प्रेम क्या है प्रेम से ईश्वर प्राप्ति
जो भारत सिखाता है
जब दो शुद्ध आत्माये निःस्वार्थ भाव से मिलती है
आपस में
तब वहाँ पर सारी इच्छाएँ शून्य हो जाती है
और जहाँ शून्य होता है
तब वहाँ प्रेम उत्पन्न होता है
जहाँ प्रेम होता है वहाँ परमात्मा का वास होता है
जिस प्रकार जैसे दीपक में तेल और बाती मिलकर
एक रोशनी उत्पन्न करते है
और उस रोशनी से अंधकार दूर हो जाता है
उस उजाले के मदद से मनुष्य सामने या आस पास
रखी वस्तु देख पाता है
उसी प्रकार आत्माओ के मिलन से जब शून्य होता है
तब वहाँ जैसे उजाला हो जाने से अन्धकार दूर हो जाता है
उसी प्रकार शून्य होने से काम, क्रोध, मोह, माया, लोभ वाशना
आदि का अंत हो जाता है
जब इन सबका अंत हो जाता है
तब निःस्वार्थ प्रेम से ईश्वर की प्राप्ति होती है
और जहाँ ईश्वर होता है वहाँ पर सारी श्रृष्टि होती है
इसलिए मनुष्य को चाहिए
निःस्वार्थ प्रेम करे
जब निःस्वार्थ प्रेम करेंगे तब प्राकृतिक भी आपकी साथ देगी
इसमे कोई संदेह नही है
और जीवन में आप फ़िर कभी असफल नही हो सकते
कवि करन जगदीशपुरी