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प्रेमी आसमा

7 नवम्बर 2015

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शान्त रात्री मे,

चाँदनी सी दिप लिए

अपने हृदय को संभाले

भीगे नयनो से

निकल पड़ा मिलने वह

अपनी प्यारी धरती से।

 

पुकार रहा है वह

अपनी हृदय से

बिना किसी स्वर, किसी कोलाहल के

चल पड़ा है मिलो मिल वह

अपनी हृदय से

अपनी धरती से मिलने ।

 

इसकी सौन्दर्य आसमान को भाये

आसमान की शांति जब

जग पर छा जाये

चंद जब अपनी चाँदनी बरसाये

इसके हृदये मे भी

प्रेम उभर आये।

 

तरसे दोनों मधुर मिलन को

पर, कभी भी वह मिल न पाये

अपने हृदये मे दर्द

नयनो मे पनी लिए

दोनों फिर से बिछ जाये।

 

            संदीप कुमार सिंह।

14 नवम्बर 2015

चंद्रेश विमला त्रिपाठी

चंद्रेश विमला त्रिपाठी

अति सुन्दर रचना हेतु धन्यवाद ! शब्दनगरी की ओर से आप एवं आपके परिवार को धनतेरस-दीवाली की हार्दिक शुभकामनायें !

9 नवम्बर 2015

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रचनाएँ
sandeepsangrah
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मन की बाते
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प्रेमी आसमा

7 नवम्बर 2015
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शान्त रात्री मे,चाँदनी सी दिप लिएअपने हृदय को संभाले भीगे नयनो सेनिकल पड़ा मिलने वहअपनी प्यारी धरती से। पुकार रहा है वहअपनी हृदय सेबिना किसी स्वर, किसी कोलाहलकेचल पड़ा है मिलो मिल वह अपनी हृदय से अपनी धरती से मिलने । इसकी सौन्दर्य आसमान को भायेआसमान की शांति जबजग पर छा जायेचंद जब अपनी चाँदनी बरसायेइसक

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उसे कह न पाया

14 नवम्बर 2015
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उसे कह न पायादुख यही था, जो सह न पायासमय पर तुमको मैं, कुछ कह न पायायाद मुझे तेरा जब-जब आयाआँसुओ को मैंने जाम बनाया ।किया महशुस, तूने जब-जब सतायातेरा प्यार पर, मैं न पायाहुआ दर्द पर, मैं न बतायातूने मुझे जब-जब है सताया ।दुख यही था, जो सह न पायातेरे साथ कुछ समय न बितायायही बात है अब मुझे सतायाक्यों त

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उसे कह न पाया

14 नवम्बर 2015
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उसे कह न पाया

14 नवम्बर 2015
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दुख यही था, जो सह न पायासमय पर तुमको मैं, कुछ कह न पायायाद मुझे तेरा जब-जब आयाआँसुओ को मैंने जाम बनाया ।किया महशुस, तूने जब-जब सतायातेरा प्यार पर, मैं न पायाहुआ दर्द पर, मैं न बतायातूने मुझे जब-जब है सताया ।दुख यही था, जो सह न पायातेरे साथ कुछ समय न बितायायही बात है अब मुझे सतायाक्यों तेरे संग कुछ स

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मैं भौरा, काली हो तुम

21 नवम्बर 2015
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निकलती किरणों से खिलती हो तुमपवन के साथ मुसकुराती हो तुमकल-कल करती नदियों सी गुन-गुनाती हो तुमबारिश की बुंदों से जब नहाती हो तुम। ऐसा लगता है जीवन हो तुमहंसी खुसी की समंदर हो तुमअपसरावों से न कम हो तुमस्वर्ग से आई नई परी हो तुम। प्रातः भोर मेरी खोज हो तुमजीवन का सिर्फ लक्ष्य हो तुमअंधेरी गलियों की द

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चाहत

24 दिसम्बर 2015
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बेटी हूँ तो मिटा दिया

17 जनवरी 2016
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वो सड़क पर सोता था

24 मई 2016
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वो सड़क पर सोता था  वो सड़क पर सोता था भूखे पेटरोता था अपने ही देश का बेटा थाजिसे,आपनो ने हीलूटा था।  प्यास लगती तो बादल को देखता भूख लगती तो पेड़ो को देखता थक-हार कर धरती को देखताऔर फिर, यों ही सो जाता।  याद करता कभी गांधी जी कोयाद करता कभी भगत सिंह को याद करता कभी तुलसी और कबीर कोकभी निराला और मुक्ति

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