पिछले भाग में आपने पढ़ा आयुष सनी के घर पर था। आयुष और सनी में बाते हो रही थी। सनी आयुष को गाँव के बारे में गाँव में अपनी जिंदगी के बारे में बता रहा था। सनी आयुष को बता रहा था की कोई मुझें नहीं समझता है कोई मेरी कदर नहीं करता है। सनी अपने पत्नी के बारे में भी आयुष को बताता है की किस तरह वो भी उसका कदर नहीं करती। सनी आयुष से कैहता है जिंदगी ने मुझें एक सबक सिखाई है दोस्त इस जहाँ में सब पैसों के पीछे भागता है पैसों की बदौलत गैर भी अपना बन जाता है और पैसा नहीं है तो अपनों का भी व्यवहार गैरो जैसा हो जाता है। अपनी बात कैहने के बाद सनी चुपचाप और शांत होकर बिस्तर के एक कोने में बैठ गया। और अब आगे..............................................
भइया क्या आप भी गड़ा मुर्दा उखाड़ कर बैठ जाते है। पुरानी बातों को याद करके रोने से कोई फायदा नहीं है भइया जो बीत गया वो बात गया। बीते हुए पल में आपके साथ क्या हुआ नहीं हुआ सब भूल जाइए और एक नई पहल की तरफ कदम बढ़ाइए एक नई जिंदगी की शुरआत कीजिए। अभी जीबन में बहुत कुछ देखना बाकी है आयुष सनी को इस कदर समझाने लगा जैसे मानों वो बारह साल का बालक नहीं बल्कि एक अस्सी साल का बूढ़ा हो। सच में वो इतनी कम उम्र में ही कुछ ज्यादा ही पदीपक्कव था। उसके तजुर्बे की दाद देनी पड़ती थी। इतनी जल्दी कैसे भूल जाऊँ! जिंदगी ने जो कुछ भी दिया एक झटके में छीन लिया। इतनी गैहरी जख्म को कैसे भूल जाऊँ मैं। और फीर उसे कैसे भूलूँ मैं उसके पेट में मेरा बच्चा पल रहा है उसे कैसे भूल जाऊँ अपनें बच्चे को कैसे भूल जाऊँ। कैहते हुए सनी कुछ ज्यादा ही उदास हो गया। देखने में सनी भले ही गुंडा और निर्दयी जैसा दिखता था प्रन्तु उसके अंदर दया थी उसके अंदर प्रेम था। मैं ऐसा तो नहीं कैह रहा की आप कभी घर लौटिए ही नहीं घर लौटने से पहले आपको कुछ करके दिखाना होगा घर लौटने से पहले आपको कुछ बनकर दिखाना होगा। और वैसे भी पैसे आने पर आपके बहुत अपनें बन जाएँगे। फीर वहाँ क्या लौटने के बारे में सोचना जहाँ अपनों को ही आपकी कदर नहीं कैहते हुए आयुष सनी के चेहरे को देखने लगा। बस इस आशा में की सनी जो भी फैसला करे वो उसके हक में हो। सनी आखिर क्या फैसला लेगा इसका उसे बिल्कुल भी अंदेशा नहीं था। बस उसके मन में यह आशा था की भविष्य में भी उसे सनी का साथ मिलेगा और सनी उसका सबसे अच्छा दोस्त बनेगा। तुम्हारी बाते एक तरह से सही भी है और एक तरह से तुम सही भी हो लेकिन तुम अभी एक नादान बालक हो और नादान की तरह सोचते हो। अपना घर क्या होता है तुम अभी यह नहीं समझ पाओगे कैहते हुए सनी बिस्तर पर लेट गया। इसका मतलब आप घर लौट जाइएगा भइया कैहते हुए आयुष भी सनी के सीने पर सर रखकर लेट गया।

इतनी जल्दी तो नहीं पर इस जगह पर मैं रैहना नहीं चाहता मेरा दम घुटता है यहाँ पर सनी ने कहा। अच्छा भइया तो फिर यहाँ से कहाँ जाइएगा आप कुछ सोचा है आपने आयुष ने पूछा। कुछ न कुछ तो करूँगा ही सनी ने कहा। बातों ही बातों में सुबह से दोपहर हो चुका था। धूप कुछ ज्यादा ही कड़क और तेज़ हो चुकी थी। बाहर निकलते ही ऐसा लगता था मानो धूप से सर फट ही जाएगा। सनी अपने कमरे में अपने बिस्तर पर लेटा हुआ घूमते हुए पंखे को देख रहा था। आयुष भी सनी के सीने पर सर रखकर लेटा हुआ था। अब सनी के मन में आयुष के लिए प्यार पनपने लगा था। अब शायद आयुष उसे अच्छा लगने गाला था और सनी आयुष को पसंद भी करने लगा था। कुछ पल यू ही शांती से बीत गया। अच्छा एक बात बताओ तुम्हारे घरवाले तुम्हें ढूंढ नहीं रहे होंगे क्या?, सनी ने प्यार से आयुष का बाल सैहलाते हुए पूछा। नहीं भइया कोई नहीं सब जानते है की मैं इधर-उधर दोस्तों के ही घर पर रैहता हूँ इसीलिए कोई नहीं ढूंढता मुझें और वैसे भी अभी तो मेरे घर पे कोई है ही नहीं तो फिर ढूँढने कौन आएगा भला आयुष ने कहा। घर पर कोई नहीं है मतलब कहाँ गए सब! और तुम क्यूँ नहीं गए उनके साथ सनी ने आश्चर्यता से पूछा। अरे भइया मैं डियूटी थोड़ी न जाऊँगा आयुष ने ठठा मारते हुए कहा। दाँत मत चियारो डियूटी तो पापा गए होंगे न तुम्हारी मम्मी तो घर पर ही होगी क्या उसे तुम्हारी चिंता नहीं हो रही होगी। क्या पापा! पापा को तो मैंने देखा ही नहीं आज तक कैहते हुए आयुष गंभीर हो गया। आयुष की बातों से ऐसा प्रतीत हो रहा था मानों एक अरसे से उसे पापा का प्यार मिला ही न हो। क्या! क्या मतलब है तुम्हारा। क्या तुम्हारे पापा नहीं है भगवान उनकी आत्मा को शांती प्रदान करें सनी ने आयुष को अपनी बाहों में जकरते हुए कहा। ये क्या बकवास करने लगे आप भइया मेरे पापा अभी मरे नहीं है अभी वो है पर पता नहीं क्यूँ वो हमलोगों के साथ नहीं रैहते आयुष ने कहा। अरे माफ करना मैंने तो जीतेजी तुम्हारे पापा को मार डाला मुझें माफ करना भई। अरे कोई न भइया होता है ऐसा कोई बात नहीं आयुष ने कहा। बातें करते-करते सनी को नींद आने लगा था अब वो बात नही करना चाह रहा था। आयुष के बीते जिंदगी के बारे में जानने की उसमें उत्सुकता तो थी लेकिन फिलहाल वो सब कुछ कल पर टाल देना चाह रहा था। अच्छा भइया एक बात बताइएगा आपनें ऐसा क्यों कहा था की मुझे कुछ और पसंद था और मील कुछ और रहा है इसका क्या मतलब है आयुष ने सनी से पूछा। अभी मुझें नींद आ रही है ये बाते मैं तुम्हें कल बताऊँगा तुम भी घर जाओं और जाकर सो जाओ। सनी ने जम्हाई लेते हुए कहा। ठीक है भइया धूप बहुत तेज़ है मैं भी यही सो जाता हूँ आपके पास घर क्या जाना आयुष ने कहा। सनी ने आयुष की बातों का कोई जबाब नहीं दिया।

आयुष भी सनी के सीने में चिपका हुआ था और चाहकर भी अलग नहीं होना चाह रहा था। उसे सनी के सीने में चिपकाना अच्छा लगता था। कुछ ही पल में दोनों को नींद आ गई और दोनों गैहरी नींद में सो गए।
क्या सनी आयुष के लिए कुछ करेगा। क्या आयुष के बीते जिंदगी के बारे में सनी को कुछ पता चलेगा। क्या सनी अपनी पसंद के बारे में आयुष को बताएगा। क्या आयुष को कोई ढूंढता हुआ सनी के कमरे में आएगा। क्या दोनों सच में अच्छे दोस्त बन जाएँगे या फिर सनी अपने गाँव लौट आएगा और दोनों बिछड़ जाएँगे। क्या होगा आगे जानने के लिए जरूर पढ़िए अगला भाग। और जरूर करे लेखक को फॉलो।
कहानी जारी रहेगी............................................