भ्रम की जाल जो काट दे और कर दे सत्य प्रत्यक्ष
और इशारा कर दे ताकि ज्ञात हो अंतिम लक्ष्य
जैसे कृष्णा ने अर्जुन के माया के जाल को काटा
युद्धभूमि में भी जीवन के सारतत्व को बांटा
माना युद्ध भूमि में नहीं मैं, न शत्रु ही हावी है
अंतर्मन का युद्ध निशचय ही मायावी है
गुरु मुख से जो पाया ज्ञान अर्जुन तू बड़भागी है
वही ज्ञान पाने की अब इक्षा मन में जागी है
जैसा गुरु मिला तुमको क्या मुझको मिल पायेगा
मेरे मन के कुरुक्षेत्र में क्या कृष्ण कोई आएगा