और कड़ी थी और इसके लिए उन्होंने खुद के घर से इसकी तैयारी शुरू कर दी थी ।अन्य कार्यों के लिए तो याना थी ही।याना के सामाजिक कार्यों में उन्हे साथ देना काफी सुहाना लगा। हालांकि यह कार्य काफी श्रम साध्य था, पर वैचारिक श्रम से कमतर। उन्हें लगने लगा कि यही वास्तविक खुशी है। जिस जीवन की कल्पना उन्होंने जॉन के साथ की याना के साथ उन्होंने सहज ही पा लिया और याना नील को इन कार्यों का मर्म भी समझा गई।
नील ने ध्यान से उसको पढ़ने की कोशिश की ,कुछेक सालों में पाश्चात्य सी दिखने वाली याना एक संभ्रांत महिला सी दिखने लगी थी। चेहरे पर मंद स्मित मुस्कान ,आंखों में एक अनोखा तेज जो उसके गोरे से चेहरे को और भी गरिमामय बनाता। हल्के रंग की साड़ी में लिपटी , शब्दों से ज्यादा उसका मौन हीं लोगों से संभाषण करता ।याना की यह गरिमा पूर्ण सादगी नील को उद्वेलित करती प्रतीत होती।"
सामाजिक कार्यों के लिए अक्सर याना दूसरे शहरों में आती जाती रहती। ऐसे ही कार्य बस एक बार वह बनारस से काफी दूर रही जो नील के लिए असह्य था ।नील इस तथ्य को समझ नहीं पा रहे थे। चोट खाए नील के लिए वह एक संबल की तरह थी और उसका आकर्षण कहीं ना कहीं मन में दबा पड़ा था जो उन्हें सहज नहीं रहने देता। बेचैनी काफी बढ़ गई तो उन्होंने याना को एक पत्र लिख भेजा ।याना के लिए यह काफी आश्चर्यचकित कर देने वाला था, क्योंकि नील ने उसके प्रति अपने आकर्षण की स्वीकारोक्ति शब्दों में पहली बार की थी। इस पत्र में उन्होंने अपनी भावनाओं को उड़ेल कर रख दिया था ।कुछ कुछ बालको सदृश्य। लिखे हुए शब्दों में हृदय की विवशता स्पष्ट परिलक्षित हो रही थी। हालांकि इस पत्र में उष्मा थी ,पर याना के लिए यह कोई मायने नहीं रखता था क्योंकि वह खुद को मानव सेवा हेतु समर्पित कर चुकी थी। फिर भी उसे नील का यह पत्र बेचैन कर गया।
वह जवाब लिखने बैठी पर कुछ शब्दों से आगे ना बढ़ सकी। उसके अंतस में उथल-पुथल मच गया। वह खुद के सापेक्ष नील को देखती, फिर समाज को ,फिर खुद की खुद की भावनाओं को भी। अनोखे अंतर्द्वंद में फंसी वह जवाब लिखने बैठी---
" आपका पत्र मिला ।मेरे मन में आपके लिए कई तरह के विचार आए ।कई भावनाएं शब्दशः लिखना संभव नहीं, पर आपने मुझे दुविधा ग्रस्त कर दिया ।इतना कि मैं भी नहीं जानती..... मैं आपको क्यों लिख रही हूं !....मुझे पता है आपको मेरे पत्र का बेसब्री से इंतजार होगा ।पर मैं अभी आप को लेकर कुछ खास फैसला न कर सकी।... क्षमा चाहती हूं उसके लिए।
..... याना
नील की आशाओं के बिल्कुल विपरीत था याना का यह जवाब ।वह वापस आई तो नील उसके द्वारा बनाई गई अधूरी पेंटिंग को पूरा करने में व्यस्त थे। याना ने उनसे बात की जो महज औपचारिक थी।नील उससे कहना चाहते थे----
"...... तुम मुझे गलत मत समझना ।तुम नहीं जानती तुमने मेरे अंदर कैसी भावना भर दी है ....परंतु अंततः में टूटा हूं!.... क्या करूं?"
रात हो चुकी थी। चिड़ियों की चहचहाहट ,पेड़ों के साए साए और झींगुरों का आर्तनाद वातावरण में एक अद्भुत कोलाहल उत्पन्न करते जिनके बीच गंगा की लहरों की हल्की सी आवाज शांति प्रदान करती।
याना नील के लिए चाय लाई थी, बिना दूध की।
नील ने कहा," मुझे मालूम है मैंने तुम्हारे अंदर एक हलचल-सी पैदा कर दी है !जो तुम्हें तुम्हारे लक्ष्य से भटका सकती है। पर विश्वास मानो जिन आदर्शों को तुम अपने जीवन में लेकर चली हो मैं उन्हें कभी भी टूटने ना दूंगा ।वरन मेरे कारण तुम्हें उस में मजबूती ही नजर आएगी ।बस मुझे तुम्हारा साथ चाहिए, मैं जानता हूं तुम्हारा संकल्प दृढ़ है पर अंततः मेरी भावनाएं......?" याना उनसे दूर हट गई ।
"....याना.... याना....!" नील पुकारते रहे।
वह स्तब्ध थी !नील की आवाज उस तक नहीं पहुंच पाई।
भोजन के समय भी याना मौन रही ।हां उसने नील की पसंद का भोजन जरूर बनाया था जिसे वे चटखारे लेकर खा रहे थे ....बच्चों सदृश्य ! याना हंस पड़ी। नील को लगा कोई बहुत बड़ा बोझ उतर गया हो।