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ब्लाइंड (भाग -31)

13 दिसम्बर 2021

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भाग -31
नील का जीवन यूं ही बेलगाम चलने लगा था। कोई योजना नहीं ,कोई बंधन नहीं, स्वच्छंद और निश्चेट। अब न उनके लिए प्रकृति की खूबसूरती मायने रखती थी, न ऋतुओं का परिवर्तन। न विधाता ने उनके लिए दिन के उजाले बनाए थे.... न रातों की कालिमा!
सोने के बाद उठते तो खाना पड़ा रहता.. खा लेते ।कई बार तो लोगों का दिया हुआ भोजन यूं ही पड़ा रह जाता ।
       दिन महीने बने... फिर साल... और समय अपनी द्रुत गति से बदलता रहा। पर नील  में जरा भी बदलाव ना हुआ... वरन वे जीवन के प्रति उत्तरोत्तर निश्चिंत होते गए ।जीवन की निश्चिंतता  और प्राकृतिक आवरण ने नील को शारीरिक रूप से और पुष्ट कर दिया ।
     उस दिन नवरात्रि का मेला लगा हुआ था, लोग देवी की अर्चना में व्यस्त थे। ग्रामीण महिलाएं देवी गीत गा रही थी। नील उनके बीच जाकर झूमने लगे उन्मादित- से !ऐसा लग रहा था जैसे थका देना चाहते हैं खुद को, पर चेहरे पर थकान की जगह एक अद्भुत आनंद था !...एक अविचल खुशी! अचानक उन्होंने देवी की मूर्ति पर अपना सर पटक दिया!  महिलाएं चीख मारकर दूर हट गई ।देवी की मूर्ति रक्त से लाल हो उठी ,वह बेहोश हो चुके थे ।ग्रामीणों ने उन्हें उठाया पास ही कस्बे के एक अस्पताल में ले गए ।डॉक्टर ने प्राथमिक उपचार किया तो होश संभला ,कुछ बड़बड़ा  रहे थे। नील के धैर्य ने एक बार फिर से जवाब दे दिया था।
   कुछ दिनों तक वे अस्पताल में पड़े रहे पर उनकी स्थिति में सुधार नहीं आया ,उनका पागलपन बढ़ता ही गया। कभी-कभी वे सहमें- से दिखते ,कभी अचानक उग्र रूप धारण कर लेते! रहकर वे बच्चों से बिलख उठते ।
   डॉक्टर ने जब उनकी स्थिति देखी तो उन्हें शहर जाने के लिए कहा ।नील का अंग्रेज होना उनके लिए काफी काम आया, उच्च अधिकारियों ने उनमें दिलचस्पी ली ,इलाज के लिए उन्हें वाराणसी लाया गया। डॉक्टरों की टीम उनके इलाज में जुटने लगी ।
  लंबी गुमनामी के बाद नील फिर से लोगों के सामने आ गए थे। हर कोई यही जानना चाहता था कि वे कहां चले गए थे। याना ने जब यह खबर सुनी तो नील से मिलने आई, पर वास्तविक नील तो सचमुच गुम हो चुके थे!... सामने तो उनका विचार -विहीन देह था जो न कुछ सोचता था.... ना समझता था! उनके इस हालात पर याना को कोई आश्चर्य न हुआ। हां उनके पास गुरु दक्षिणा चुकाने का एक सुनहरा अवसर था। वह उनकी की सेवा में तत्पर हो गई ।वह नील के मूक वेदना की इकलौती साक्षी थी और जहां तक होता उनके कष्टों को आत्मसात करने की कोशिश करती।
    नील की स्थिति में सुधार होने लगा, याना को लगा वह सफल हुई ।वह अपने हाथों से उन्हें खाना खिला रही थी ,नील के चेहरे पर दयनीयता के भाव थे ।वह याना को एक बच्चे की भांति निहार रहे थे ।
  "सर ,याना ने बोलना शुरू किया ।"....आप सचमुच कमजोर निकले !.....विचारों से भी !....आपने साहस तो किया पर खुद को शांत नहीं रख पाए !"
अचानक याना कि हाथ से खाने की थाली छिटक कर दूर जा गिरी! नील अपना सर पीटने लगे। वह सहमी सी एक कोने में खड़ी हो गई ।डॉक्टर दौड़े ,उन्होंने नील के शरीर में न जाने कितनी तरह की सुईयां घुसेड़ी, वे शांत हुए ।
   "यहां इनमें सुधार होना नामुमकिन है !आज 10 दिन हो गए पर इन में सब कुछ वैसा ही है !"डॉक्टर ने कहा।
" इन्हें बाहर भेजना ही होगा !"
"नहीं डॉक्टर, याना ने कहा।" इनकी इच्छा थी कि इन्हें भारत में ही रहने दिया जाए, अंत समय तक। मैं जानती हूं अगर सर वापस गए तो मैं इन्हें दोबारा खो दूंगी ।"याना के शब्द जैसे कहीं दूर से आ रहे थे ।उसने बाहर आते आंसुओं को जबरदस्ती रोक लिया ।
  मनोचिकित्सक जॉनसन अपने केबिन में बैठे अखबार पढ़ रहे थे ,अचानक एक पृष्ठ पर उनकी नजर पड़ी। सब कुछ दिमाग को झन्ना देने वाला था! नील के बीमारी की खबर छपी थी ।
  जॉनसन की विस्मृतियां एक बार फिर से उनके आगे कौंध  गई ।नील के सानिध्य का एक-एक पल उनको याद आ रहा था ।नील की स्थिति पर वे आत्मग्लानि से भर उठे ।
  कला जगत के लिए भी यह खबर एक सनसनी थी, लंबी गुमनामी के बाद चित्रकार नील मिले भी तो ... विक्षिप्त!  कला जगत में वह एक स्तंभ थे। वर्तमान में जितने भी बड़े चित्रकार थे सब ने उनके बनाए मापदंडों पर ही यह सफर तय की थी ।स्वयं पिकासो ने भी उनकी प्रशस्ति में अनेकों चित्र बनाए थे उनकी गुमनामी के बाद ।ऐलिस इन दिनों महिला चित्रकारों में मूर्धन्य मानी जाती थी ,उसे लगा उसके जीवन रूपी पेंटिंग पर किसी ने कालिख पोत दी ।वह नील से मिलने के लिए व्यग्र हो उठी।
एलिस जब जॉनसन के पास पहुंची तो वह भारत जाने की तैयारी कर रहे थे ।नौकर ने बताया कोई मिलने आया है, उन्होंने मना कर दिया ।जब एलिस का नाम सुना तो स्वयं बाहर आए ।
"एलिस... एलिस....! तुमने अखबार पढ़ा? नील सर का पता चल गया... वह हमें वापस मिल गए!"
" हां जॉन, पर नदी के किनारों की तरह !....पास रहकर भी बहुत दूर !...तुम्हें क्या लगता है दोबारा उन्हें हम पहली अवस्था में पा लेंगे?"
" हां एलिस यह मेरा विश्वास है ,मैं जानता हूं उन्हें ....वह मुझे देखते ही पहचान लेगें... गले लगा लेंगे मुझे।.... आखिर उन्होंने मुझे सींचा है।... समझते हैं वे मुझे ।"
"मैं जानती हू जॉन.... काश तुम भी उन्हें समझ पाते !"
जॉनसन बच्चों -सदृश्य फफक ऊठे।
" संभालो खुद को!" एलिस ने उनके माथे पर हाथ रखते हुए कहा। नौकर सामने खड़ा था।
" तुम खुद को तमाशा बना रहे हो !"
"नहीं एलिस, तुम्हें क्या लगता है उनसे दूर जाकर मैं खुश था?.... कोशिश की थी मैंने उन्हें ढूंढने की!..... मुझे उनका विश्वास चाहिए था जो मैं खुद स्थापित करके ही दे पाता।...... लेकिन देर हो गई मुझसे!... बहुत देर !"
"नहीं जॉन ....संभालो खुद को। तुम्हें अब एक डॉक्टर होने के नाते उनसे मिलना होगा ।खुद को मजबूत बनाओ ,अपनी भावनाओं को रोको, तभी तुम सर को वापस लौटा पाओगे।"
जॉनसन अब संयत थे ।एलिस भी उनके साथ भारत के लिए चल पड़ी ।
नील के लिए दुआओं से भरे ढेर सारे पत्र आए थे जो विश्व के कई कोनों से उनके प्रशंसकों ने भेजे थे ।सब में एक ही प्रार्थना की गई थी ,उनकी वापसी की। उन्हें पढ़ते याना कि आंखो में आंसुओ कि एक अनवरत धारा बहती जा रही थी।
      " जिस प्यार के लिए नील जीवन भर तरसते रहे उन्हें मिला भी तो ऐसी स्थिति में!"
    "काश वे देख पाते सारा संसार उन्हें कितना चाहता है । वे किसी एक के प्रेम के मोहताज नहीं !......यूं ही उन्होंने अपने विस्तार को भुला से थोड़ा सा प्यार पाने की कोशिश की थी!"
   " मैडम ।"याना  को किसी नर्स ने ने पुकारा ।"इन्हें दवा देने का समय हो गया है।"
याना ने देखा नहीं सो रहे हैं ।
"हम कुछ देर रुक जाते तो अच्छा रहता।" उसने मना किया। "दवा मैं दे दूंगी।"
" जी अच्छा।" नर्स चली गई ।
याना ने देखा पत्र के साथ किसी ने एक पार्सल भेजा था। वह खोलने लगी ।उसमें नील की बनाई हुई एक उत्कृष्ट पेंटिंग थी। जीवन की आशाओं और उत्तेजनाओं से परिपूर्ण जिसमें सबकुछ जीवंत प्रतीत हो रहा था। 
अचानक उसे किसी के कदमों की आहट सुनाई पड़ी देखा तो 25-26 साल का , आंखों पर चश्मा चढ़ाए संभ्रांत सा दिखने वाला एक विदेशी युवक खड़ा था।  याना को चेहरा कुछ जाना पहचाना लगा, उसने यादाश्त पर जोर डाली, पर नहीं पहचान पाई।
"आप कौन हैं ?"उसमें पूछना चाहा।
"मैं डॉक्टर जॉनसन, पेरिस से आया हूं नील सर के लिए। मैंने डॉक्टर से इनके विषय  सारी जानकारी ले ली है।"
" डॉक्टर जॉनसन?" याना को याद आया," कहीं तुम जॉन तो नहीं?"
" जी हां, मैं जॉन ही हूं!.   नील सर का जॉन!.    स्वार्थी जॉन!"
याना को लगा वह खुद को को रोक ना लेती तो जॉनसन का मुंह तोड़ देती ।
" ......तो अब समय मिल गया आपको?" उसने व्यंग से कहा। ना चाहते भी उसके मुंह से यह निकल ही गया ।
"मैं जानता हूं आप क्या कहना चाहती हैं, पर ईश्वर के लिए मुझे प्रायश्चित करने का मौका दीजिए!"
याना वहां से हट गई ।
जॉनसन नील के पास बैठे ,अत्यधिक भावुकता ने उनकी आंखों को तर कर दिया था।
  " सर आपने मुझे और वक्त दिया होता!.    आपने तो हमेशा ही इस जॉन को संभालने का वादा किया था।... फिर यूं ही छोड़ कर.... आप भी स्वार्थी हैं सर !जहां मुझे आपने इतना बर्दाश्त किया था.. कुछ पल और सह लेते!.... हां सर ऊंचाई पर पहुंचा कर आपने मुझे अकेला कर दिया!. ... देखिए आपका जॉन कहां पहुंच चुका है ?..  हां सर ,मैंने आपके सपनों को परिणति तक पहुंचा दिया, अब मैं तैयार हूं आपके साथ समाज इस विश्व को खुशियां देने के लिए!.... मैं तैयार हूं जीवन की सार्थकता को जानने के लिए... उठिए सर।"
    नील ने आंखें खोली ,उन मे अब भी वही तलाश थी.... वही भावनाएं थी ।जानसन को लगा सब कुछ वही है, कुछ भी नहीं बदला। अभी नील सर उसके आंसुओं को पोछते हुये उसके सर पर हाथ रखेंगे। अभी ढेर सारा प्यार देंगे ।
नींल के चेहरे पर हंसी की चौड़ी रेखा फैली, फिर वह खीझ उठे। उन्होंने जॉनसन को रोते हुए देखा और उनके चेहरे का रंग बदलने लगा ,वह तड़प उठे! बिस्तर की सिलवटों के साथ उनके चेहरे के भाव भी प्रतिक्षण बदलते जा रहे थे।
      जॉनसन ने खुद को रोका और भी आ चुके थे। थोड़ी देर बाद जॉनसन उनके इलाज में जूट गए। एलिस याना के साथ खड़ी उनकी गतिविधियों को देख रही थी । यह सब उसके लिए समझना दुसह  नही तो कष्टकारी जरूर था।बेड पर पड़े हुए उस व्यक्ति के टूटन को उसने कई बार देखा था ,पर उन टुकड़ों का बिखराव इस कदर हो सकता है उसको हतप्रद कर रहा था ।
सहमते हुए हुए उसने अपना हाथ याना के हाथो में दे दिया, याना ने नजरें उसकी तरफ मुड़ाई, एलिस की आंखों में उदासी अपने पूरे वेग के साथ कब्जा जमाता जा रहा था।
    " हमने बहुत कुछ खो दिया एलिस !.....अपने लिए ही नहीं वरन संसार के लिए भी! तुम्हें क्या लगता है... हम इन्हें वापस पा लेंगे?"
एलिस ने सर हिला दिया, दुखों की अधिकता उसका मुंह बंद कर दिया था।

31 दिसम्बर 2021

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रचनाएँ
ब्लाइंड
5.0
प्रस्तुत उपन्यास" ब्लाइंड: आनंद की खोज एक पीरियड ड्रामा है जो वर्ल्ड वार के समय घटित हुआ था। जिसके विरोध में साहित्यकारों, चित्रकारों, संगीतकारों ने मिलकर एक आंदोलन शुरू किया था जिसे दादावाद नाम दिया गया था। इसका नायक एक बाइसेक्सुअल चरित्र है जिसे बचपन में ही यौन शोषण की प्रक्रिया से गुजरना पड़ा... परिणामतः वह सामान्य नहीं रह सका और जीवन पर यह दर्द उस हावी रहा। एक ही परिवेश और पृष्ठभूमि में पलने बढ़ने वाला मनुष्य चिंतन के धरातल पर अलग-अलग सोच का प्रतिनिधित्व क्यों करता है! प्रेम ..हिंसा ...लगाव और नफरत जैसी भावनाएं किस तरह उसके मन मस्तिष्क में पनपती और आकार लेती हैं ।कैसे वह इनको जीता और व्यक्त करता है। जीवन के लिए आनंद बेहद जरूरी है। लेकिन हर मनुष्य के भीतर आनंद की परिभाषा अलग-अलग है। इस उपन्यास का पात्र आनंद की खोज में ऐसे कई भावों की टकराहट से गुजरता है। जहां से प्रेम की जगह हिंसा और नफरत से रूबरू होना पड़ता है। लेकिन वह प्रेम और आनंद की राह नहीं छोड़ता। उपन्यास का पात्र हर रिश्तो को जीना चाहता है ,यह जानते हुए भी कि इस रिश्ते की परिणति उसकी सोच के अनुरूप नहीं होगी। लेकिन इससे भी उसे आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है ।उपन्यास पाठकों को कथावस्तु के सहारे चिंतन के ऐसे मोड़ तक ले जाता है जहां उसे औरों के लिए खुद को समर्पित कर देने में आनंद की अनुभूति होती है। उपन्यास रोचक एवं पटनीय है।
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