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ब्लाइंड (भाग- 23)

11 दिसम्बर 2021

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भाग-23
नील के सपनों की यह टूटन प्रथम नहीं थी। मातृ- विहीन नील का अतीत और भी भयानक हाल में गुजरा था ।वह बना ही था हमेशा पिटते  रहने के लिए। यह पिटाई कभी उसके पिता करते तो, कभी उसके मोहल्ले वाले ।उसके पिता उसे अपनी पत्नी की मौत का कारण समझते ।वह मात्र 5 वर्ष का रहा होगा जब उसकी मां उसे छोड़ चल बसी। जन्म के समय वह एक सामान्य बच्चा था ।मां धार्मिक प्रवृत्ति की थी ,उन्हें वह प्रार्थना करते देखता तो शांत सा बैठा रहता ।क्रॉस पर लटके हुए जीसस की आकृति उसके लिए अद्भुत चीज थी। मरियम की गोद में बैठे जीसस को वह घंटों निहारता, तथा ध्यान मग्न मां की गोद में दौड़कर स्वयं भी आ बैठता।
" मां यह कौन है?" उसने जीसस की तरफ इशारा करते हुए पूछा।
बड़े होते जिज्ञासु नील के जीवन का सर्वथा यह पहला प्रश्न था, उस समय उसकी उम्र 2 साल के आसपास थी। मां के मन को शांति हुई कि बच्चा धार्मिक प्रवृत्ति का होगा ,तभी वह ईश्वर के विषय में जानना चाहता है।
" ईश्वर का पुत्र ।"मां ने बताया।
" मां ईश्वर कौन है?" उसने दोबारा पूछा ।
"जिसने हमें जन्म दिया।"
फिर तो  मां वह हमारा  पिता भी हुआ !मां इनके शरीर पर यह घाव कैसे हैं? इन्हें क्रॉस पर क्यों लटकाया? क्या ईश्वर अपने पुत्रों पर ऐसे कष्ट होते देखता है?!"
" यह हमारे अपने पाप कर्म हैं बेटा जिसकी सजा वह भुगत रहा है। वह नहीं चाहता कि हमें कष्ट हो इसलिए सारे कष्ट उसने खुद झेल लिए।"
" नील यहां क्या कर रहे हो ?"सामने उसके पिता खड़े थे।" जाओ और पढ़ाई करो ,बिना वजह सब को परेशान करते रहते हो।"
वह अनमने भाव से चल पड़ा।
" आपको नहीं लगता बिना वजह ही आप उस पर इतनी कड़ाई करते हैं। आपने देखा उसके चेहरे को ?"मां बोली ।
"तुम्हें क्या लगता है ,मैं उसका दुश्मन हूं ?अरे उसकी भलाई के लिए ही उसे डांटता हूं ।"
पड़ोस के बच्चों के साथ नील नहीं खेल सकता था। कारण था अन्य बच्चों की अपेक्षा उसका अत्यंत शांत होना। बच्चे अगर उसे मारते- पीटते तो वह बिना किसी प्रतिक्रिया के घर आ जाता रोता हुआ। परिणाम होता पड़ोसियों से पिता की लड़ाई ,अतः उसके पिता ने उसके घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी ।उसके पिता का उससे नफरत का दूसरा कारण था उसका पढ़ाई में कमजोर होना। यूरोप के एक ग्रामीण क्षेत्र में उसका घर था, जहां उसके पिता का अपना खेत था, जो जीविका का मुख्य साधन भी था। नील पढ़ने में बहुत अच्छा नहीं था ,हां चित्रांकन में उसकी रुचि थी। एक-दो साल तक वह लगातार फेल होता रहा तो पिता ने उसे अपने साथ खेत में लगा दिया। पढ़ाई में कमजोर होने के कारण गांव के ज्यादातर लड़कों के अभिभावक अपने बच्चों को उससे दूर ही रखते ।
जब वह कुछ बड़ा हुआ तो बीमार रहने लगा ।मां को घर के कामों के बाद ज्यादातर समय उसी के साथ गुजारने होते। पिता को चिढ़ने का एक और मौका बढ़ गया। मां उसके स्वास्थ्य की चिंता में घुलती जा रही थी ,अंततः उसने बिस्तर भी पकड़ लिया ।
पिता ने उस दिन अकारण ही उसकी पिटाई कर दी ,वह मां की गोद में डर के मारे लुढ़का हुआ था ।
"नील तुम उस दिन जीसस के बारे में पूछ रहे थे ना, जब मैं ना रहूं तो तुम उनके पास जाना, मां मरियम तुम्हें मुझसे भी ज्यादा प्यार देगी ।"
"नहीं मां, तुम कहीं नहीं जाओगी ।मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगा।" वह रोते हुए बोला ।
शाम का समय था, नील अपनी मां के साथ बैठा था। वह नील को बाइबल सुना रही थी ।नील ने देखा कुछ ही पल बाद वह शांत हो गई ।
"मां आगे बोलो जीसस ने अपने उपदेशों में क्या कहा है?" उन्होंने कुछ भी जवाब न दिया।" तुम इस तरह शांत क्यों हो? कुछ बोलती क्यों नहीं ?"वह नजदीक आते हुए बोला।
मां "जीसस" मे  हमेशा के लिए विलुप्त हो चुकी थी। नील चीख मारकर गिर पड़ा।
अनाथ नील पर पिता के आतंक का साया और भी गहरा होता चला गया ।
पिता के काम में हाथ बंटाने के साथ उसे घर का भोजन बनाने ,कपड़े धोने, जैसे काम भी करने पड़ते ।वह बचपन में भी बच्चा बनकर न रह सका।
इस बड़े से बच्चे की सह गामिनी जेनी, उससे कुछ 1 साल बड़ी ,नील की  घनिष्ठ साथिन और नील की नजरों में उसकी मां जैसी भी ।जेनी को नील की सरलता भाती थी और नील के चित्रांकन की प्रतिभा को उसने ही पहचाना था ।एक जेनी ही थी जो मौका देख कर उससे मिलने चली आती और उसके घर के कामों में उसकी सहयोगी होती। अतः वह जेनी के प्रति कुछ ज्यादा ही आसक्त था ।जेनी के रूप में उसे एक मां और दोस्त दोनों दिखाई देते। चित्रों में उसकी रुचि देख जेनी हमेशा उसका उत्साह बढ़ाती रहती ,तथा पिता से छुपा कर अपने रंग व पेपर इत्यादि भी नील को देती रहती। नील अपने चित्रों को पूर्ण कर जेनी को दिखाता। जेनी उसके चुपके से बनाए गए चित्रों की एक मात्र प्रशंसक ।नील के पिता इसे फिजूलखर्ची समझते थे, अतः वे उसके चित्रों के खिलाफ थे।
नील के दुख- दर्द से संतप्त बचपन के 12 वर्ष बीत चुके थे। अब उसकी प्रतिभा गांव के लोगों के बीच मुखरित होने लगी थी ।पर उसके दुख तो उसके जीवन में समाहित से हो गए। सामान्य बच्चों से वह इतर होता गया। खुद में खोया रहने वाला एक अंतर्मुखी बालक और उसके साथ उसकी एकमात्र प्रणेता जेनी।
नील आज सुबह से ही खुश था। उसके पिता बाहर गए हुए थे और वह जेनी की तस्वीर बना रहा था। कितनी खुश होगी वह! एक-एक रेखांकन के साथ वह जेनी के विषय में सोचता जा रहा था ।जब चित्र पूर्ण हुआ तो उसकी खुशी का पारावार न रहा ।सामने जैसे मुस्कुराती हुई जेनी खड़ी थी ।दस वर्षों के अंतराल के बाद आज पहली बार नील के चेहरे पर खुशियां छलक रही थी ।उसे तो खुद याद भी नहीं था कि वह हंसता हुआ कैसा दिखता है ।अचानक उसकी खुशियां पल भर में काफूर हो गई ,सामने उसके पिता खड़े थे। वह कुछ सोच भी पता कि उसके मुंह पर थप्पड़ों की बरसात शुरू हो गई ।
"मैंने कितनी बार समझाया कि मुझे यह सब फालतू काम पसंद नहीं, पर तू नहीं मानता ।पढ़ना -लिखना तो सीखा नहीं तिस पर पूरा दिन कागज बर्बाद करते रहते हो !आखिर चाहते क्या हो तुम?"
नील चाह कर भी बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था! पिता ने उसके चित्र को उठाया और उसके दो टुकड़े कर डाले। उसे घर से बाहर धकेल कर दरवाजा अंदर से बंद कर दिया।

रेखा रानी शर्मा

रेखा रानी शर्मा

सच में अजीब है

31 दिसम्बर 2021

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रचनाएँ
ब्लाइंड
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प्रस्तुत उपन्यास" ब्लाइंड: आनंद की खोज एक पीरियड ड्रामा है जो वर्ल्ड वार के समय घटित हुआ था। जिसके विरोध में साहित्यकारों, चित्रकारों, संगीतकारों ने मिलकर एक आंदोलन शुरू किया था जिसे दादावाद नाम दिया गया था। इसका नायक एक बाइसेक्सुअल चरित्र है जिसे बचपन में ही यौन शोषण की प्रक्रिया से गुजरना पड़ा... परिणामतः वह सामान्य नहीं रह सका और जीवन पर यह दर्द उस हावी रहा। एक ही परिवेश और पृष्ठभूमि में पलने बढ़ने वाला मनुष्य चिंतन के धरातल पर अलग-अलग सोच का प्रतिनिधित्व क्यों करता है! प्रेम ..हिंसा ...लगाव और नफरत जैसी भावनाएं किस तरह उसके मन मस्तिष्क में पनपती और आकार लेती हैं ।कैसे वह इनको जीता और व्यक्त करता है। जीवन के लिए आनंद बेहद जरूरी है। लेकिन हर मनुष्य के भीतर आनंद की परिभाषा अलग-अलग है। इस उपन्यास का पात्र आनंद की खोज में ऐसे कई भावों की टकराहट से गुजरता है। जहां से प्रेम की जगह हिंसा और नफरत से रूबरू होना पड़ता है। लेकिन वह प्रेम और आनंद की राह नहीं छोड़ता। उपन्यास का पात्र हर रिश्तो को जीना चाहता है ,यह जानते हुए भी कि इस रिश्ते की परिणति उसकी सोच के अनुरूप नहीं होगी। लेकिन इससे भी उसे आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है ।उपन्यास पाठकों को कथावस्तु के सहारे चिंतन के ऐसे मोड़ तक ले जाता है जहां उसे औरों के लिए खुद को समर्पित कर देने में आनंद की अनुभूति होती है। उपन्यास रोचक एवं पटनीय है।
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