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वो सड़क पर सोता था

24 मई 2016

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वो सड़क पर सोता था

 

वो सड़क पर सोता था

भूखे पेट रोता था

अपने ही देश का बेटा था

जिसे, आपनो ने ही लूटा था

 

प्यास लगती तो बादल को देखता

भूख लगती तो पेड़ो को देखता

थक-हार क धरती को देखता

और फिर, यों ही सो जाता।

 

याद करता कभी गांधी जी को

याद करता कभी भगत सिंह को

याद करता कभी तुलसी और कबीर को

कभी निराला और मुक्तिबोध को।

 

फिर रात होती और सो जाता

 

सुबह होती, सूरज को देखता

कभी पेड़ों को देखता

कभी फूलों को देखता

सड़क पर पड़े कचड़ो को देखता

कभी अपने को देखता।

 

और फिर से थक कर बैठ जाता।

   

राह चलते लोगो को देखता

मंदिर के पत्थर को देखता

फिर आकाश को देखता

फिर धरती को देखता।

 

कौन ?

 

वही, जो सड़क पर सोता था

भूखे पेट रोता था

अपने ही देश का बेटा था

जिसे, अपनों ने हीं लूटा था

बेबस और लाचार था

मुसीबतों का मारा था।

 

वही, जो सड़क पर सोता था

 

संदीप कुमार सिंह

गौरी कान्त शुक्ल

गौरी कान्त शुक्ल

वही, जो सड़क पर सोता था अति सूंदर रचना

24 मई 2016

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रचनाएँ
sandeepsangrah
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