प्रिय पाठकों अभी तक आपने पढ़ा वो बालक अपनी मस्ती में कहीं जा रहा है। उसके पीछे ही सनी कुछ दूरी पर छुप-छुप कर उसका पीछा कर रहा है। सनी को कुछ मालूम नहीं है की आखिर वो बालक जा कहाँ रहा है। और अब आगे.......
वो बस चुपचाप उसका पीछा कर रहा है। कुछ दूर चलने के बाद शायद उस बालक को एहसास हो जाता है की कोई उसका पीछा कर रहा है, डरते हुए वो पीछे मुड़कर देखता है। सनी बड़ी मुश्किल से अपने आप को छुपा पाया था। अपने पीछे किसी को न पाकर उस बालक को जरा तसल्ली होता है और वो फिर अपने रास्ते चलने लगता है। काफी देर तक चलने के बाद वो बालक एक पार्क में पहुँचता है। उसका पीछा करते हुए सनी भी उसी पार्क में पहुँचता है। सनी पार्क के एक कोने में जाकर बैठ जाता है और उस बालक पर नज़र रखने लगता है। बालक को देखते हुए सनी को कुछ हैरानी होता है। पार्क में बहुत सारे बच्चे खेल रहे होते है पर वह बालक न तो किसी बच्चे के साथ खेलता है और न ही किसी बच्चे से बात करता है। वो बालक चुपचाप पार्क के एक कोने में बैठा रैहता है। सनी बड़ी हैरानी से उस बालक को देख रहा होता है। सनी का बहुत मन हो रहा होता है की वो जाकर उस बालक से कुछ पल बात करे लेकिन वो डर भी रहा होता है क्योंकि ये गाँव नहीं है शहर है। क्या पता वो बालक सनी पर कोई इल्ज़ाम ही लगा दे। फिर भी सनी डरते-डरते किसी भी तरह हिम्मत करके उस बालक के पास जाकर बैठ जाता है। बैठते ही वो बालक सनी को घूरकर देखता है, फिर वो बालक कहीं और देखने लगता है। सुनो तुम से कुछ पल बात कर सकता हूँ क्या डरते हुए सनी उस बालक से पूछता है। अगर मैं गलत नहीं हूँ तो आप ही कब से मेरा पीछा कर रहे है क्या मैं इसका कारण जान सकता हूँ की आप क्यूँ मेरा पीछा कर रहे है। बालक ने सामने की ओर देखते हुए ही कहा। देखो मेरा कोई गलत इरादा नहीं है बस तुम मुझें अच्छे लगते हो इसीलिए मैं चाहता हूँ की तुम हमेसा मेरे सामने रहो सनी ने बालक से कहा। क्या! ये क्या बोल रहे हो आप ऐसा कैसे हो सकता है मैं तो आपको जानता भी नहीं हूँ, हाँ पर एक दो बार देखा जरूर हूँ आपको बालक ने कहा। जान पैहचान नहीं है तो कर लेते है न क्या दिक्कत है वैसे तुमने मुझें वहाँ बालकोनी में देखा है न सनी ने कैहते हुए पूछा। हाँ मैंने आपको वहीं देखा है और शायद आपने मुझें मेरे छत पर देखा है बालक ने जबाब देते हुए कहा। वैसे जब मैंने तुम्हें पैहली बार देखा था तभी तुम मुझें अच्छे लगे थे क्या हम दोस्त बन सकते है सनी ने कैहते हुए पूछा। अच्छे तो मुझें आप भी लगे थे लेकिन आप एक अजनबी है इसीलिए, इतना बोलकर वो बालक कुछ देर चुप हो गया। वैसे आपका नाम क्या है उस बालक ने अचानक से पूछा।मेरा नाम सनी है और मैं इस शहर में नया हूँ अभी कुछ दिन ही हुए है मुझें यहाँ आए हुए सनी ने कहा। मेरा नाम आदित है बालक ने सनी को अपना नाम बताया। वैसे बढ़ी हुई दाढ़ी में आप एकदम अल्लु अर्जुन की तरह दिखते है बालक ने सनी से फिर कहा। चलो किसी ने तो हीरो कहा नहीं तो बाकी लोग तो गुंडा ही बोलते है सनी ने एक लंबी सांस खिंचते हुए कहा। वो तो लोगों का सोचने का अपना-अपना तरीका है बस आदित ने कहा। वैसे सोचा तो बहुत कुछ था तुम्हें लेकर खैर छोड़ो भी अब सनी ने कहा। क्या मतलब है आपका आदित ने पूछा। कुछ नहीं बस यूँ ही मेरा कुछ और ही ख्याल था अगर हम दोस्त नहीं बनते तो शायद मैं तुम्हारा अपहरण करता सनी ने कहा। अच्छा और अब हम दोस्त हो गए है तो आप मेरा अपहरण नहीं करोगे आदित ने पूछा। नहीं बिल्कुल भी नहीं वैसे भी मुझें तुमसे जो चाहिए वो तो मिल ही जाएगा फिर अपहरण करने से क्या फायदा सनी ने कहा। अच्छा तो फिर आप मुझें पैसों के लिए अपहरण नहीं करने वाले थे आपको मुझसे कुछ और ही चाहिए लेकिन आपको मुझसे चाहिए क्या आदित ने पूछा। कुछ नहीं बस तुम्हारे साथ कुछ वक्त बिताना चाहता हूँ। तुम्हारे साथ पल दो पल बातें करना चाहता हूँ और कुछ भी नहीं चाहता मैं। और यह सब हमारी दोस्ती से संभव है सनी ने कहा। और अगर मैं दोस्ती करने से मना कर दूँ तो आदित ने पूछा। तो क्या हो सकता है की मैं तुम्हें अपहरण कर लूँ या फिर नहीं भी कर सकता हूँ ये तो मेरी मर्ज़ी के ऊपर निर्भर है सनी ने कहा। वैसे आप बुरा न माने तो आपके और मेरे बीच दूरी ही अच्छा है आदित ने कहा। ठीक है कोई बात नहीं मैं समझ गया तुम क्या कैहना चाहते हो शायद अब मुझें जाना चाहिए सनी ने कहा। तभी अचानक से एक आवाज़ के साथ सनी का ध्यान टूटा। सनी भईया, सनी भईया। ये और कोई नहीं आयुष ही था जो एक बार फिर सनी के कमरे तक चलकर आ गया था। आयुष की आवाज़ से सनी का कल्पना टूटा और उसने देखा की उसका पूरा कमरा कागज़ के टुकड़े से भड़ गया है। पूरे कमरे में कागज का चिथड़ा देखकर आयुष को भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था वो हैरानी से सनी को देखने लगा। आयुष कुछ देर तक सनी को देखता रहा। फिर वो सनी के पास आकर बैठ गया। ये क्या भईया ये क्या कर रहे है आप। आप ठीक तो है कुछ हुआ तो नहीं है आपको आयुष ने सनी से पूछा। नहीं कुछ नहीं बस यूँ ही कैहते हुए सनी कागज का चिथड़ा उठा-उठा कर जमा करने लगा। वैसे तुम इस वक़्त यहाँ क्या करने आए हो सनी ने आयुष से पूछा। मैं तो बस आपसे मिलने चला आया अभी मम्मी डियूटी से नहीं लौटी है अकेले घर पर मुझें मन नहीं लग रहा था आयुष ने कहा। वैसे तुम मुझें लेकर कुछ परेशान तो नहीं हो सनी ने फिर आयुष से पूछा। नहीं तो मुझें लगता है की मुझें आपका आदत लग गया है जब तक मैं आपको देख न लूँ जब तक मैं आपसे बात न कर लूँ तब तक दिल को सुकून नहीं आता आयुष ने कहा। अच्छा तो ये बात है कैहते हुए सनी कागज का टुकड़ा उठता रहा।
आखिर आयुष इस वक़्त सनी के कमरे में क्यूँ आया है। क्या सच में उसकी मम्मी डियूटी से नहीं लौटी है, आयुष सच बोल रहा है या फिर झूठ। क्या मोड़ लेकर आएगी दोनों की दोस्ती क्या होगा आगे जानने के लिए पढ़िए अगला भाग। और जरूर करे लेखक को फॉलो।
कहानी जारी रहेगी.................