शान्त रात्री मे,
चाँदनी सी दिप लिए
अपने हृदय को संभाले
भीगे नयनो से
निकल पड़ा मिलने वह
अपनी प्यारी धरती से।
पुकार रहा है वह
अपनी हृदय से
बिना किसी स्वर, किसी कोलाहल
के
चल पड़ा है मिलो मिल वह
अपनी हृदय से
अपनी धरती से मिलने ।
इसकी सौन्दर्य आसमान को भाये
आसमान की शांति जब
जग पर छा जाये
चंद जब अपनी चाँदनी बरसाये
इसके हृदये मे भी
प्रेम उभर आये।
तरसे दोनों मधुर मिलन को
पर, कभी भी वह मिल न पाये
अपने हृदये मे दर्द
नयनो मे पनी लिए
दोनों फिर से बिछर जाये।
संदीप कुमार सिंह।