भाग -32
समय बीतता जा रहा था पर नील की प्रतिक्रियाओं में कोई परिवर्तन नहीं हुआ !जॉनसन ने उनकी पूरी जिम्मेदारी स्वयं उठा ली थी। याना अपने स्कूल लौट गई थी ।हां समय निकाल उनकी स्थिति जरूर देख जाती। एलिस भी एक गहरा विषाद लिए वापस पेरिस लौट गई ।
जॉनसन इलाज के साथ नील के दैनिक कार्यों में भी साथ देते। जाने -अनजाने नील के पर चेहरे पर जब कभी शांति का भाव आता तो वह जॉनसन को उद्वेलित कर जाता। नील ने अब तो बातचीत करना भी शुरू कर दिया यह अलग बात है कि उनकी वार्तालाप में एक बच्चा मुखर होता दिखाई देता! वह बच्चा जिज्ञासु था जो संसार को नए सिरे से जानना चाहता ।वह जॉनसन से उनका परिचय पूछता जो उनकी विकलता बढ़ा देती ।वह एक अनोखे आत्म संघर्ष में फंस जाते और उनके घावों की प्रचंडता उन्हें छटपटाने के लिए मजबूर कर देती।
" कितना भयानक सत्य है, जिसने जॉनसन के अस्तित्व का निर्माण किया वह खुद उनसे अनजान था !....संसार के लिए जॉनसन चाहे कुछ भी हो पर खुद के भाग्य विधाता की नजरों में एक अस्तित्व विहीन व्यक्तित्व थे !....गुमनाम नील नहीं जॉनसन थे!.... अपने इश्वर की नजरों में !"
दिसंबर का महीना, रात्रि का अंतिम प्रहर। सभी लोग रजाई में दुबके पड़े थे। जॉनसन नील के सिरहाने बैठे थे ।अचानक नील अपने बिस्तर उठाकर फेंकने लगे, चेहरे पर एक विशेष प्रकार की घबराहट थी। पूरा शरीर पसीने से भीगा हुआ था। ऐसा लगता जैसे किसी बंधन से खुद को आजाद करा लेना चाहते हो। कोई भयानक सपना देखा था उन्होंने। जॉनसन ने उन्हें पकड़ने की कोशिश की पर ऐसा लगता है जैसे किसी ने नील में अमानवीय ताकत भर दी हो। सहायता के लिए चिल्लाए, उनका एक सहयोगी दौड़ा आया । उसने इंजेक्शन तैयार की, थोड़ी ही देर बाद नील शांत पड़े थे । जॉनसन उनके पास बैठ गए। सुबह का धुंधलका फैल चुका था ,उनका सहयोगी नील के लिए काफी ले आया।
" डॉक्टर जॉनसन मैं कई दिनों से देख रहा हूं आप इनसे कुछ ज्यादा ही जुड़े हैं !क्या यह आपके कोई रिश्तेदार हैं?"
जॉनसन शांत रहें, उन्हें लगा उनकी संवेदनाओं को फिर से कुरेद दिया गया हो।
" डॉक्टर जॉनसन ....डॉक्टर जॉनसन.... आपका पत्र। पेरिस से किसी एलिस मैडम का है ।"
जॉनसन की तंद्रा भंग हुई ,वे वर्तमान में लौट आए ।पत्र लिया और पढ़ने लगे। एलिस ने नील के विषय में पूछा था।
" सुधार की कोई गुंजाइश नहीं ,पर ईश्वर पर विश्वास है तुम साथ रहती तो शायद मैं इन लोगों को बर्दाश्त कर पाता।" उन्होंने जवाब लिखकर वार्ड बॉय को दिया पोस्ट करने के लिए।
कई दिनों बाद आज याना आई थी,नील के लिए अपने हाथों से बना खाना लेकर। उसने देखा सब कुछ सामान्य था। नील बड़े प्रेम से उसके हाथों से खाना खा रहे थे। जॉनसन के चेहरे पर एक आत्मिक शांति याना नील को खिलाने के बाद जाने लगी।
जॉनसन ने रुकने के लिए कहा," मेरा दिल घबरा रहा है....! आप रुक जाती तो ....?"
उसने कहना मान लिया ।
जॉनसन खुद की सोचो के परिवर्तन के लिए बाहर निकले। महीना होने को आया, पर आज तक वाराणसी नहीं घूम पाए। घाटों पर गए, उनको अपना अतीत याद हो आया। "कितना सही कहा था नील सर ने यहां के बारे में !"अपने विचारों के तारतम्य को उन्होंने लहरों के साथ जोड़ा ,पर उन्होंने अनुभव किया ,"नदी के भंवरों की संख्या अधिक होने के बाद भी वह शांत है क्योंकि उनमें विस्तार था और उनके विचारों में संकीर्णता! .... वे लोक कल्याण के लिए थी.... लेकिन उन्होंने खुद के स्वार्थ को जिया ।"उस स्वच्छ जल में वे खुद के प्रतिबिंब को भी नहीं निहार सके! अचानक मंदिर से आती घंटियों के स्वर ने उनके वैचारिक अशांति को और भी बढ़ा दिया। जॉनसन को लगा वे फट पड़ेंगे! वे वापस अस्पताल लौट पड़े ।उन्होंने बदहवास याना को दिखा जो एलिस के साथ खड़ी थी।
" जॉन कहां चले गए थे तुम? इन्हें फिर से दौरा पड़ा !"जॉनसन करीब आए देखा तो अर्धनिर्लिप्त आंखों से वे सोने की कोशिश कर रहे थे ।अचानक नील को लगा सब कुछ उजाले में बदलता जा रहा है!
".... जॉन...! उनके मुंह से ना जाने कितने सालो बाद यह शब्द फूटा था।
याना स्तंभित -सी नील के पास खड़ी हो गई ।
एलिस की खुशी का ठिकाना ना रहा !उसे लगा, उसने सब कुछ पा लिया!
" हां सर... मैं यही हूं!" जॉनसन का कंठ अवरुद्ध हो गया।
अन्य डॉक्टरों के लिए यह एक आश्चर्यजनक घटना थी। सबके चेहरे पर एक आभा- मिश्रित ख़ुशी थी !
"जॉन तुम आ गए?" ऐसा लग रहा था जैसे नील को एक-एक शब्द बोलने के लिए काफी परिश्रम करना पड़ रहा हो!
"....... अंततः तुमने मुझे अकेला छोड़ दिया ना?" उनकी आंखों से आंसुओं की एक अनवरत धारा बहती चली गई।
याना उनके करीब सरक आई।
"....मैं कुछ कह नहीं पा सका याना !.....अपने सर्वस्व समर्पण के बाद भी.!.... आत्म संतुष्टि के लिए हमेशा तरसता रहा!.... हां याना मेरे अंदर कुछ था ।......एक ऐसा घाव जो दुखता नहीं.... रिसता भी नहीं!.... सिर्फ खामोश सुलगता रहता है! जॉन से मुझे कोई शिकायत नहीं.... पर मैं ?....हां थोड़ा सा स्वार्थी हो गया था!.... पर मैं क्या करता?.... मैं भी इंसान था।.... संतप्त और अतृप्त !"
वहां खड़े सब लोगों की आंखे नम थी, उनमें एक आश्चर्य था! यह आश्चर्य हतप्रभ नहीं करता... एक उत्तेजना -सा पैदा करता.... ईश्वर के विरुद्ध.... जॉन के विरुद्ध.... या फिर समाज के विरुद्ध भी! रोना भूल गए थे सब मगर आंखें भीगी है।
नील देख रहे थे सब की आंखों में, एक कपकपाहट लिए... थरथराहट सी ।होठों पर एक अधखिली मुस्कान तैरी जो उनके दारुणता और हंसी के बीच एक क्षितिज रेखा -सी खींचती चली गई थी। आदमी कितना सह सकता है ....उसका मस्तिष्क कितना बर्दाश्त कर सकता है.... नील इसकी मिसाल थे!
मंदस्मित नील पेंटिंग का आभास कराते ।अचानक अधखुली आंखें बंद-सी होने लगी ,जैसे वह चित्र दर्शक से अपना नाता तोड़ लेना चाहती हो.... या फिर चित्र देखते दर्शक की आकांक्षाएं भांप उसके साथ चलने को बेताब हो।
याना, एलिस, जॉन सबके लिए ये सब कुछ सहना दूभर होता जा रहा था। याना ने करुणा और आस्था मिश्रित हाथ नील के ऊपर फेरा, वे चिहचक उठे। याना ने देखा ,उनकी आंखें दोबारा खुली, जिसमें स्मृतियों को उकेरते कुछ चिन्ह दिखाई पड़ते।
मानवता का सुदीर्घ निर्माण या नील का देवत्व जिसने कितनों का कल्याण किया। हठात् जॉन बैठ गया, पश्चाताप को अपनी गोद में लिए! यंत्रणा और दारुणता के परत दर परत नील की की स्थिति इन दोनों के बीच ऐसा विकट विमर्श बनाती जा रही थी कि सब जैसे एक अनजाने से अपराध बोध से ग्रसित होते जा रहे थे।
अचानक नील उठते हैं एक मुस्कुराहट के साथ ....और सामने की दीवार पर अपना सिर दे मारते हैं!... रक्त ....मांस... मज्जा का एक तेज फव्वारा दीवार पर फैल जाता है। यह एक चित्रकार का खून था...! .......लाल!.... जिसने संसार को सबसे ज्यादा रंग दिए थे !....उसकी कालिमा को दूर करने के लिए।.... पार्श्व की भयानक चीख़ उस रक्त की भयावहता को बढ़ा देती है। दारूणार्थ रक्त....! मानवता.....! प्रेम....! अभाव .....!अभिशप्तता.... ब्लाइंडनेस!
( समाप्त)