प्रेम को देख पा रहा हूं ,
उपहारों, में इजहारो में,
तुष्टीकरण के बाजारों में।
प्रेम के नशे को ...
महसूस कर रहा हूं ,
आंखों, में बातों में ,
या यूं कहूं कि संपूर्ण जिस्म में,
ना जाने कितनी किस्म में।
प्रेम के अजब गजब ढ़ग है,
ना जाने कितने प्रेम की रंग है
गुलाबी सी रूमानियत के संग,
बिखरा लाल रंग है,
हर कोई प्रेम में मलंग है।
देख पा रहा हूं,
प्रेम की मधुमास को ,
प्रेम के उल्लास को,
प्रेम के बाहुपाश को ,
श्वासो से मिली श्वास को।
सब प्रेम में लीन है ,
प्रेम में तल्लीन है,
प्रेम दिख रहा है,
प्रेम बिक रहा है,
पर अफसोस....
प्रेम महसूस क्यों हीं हो रहा ।