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ब्लाइंड (भाग -29)

13 दिसम्बर 2021

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भाग-29
सुबह का समय था ।नील याना के साथ घाट की सीढ़ियों पर बैठे थे ।गंगा की लहरें शांत थी ,उसके निर्मल जल में मछलियों की अठखेलियां साफ दिख रही थी ।
   "तुम्हें पता है याना?" नील ने चुप्पी तोड़ी।" एक महीना पहले मैं जिस शांति की तलाश में भारत आया था उसका एक अंश भी न पा सका !तुम्हें नहीं लगता तुम कुछ ज्यादा ही गंभीर हो गई हो?.... एकदम सी निरव!....तुम्हारी यह नीरवता मेरी आत्मा को ढकती जा रही है याना।.... हां मंद सी पड़ गई है इसकी गति ...एकदम सुस्त!" उन्होंने याना के चेहरे को पढ़ने की कोशिश की, उसके चेहरे पर उभरे भाव नील को आशात्मक लगे।
        दोपहर को नील पेंटिंग बनाने में ही व्यस्त रहें ।चेहरे पर काफी दिनों बाद इतनी खुशी के भाव थे। याना अपने स्कूल चली गई थी। कुछ समय बीता होगा नील बाहर निकले। टहलते हुए आगे बढ़े जहां झोपड़ी नुमा कई मकान खड़े थे और उनके बाहर छोटे-छोटे बच्चों का झुंड दिखाई पड़ा,उधर ही हो लिए। यह पहला मौका था जब वे अपने कमरे से अकेले इतना दूर आए थे। बच्चे कौतूहल से उन्हें देख रहे थे, कुछ डर कर भागने की मुद्रा में थे। नील ने उन्हें बुलाया और उनके जैसा ही खेलने के अभ्यास में लग गए। शाम का धुंधलका फैला तो उन्हें समय का एहसास हुआ ,वे वापस लौट पड़े ।
      कुछ दिनों तक सब कुछ सामान्य रहा। नील ने कभी पेंटिंग ,तो कभी बच्चे ,इन सबके बीच खुद को व्यस्त कर लिया था। आज याना काफी थकी सी दिख रही थी ,आते ही लकड़ी के तख्ते नुमा चौकी पर लेट गई ।नील उसके लिए नींबू का शरबत बना लाएं। उन्होंने याना को चेहरे को देखा, वह आंखें मूंदे हुई पड़ी थी ।सर पर हाथ रखा तो पूरा शरीर जलता हुआ प्रतीत हुआ,सर तवे सा गर्म  था! उनके स्पर्श ने याना को विचलित कर दिया, उसने आंखें खोल दी। याना  ने जिस प्यार और करुणा भरी दृष्टि से उन्हें देखते हुए अपने बिस्तर पर बैठने को कहा, वह नील को अंदर तक उद्वेलित कर गया। बीमार याना से ज्यादा "निरिह" नील प्रतीत हो रहे थे !
      "अब हमें अपने बीच विचारों के अदृश्य दीवार को तोड़ देना चाहिए। याना मुझे इतना अधिकार तो कि मैं तुम्हारी सेवा कर सकूं !"नील के शब्दों में याचना थी ।
     वह रो रही थी !बीमारी के कारण नहीं बल्कि दुख और आल्हाद तथा उनके शब्दों से उपजे विचित्र भावुकता के कारण ! नील ने भीगे कपड़े की पट्टी उसके माथे पर रखी। याना ने  आखें बंद कर ली, जैसे खुद में कुछ आत्मसात कर लेना चाहती हो।
      सेवा- सुश्रुषा की यह प्रक्रिया 1 सप्ताह तक चली ।इस वक्त याना को महसूस होता जैसे नील उससे कुछ कहने के लिए संघर्षरत हो ।नील की सेवा ने उसके संकल्पों में सेंध लगा दी थी !
नील डायरी लिख रहे थे ------
"याना अगर तुम चाहती हो मैं भी गंभीर बन जाऊं तो हो जाऊंगा, पर इसमें तुम्हारी स्वीकृति चाहिए। तुम्हारे स्वीकृति मैं हर कार्यों में चाहता हूं ।मुझे लगे कि तुम मुझ पर अपना अधिकार जता रही हो। हां यह एक सुखद अभ्यास होगा मेरे लिए ।मैं तुम्हें अपनी पत्नी नहीं समझता ...प्रेमिका भी नहीं... लेकिन हमारी दोस्ती भी तो दायरे में सिमट गई है!"
      शाम के समय याना खुद को काफी चुस्त -दुरुस्त महसूस कर रही थी ।चेहरे पर उत्साह था और हृदय में कुछ भाव। नील टहलने बाहर गए हुए थे, वापस लौटे तो याना को प्रसन्न पाया।
  " आज टहलने में काफी देर लगा दी आपने ?"याना ने पूछा।
     " हां बस्ती के पास वाले मंदिर चला गया था ,रामलीला हो रही थी तो देखने में व्यस्त हो गया ।पता है उसमें उर्मिला थी.... और सीता भी!" वे अचानक चुप हो गए ।
     याना खुद को सहेजती  हुई बोली," सर आज आप से बिछड़ना मेरे लिए कष्ट पूर्ण रहा !ऐसा क्यों लग रहा है मैंने आपको दुखी किया है?.... क्या मुझे आपसे जुड़ना चाहिए?.... क्या शरीर ही जुड़ता है?.... मैंने तो अपनी आत्मा आपको सौंप दी! इस शरीर से सर्वश्रेष्ठ !....इससे भी कहीं ऊंचा!" वह शांत हो गई।
    नील में स्पंदन हुआ पर शब्द नहीं मिले ।उनके लिए सब कुछ शीशे की तरह साफ था, पर जिस उच्चतर सत्य को वे जानना चाहते थे उसे अभी तक नहीं समझ पाए। व्याकुलता अभी भी अंतस में समाई हुई थी ।हां बिल्कुल अबूझ होते जा रहे थे वे!.... खुद से भी! हृदय का ताप आखो तक पहुंचने लगा था। वे बाहर निकल गए ।कदम गंगा की तरह बढ़ते गए।
   " हां पहली बार इसी नदी ने तो अध्यात्म से साक्षात्कार कराया था।"
वे इस अध्यात्म को फिर से समझना चाहते थे, खुद की गहराइयों को समझने हेतु ।अंधेरे में नदी में पड़ते चांद के प्रतिबिंब की रोशनीयां जैसे उनके अंतस को बेधकर उनका सहयोग करना चाहती थी। पर अचानक ही कोई हवा शांत नदी में लहर उत्पन्न कर जाती जो उन रोशनीयों का तारतम्य तोड़ देती। नील... नदी... जॉन.. सब आपस में गड्मगड्ड हो जाते ।
    नील को लगा अब बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे ,उठकर वे टहलने लगे । इसके बाद वे कब अपने कमरे तक आ गए पता ही नहीं चला ।याना लालटेन की रोशनी में कुछ लिखने में व्यस्त थी, आहट मिली तो बाहर आई। अंधेरे में अस्पष्ट-सा दिखता नील का चेहरा उसको व्यग्र कर गया।
  " समय काफी हो चुका है, आपको इस तरह बाहर नहीं जाना चाहिए था!खाना लगा दूं?"
नील ने मौन स्वीकृति दे दी। एक-दो कौर निगले होंगे पर आगे हिम्मत नहीं जुटा पाए।
    "याना मैं क्या करूं?" शब्दों में अत्यंत दीनता थी ।
   "सर मैं जानती हूं आपको, इतने दिनों में आप एक पल भी सहज नहीं हो पाये। आपकी यह विवशता मुझ से छिपी नहीं। पर आपको अपने अंदर एक मजबूत इच्छा शक्ति प्रकट करनी चाहिए ,स्वयं के लिए। आपको नहीं लगता आप टूट चुके हैं तो फिर दुबारा यह बिखराव क्यों! मैंने बहुत चिंतन की... सोचा ....इससे यही अवधारणा निकली की अलगाव के लिए दुखी होना सचमुच पागलपन है। आपको मुक्ति चाहिए ना फिर आप इस भ्रम में क्यों उलझे हुए हैं? मैं जानती हूं जॉन के प्रति आपकी भावनाओं को... खुद के प्रति भी....। यह विडंबना ही तो है कि जिस तत्व.... जिस तथ्य... के लिए हम अपने साथियों से प्रेम करते हैं उस तत्व पर पड़े अस्थाई महत्वहीन आवरण के नष्ट होने पर दुखी होते हैं !पर वास्तविकता इससे इतर है। हमारी संपूर्णता इसमें है कि हम धीरे-धीरे खुद को संयोजित करें ।आप खुद पर विश्वास रखें अंततः सत्य को प्राप्त कर लेंगे।"

31 दिसम्बर 2021

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रचनाएँ
ब्लाइंड
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प्रस्तुत उपन्यास" ब्लाइंड: आनंद की खोज एक पीरियड ड्रामा है जो वर्ल्ड वार के समय घटित हुआ था। जिसके विरोध में साहित्यकारों, चित्रकारों, संगीतकारों ने मिलकर एक आंदोलन शुरू किया था जिसे दादावाद नाम दिया गया था। इसका नायक एक बाइसेक्सुअल चरित्र है जिसे बचपन में ही यौन शोषण की प्रक्रिया से गुजरना पड़ा... परिणामतः वह सामान्य नहीं रह सका और जीवन पर यह दर्द उस हावी रहा। एक ही परिवेश और पृष्ठभूमि में पलने बढ़ने वाला मनुष्य चिंतन के धरातल पर अलग-अलग सोच का प्रतिनिधित्व क्यों करता है! प्रेम ..हिंसा ...लगाव और नफरत जैसी भावनाएं किस तरह उसके मन मस्तिष्क में पनपती और आकार लेती हैं ।कैसे वह इनको जीता और व्यक्त करता है। जीवन के लिए आनंद बेहद जरूरी है। लेकिन हर मनुष्य के भीतर आनंद की परिभाषा अलग-अलग है। इस उपन्यास का पात्र आनंद की खोज में ऐसे कई भावों की टकराहट से गुजरता है। जहां से प्रेम की जगह हिंसा और नफरत से रूबरू होना पड़ता है। लेकिन वह प्रेम और आनंद की राह नहीं छोड़ता। उपन्यास का पात्र हर रिश्तो को जीना चाहता है ,यह जानते हुए भी कि इस रिश्ते की परिणति उसकी सोच के अनुरूप नहीं होगी। लेकिन इससे भी उसे आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है ।उपन्यास पाठकों को कथावस्तु के सहारे चिंतन के ऐसे मोड़ तक ले जाता है जहां उसे औरों के लिए खुद को समर्पित कर देने में आनंद की अनुभूति होती है। उपन्यास रोचक एवं पटनीय है।
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