shabd-logo

वो सड़क पर सोता था

24 मई 2016

191 बार देखा गया 191

वो सड़क पर सोता था

 

वो सड़क पर सोता था

भूखे पेट रोता था

अपने ही देश का बेटा था

जिसे, आपनो ने ही लूटा था

 

प्यास लगती तो बादल को देखता

भूख लगती तो पेड़ो को देखता

थक-हार क धरती को देखता

और फिर, यों ही सो जाता।

 

याद करता कभी गांधी जी को

याद करता कभी भगत सिंह को

याद करता कभी तुलसी और कबीर को

कभी निराला और मुक्तिबोध को।

 

फिर रात होती और सो जाता

 

सुबह होती, सूरज को देखता

कभी पेड़ों को देखता

कभी फूलों को देखता

सड़क पर पड़े कचड़ो को देखता

कभी अपने को देखता।

 

और फिर से थक कर बैठ जाता।

   

राह चलते लोगो को देखता

मंदिर के पत्थर को देखता

फिर आकाश को देखता

फिर धरती को देखता।

 

कौन ?

 

वही, जो सड़क पर सोता था

भूखे पेट रोता था

अपने ही देश का बेटा था

जिसे, अपनों ने हीं लूटा था

बेबस और लाचार था

मुसीबतों का मारा था।

 

वही, जो सड़क पर सोता था

 

संदीप कुमार सिंह

गौरी कान्त शुक्ल

गौरी कान्त शुक्ल

वही, जो सड़क पर सोता था अति सूंदर रचना

24 मई 2016

8
रचनाएँ
sandeepsangrah
0.0
मन की बाते
1

प्रेमी आसमा

7 नवम्बर 2015
0
5
2

शान्त रात्री मे,चाँदनी सी दिप लिएअपने हृदय को संभाले भीगे नयनो सेनिकल पड़ा मिलने वहअपनी प्यारी धरती से। पुकार रहा है वहअपनी हृदय सेबिना किसी स्वर, किसी कोलाहलकेचल पड़ा है मिलो मिल वह अपनी हृदय से अपनी धरती से मिलने । इसकी सौन्दर्य आसमान को भायेआसमान की शांति जबजग पर छा जायेचंद जब अपनी चाँदनी बरसायेइसक

2

उसे कह न पाया

14 नवम्बर 2015
0
1
0

उसे कह न पायादुख यही था, जो सह न पायासमय पर तुमको मैं, कुछ कह न पायायाद मुझे तेरा जब-जब आयाआँसुओ को मैंने जाम बनाया ।किया महशुस, तूने जब-जब सतायातेरा प्यार पर, मैं न पायाहुआ दर्द पर, मैं न बतायातूने मुझे जब-जब है सताया ।दुख यही था, जो सह न पायातेरे साथ कुछ समय न बितायायही बात है अब मुझे सतायाक्यों त

3

उसे कह न पाया

14 नवम्बर 2015
0
1
0

4

उसे कह न पाया

14 नवम्बर 2015
0
2
0

दुख यही था, जो सह न पायासमय पर तुमको मैं, कुछ कह न पायायाद मुझे तेरा जब-जब आयाआँसुओ को मैंने जाम बनाया ।किया महशुस, तूने जब-जब सतायातेरा प्यार पर, मैं न पायाहुआ दर्द पर, मैं न बतायातूने मुझे जब-जब है सताया ।दुख यही था, जो सह न पायातेरे साथ कुछ समय न बितायायही बात है अब मुझे सतायाक्यों तेरे संग कुछ स

5

मैं भौरा, काली हो तुम

21 नवम्बर 2015
0
4
1

निकलती किरणों से खिलती हो तुमपवन के साथ मुसकुराती हो तुमकल-कल करती नदियों सी गुन-गुनाती हो तुमबारिश की बुंदों से जब नहाती हो तुम। ऐसा लगता है जीवन हो तुमहंसी खुसी की समंदर हो तुमअपसरावों से न कम हो तुमस्वर्ग से आई नई परी हो तुम। प्रातः भोर मेरी खोज हो तुमजीवन का सिर्फ लक्ष्य हो तुमअंधेरी गलियों की द

6

चाहत

24 दिसम्बर 2015
0
4
0

7

बेटी हूँ तो मिटा दिया

17 जनवरी 2016
0
5
0

8

वो सड़क पर सोता था

24 मई 2016
0
3
1

वो सड़क पर सोता था  वो सड़क पर सोता था भूखे पेटरोता था अपने ही देश का बेटा थाजिसे,आपनो ने हीलूटा था।  प्यास लगती तो बादल को देखता भूख लगती तो पेड़ो को देखता थक-हार कर धरती को देखताऔर फिर, यों ही सो जाता।  याद करता कभी गांधी जी कोयाद करता कभी भगत सिंह को याद करता कभी तुलसी और कबीर कोकभी निराला और मुक्ति

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए