विचार और व्यवहार में जो बढ़ी हैं दूरियां
उसके ही कारण वातावरण असंतोष का
और प्रेम से परे जहाँ सिर्फ शिष्टाचार हो
तो उठता फिर सवाल है प्रत्यक्ष और परोक्ष का
महज निभाते रिश्ते हम मिलाते सिर्फ हाँथ हैं
ये देखते कहाँ हैं की,ह्रदय का भी क्या साथ है
जब रिश्ते सिमट जाते हैं आकलन में गुण दोष के
रहता नहीं कुछ शेष है जीवन में बस अफ़सोस के