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रंजीत कुमार मिश्रा के बारे में

विज्ञान आध्यात्म एवं काव्य मेरे जीवन के तीन स्तम्भ हैं. यह मंच मेरे लिए अपने भाव अभिव्यक्ति का माध्यम है तथा मित्रो से जुड़ने का भी .......

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रंजीत कुमार मिश्रा की पुस्तकें

रंजीत कुमार मिश्रा के लेख

प्रमाण

1 अगस्त 2015
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क्या क्या प्रमाण दूँ मैं दुनिया के मंच पर अब उठ गया विश्वास है इस क्षल प्रपंच पर दर्पण को दूँ प्रमाण की दीखता हूँ मैं सुन्दर लोगों को ये प्रमाण भरा ज्ञान है अंदर और प्रमाण ये की मैं कितना सच्चा हूँ माँ बाप को प्रमाण की मैं अच्छा बच्चा हूँ गुरु को भी तो प्रमाण की हूँ मैं आज्ञाकारी और स

गुरु मुख से जो पाया ज्ञान अर्जुन तू बड़भागी है

1 अगस्त 2015
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भ्रम की जाल जो काट दे और कर दे सत्य प्रत्यक्ष और इशारा कर दे ताकि ज्ञात हो अंतिम लक्ष्य जैसे कृष्णा ने अर्जुन के माया के जाल को काटा युद्धभूमि में भी जीवन के सारतत्व को बांटा माना युद्ध भूमि में नहीं मैं, न शत्रु ही हावी है अंतर्मन का युद्ध निशचय ही मायावी है गुरु मुख से जो पाया ज्ञान

ये न कहना कुछ कमी थी पूर्वजों के खून में

30 जुलाई 2015
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बेच कर ज़मीर अपना चल पड़े गुरूर में शेष जो आदर्श था उसे झोंक कर तंदूर में तर्क बस इतना की अब तो ये समय की मांग है थक गए हैं रेंगते, लगाना लम्बी छलांग है ज्ञात रहे गिर न जाओ अपने ही जूनून में ये न कहना कुछ कमी थी पूर्वजों के खून में

श्रद्धांजलि

29 जुलाई 2015
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न जन्म न मृत्यु बस शुद्ध आत्मा करोड़ों के आँखों में छलका गया आंसूं और कर्म ऐसा की, है विश्व नतमस्तक इतिहास में अंकित वो ज्ञान पिपासु कोई ख़ास नहीं वो, है आदमी वो आम भारत के विचारों को दिया नित नया आयाम कोई एपीजे कहता है , कहता कोई है कलाम उस कर्मयोगी को है मेरा दंडवत जीवन ही जिसका है एक स

निज यात्र मेरी ये ईश्वर की कारवां है .................

24 जुलाई 2015
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आवाज़ देने पर भी आया नहीं जो कोई चलता रहा मैं युहीं अंजान उन राहों पर जो धुप की तपिश थी और छांव की शीतलता मलता रहा मैं उनको, राह की घावों पर कभी मौन के उत्सव में, कभी शोर में अकेला कभी मखमली घांसों पर कभी धुल से मैं खेला पर उसकी योजना का अभिव्यक्ति मात्र मैं था जो चल रहा था मेरे हमसफ़र की भाँती

आशीर्वाद

21 मार्च 2015
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मुझे बस तुम्हारा आशीर्वाद चाहिए नचिकेता को यम से जो ज्ञान था मिला मुझे तुमसे वैसा ही संवाद चाहिए मैं न प्रह्लाद हूँ , न अर्जुन सा गुणी न हूँ जैसे थे ज्ञानि ही नारद मुनि है विनती अनुभव हो वो सत्य शाश्वत स्वीकार करो मेरा तुम मौन दंडवत

डार्विन

19 मार्च 2015
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मैंने जो दुनिया देखि , अपने आँखों से उसमे तो डार्विन के विचार ही हावी हैं जो कहता है की अगर तुम्हे है जीना यहाँ तो विकल्प नहीं, संघर्ष अवस्यम्भावी है

ज़रिया

17 मार्च 2015
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उतार चश्मा जो देखा सभी एक थे फर्क जो भी था मेरे नज़रिये में था मुझको लगता था मंज़िल है पाना अहम क्या पता था की आनंद जरिये में था

अफ़सोस

13 मार्च 2015
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विचार और व्यवहार में जो बढ़ी हैं दूरियां उसके ही कारण वातावरण असंतोष का और प्रेम से परे जहाँ सिर्फ शिष्टाचार हो तो उठता फिर सवाल है प्रत्यक्ष और परोक्ष का महज निभाते रिश्ते हम मिलाते सिर्फ हाँथ हैं ये देखते कहाँ हैं की,ह्रदय का भी क्या साथ है जब रिश्ते सिमट जाते हैं आकलन में गुण दोष के रह

तथास्तु

12 मार्च 2015
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सुना है मैंने असंख्य मुख से लेता है उपरवाला परीक्षा और सुना है ये भी , हमारा क्या है रखे वो जैसे ,उसकी हो इक्षा ​परीक्षा नहीं अपितु स्वइक्षा है जो सोंचते हो, वही है मिलता विचारों के प्रबल नीव पर ही कोई कमल का है फूल खिलता है उसकी ललक, या विषय वस्तु है वो कृपा जो करदे तो तथास्तु है

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