"अब हम यहां नहीं रहेंगे, इस लड़की ने तो जैसे हमारा जीना मुश्किल कर दिया है।" जेनी के पिता बड़बड़ाते जा रहे थे ।
एक कोने में डर से सिटपिटाई जेनी खड़ी थी।
" क्या हुआ? इतना शोर कैसा है!" जेनी की मां ने कमरे में आते हुए कहा ।अचानक उनकी नजर डरी हुई जेनी पर पड़ी," अरे बेटी तुम इस तरह घबराई हुई!.. बोलती क्यों नहीं क्या बात है? क्यों सैमसन तुमने जेनी को मारा?"
" अरे मेरा बस चले तो इसका और उस कमीने का खून कर डालूँ।" सैमसन चिल्लाए।
" सैमसन.....! क्या बच्चों को इस तरह डांटते हैं ?"जेनी की मां ने तेज आवाज में कहा।" जेनी बेटे क्या हुआ ?"मां ने उसके आंसू पोछते हुए कहा ।
"मुझसे पूछो, यह क्या बताएगी! मैंने इसे कितनी बार मना किया यह उस आवारा नील के साथ ना रहे ,पर यह तो..... मुझे तो कहते हुए भी शर्म आती है ।अब हम एक पल भी यहां नहीं रहेंगे। मैंने शहर में एक मकान देखी है, हम जल्दी ही वहां चले जाएंगे। कम से कम इसे वहां अच्छी शिक्षा तो मिलेगी।"
जेनी हमेशा के लिए जा रहे थे नीम को लेकर रास्ते से ही उसके हृदय में उथल-पुथल थी।
" कैसे रहेगा वह मासूम!... बेचारा !"उसके हृदय से आह- सी निकली ।"हे ईश्वर!उसकी मदद करना, एकदम से भोला है वह। वैसे भी उसे आज तक ईश्वर से मिला ही क्या!" जेनी जैसे ईश्वर से लड़ने के विचार में थी।
" कोई तो नहीं समझता उसे! समझना ही नहीं चाहते। सब दूर भागते हैं उससे! अभाव में पला उसे प्यार के दो पल भी नसीब नहीं हो पाते! उसकी सहायता करना ईश्वर!" जेनी ने मन ही मन प्रार्थना की।
" मां" जेनी ने धीरे से कहा।
" बोलो बेटी।"
मैं एक बार नील से मिला आऊं ?"
"पर?"
" जाने दो मां !"उसने गिड़गिड़ाते हुए कहा।
" जाओ, लेकिन जल्दी आ जाना नहीं तो सैमसन को पता चल जाएगा ।"
"अच्छा मां, जेनी बाहर निकल गई।
नील के घर पहुंची तो देखा लोगों की भीड़ लगी है। उसका हृदय एक अनजानी आशंका से कांप उठा ।डरते डरते वह घर के पास आई, देखा तो नील रो रहा था ।पास ही उसके पिता का शव रखा हुआ था। जेनी तो जैसे स्तब्ध हो गई, समझ में नहीं आ रहा था वह किस तरह की प्रतिक्रिया करें।
नील ने उसके पैरों की आहट को पहचान लिया था ।उसने चेहरा ऊपर किया, आंसुओं के धुंधलके में जेनी उसे काफी दूर दिखाई दे रही थी ।वह फफक उठा !
जेनी कुछ ना बोली ,वह वापस दौड़ पड़ी ।
"मम्मी .....!"आते ही वह चिल्लाई ।
"क्या हुआ जेनी?"
"मां नील के पिता नहीं रहे !"
नील एकदम अकेला हो गया था, जेनी रो उठी ।
"अब वह कैसे रहेगा ?"
"हे ईश्वर !"मां के मुंह से एक उच्छवास-सी निकली ।
"क्या हुआ ?किसकी बात हो रही है?" जेनी के पिता की आवाज थी।
"नील के पिता नहीं रहे, एक बार आप भी जाकर देख आते?"
" इन फालतू कामों के लिए मेरे पास वक्त नहीं ,तुम लोग जल्दी सामान बांधो, गाड़ी आती होगी ।"उन्होंने गुस्से से कहा।
जेनी अनमने भाव से अपनी मां के साथ तैयारी में लग गई। रह रह कर उसके सामने नील का आंसुओं से भीगा चेहरा कांप जाता।
जेनी जा रही थी ....हमेशा के लिए ।चाहती थी नील दिख जाए ।अचानक नील ने गाड़ी की आवाज सुनी ,जब तक वह उठकर बाहर आता जेनी जा चुकी थी। उसे सब कुछ खत्म सा होता प्रतीत हुआ। कितनी असह्य थी यह वेदना!
" जेनी तुम भी .....!"काश समय रुक सा जाता ।
धूल के बवंडर में उसका सब कुछ विलीन होता जा रहा था। नील समझ नहीं पा रहा था दुखों के आर्तनाद को वह किस प्रकार प्रकट करें। एक तरफ पिता का बिछड़ना ,दूसरी तरफ जेनी का अलगाव! अंतस ने जैसे उसकी सारी सक्रियता को जकड़ लिया था।
"हे ईश्वर !"अचानक वह चिल्ला उठा। अंदर के शब्द एक भयंकर आर्तनाद के साथ बाहर निकलने लगे ।
उसके रुदन ने जैसे सारे वातावरण को स्तब्ध कर दिया ।लोग उसे ढांढस बनाने लगे ।
"बेचारा.... बचपन में मां मर गई !अब पिता का प्यार भी हमेशा के लिए खो गया!" एक ने कहा ।
"अरे पिता का प्यार.... या उसकी मार !हमेशा ही तो इसे पीटता रहता था !"यह दूसरे व्यक्ति की आवाज थी ।
लोगों के शब्द उसे कांटो जैसे चुभ रहे थे ।अचानक वह उठा और एक तरफ दौड़ पड़ा। जैसे सब कुछ छोड़ वह भाग जाना चाहता हो। जीवन के दुख ...अभाव... संत्रास इन सब से। वह दौड़ता रहा..... दौड़ता रहा ....जब तक उसकी टांगों ने जवाब ना दे दिया। पैर जब थकने लगे तो वह बैठ गया। रात होने को थी, सामने से आती एक आवाज ने उसकी तंद्रा भंग की ।वह चर्च के घंटे की आवाज थी ,वह आवाज की दिशा में मुड़ गया। चर्च के सामने की दीवार पर जीजस की एक पेंटिंग बनी थी ।वह किंकर्तव्यविमूढ़ था वहीं बैठ गया ।उसे आश्चर्य हो रहा था खुद पर भी और जीसस पर भी !
"मैं तुमसे क्या कहूं जीसस ...?क्या अब भी कुछ कहना बाकी है ?....क्या मैंने तुम्हारी तरह कष्ट न उठाए ?....इस क्रूस से कम पीड़ा सही मैंने ?....बोलो जीसस?" नन्हें नील के शब्दों में करुणा थी ।
"कौन है वहां ?प्रकाश के हल्के धुधलके में एक चेहरा नजर आया। यह चर्च के पादरी की आवाज थी ।
नील ने सामने देखा सफेद कपड़े पहने एक व्यक्ति खड़ा है। "तुम कौन हो बेटे ?और इस समय यहां कैसे? अकेले आए हो?"
" अकेला ही तो हूं फादर!.... जन्म से ही अकेला!" नील ने अपनी करुण कथा सुना डाली।" बताइए फादर, अब मैं क्या करूं?... कहां जाऊं ?"
"तुम्हें कहीं जाने की जरूरत नहीं ।नील तुम आज से अकेले नहीं ।तुम अब मेरे पास रहोगे ।"
नील को आशा की एक किरण दिखाई दी, संभवत उसके जीवन में सुख की प्रथम किरण थी ।
नील का जीवन भटकते -भटकते संभल गया। पादरी ने उसके गिरते कदमों को थाम लिया ।नील का जीवन सामान्य से दिखने लगा, पर जेनी उस पर सदा के लिए हावी हो गई। उसके नन्हे दिल पर जेनी के अनछुए स्पर्श के चिन्ह कभी न मिटने वाले छाप छोड़ गए ।जीवन के नए अध्याय को नील ने पढ़ना शुरू कर दिया और जेनी उसके चित्र अभ्यास की प्रेरणा स्त्रोत बनती रही। वह उसके रेखाओ, चित्रों में जीने लगी ।
एक दिन वह बैठा मरियम की मूर्ति की अनुकृति उतार रहा था, फादर उसके पास आए। उनके साथ जॉनथन नाम का एक व्यक्ति भी था। उन्हें आश्चर्य हो रहा था नील के नन्हे उंगलियों का कमाल देख कर। नील को उन्होंने व्यस्त देखा तो वहां से हट गए।
" मिस्टर जॉनथन मैंने इसी लड़के के विषय में आपको बताया था ।इसकी कहानी तो मैंने आपको बताई थी ,अब तो आप ने यह भी देख लिया कि यह कितना प्रतिभाशाली है ।"फादर ने कहा।
" जॉनथन एक धार्मिक नेता थे, स्वयं फादर भी उनका बहुत सम्मान करते थे। धार्मिक मामलों में उनका काफी प्रभाव था। उनके ही कारण चर्च, इत्यादी धार्मिक संस्थाओं को अच्छा खासा चंदा मिलता था। फादर चाहते थे कि जॉनथन की सहायता से नील के जीवन निर्वाह की कुछ अच्छी व्यवस्था हो ।जब जॉनथन ने उसकी प्रतिभा देखी तो स्वयं अपने साथ रखने के लिए तैयार हो गए ।नील के अच्छे भविष्य के लिए सर्वथा उन्होंने एक उपाय भी ढूंढ लिया था। नील उनके साथ चल पड़ा। जॉनथन के व्यक्तिगत कार्यों के साथ उसका चित्रण अभ्यास भी जारी रहा। जॉनथन ने शीघ्र ही उसका प्रवेश एक अच्छे कला विद्यालय में करवा दिया ।नील की निष्ठा व धैर्य ने अपना रंग दिखाया ।वह कुछ ही दिनों में अच्छे चित्र बनाने लगा।
जब उसने जीवन की पहली पेंटिंग बनाई उस समय उसकी उम्र मात्र 14 वर्ष की थी। समेट दिया था उसने अपने इस चित्र में अपने जीवन की काली परछाइयों को ,बिल्कुल पिकासो की ब्लू -पिरियड के चित्रों की भांति !जब वह प्रदर्शनी के लिए गया ,दर्शक स्तब्ध-से रह गए ।अथाह करुणा थी उसके चित्र में !चित्र के एक कोने में उसने खुद को एक असहाय बालक के रूप में चित्रित किया था। पास में मरियम जीसस को गोद में लिए हुए थी जिन्हें वह खोई नेत्रों से निहार रहा था। स्वयं की मां के ना होने की कसक उसके चित्र में दिखाई पड़ रही थी ।कुछ ही समय बाद नील के चित्र के खरीदार भी मिलने लगे ।अब "गुस्ताव नील" एक जाना पहचाना नाम बन गया था।