इस मझधार में एक तेरा ही सहारा है
मैंने खुद ही किये थे बंद अपने दरवाजे
ये जानते हुए की मिलने को तैयार हो तुम
ये सच है, गया था भूल दुनियादारी में
की मैं तो कठपुतली, सूत्रधार हो तुम
तुम तो हो विक्रम , विचारों से बैताल हूँ मैं
मौन रहते हो तुम, आदत से वाचाल हूँ मैं
समय नहीं है ,न मतभेद की गुंजाइश है
करोगे पूर्ण क्या आखरी य