shabd-logo

रास्ते : दिखाते है या सिखाते है।

11 अक्टूबर 2023

5 बार देखा गया 5


      हर रोज़ की तरह आज भी मैं लाईब्रेरी जा रहा था, अचानक रास्ते मे मुझे एक व्यक्ति मिला। उसने मुझे कहा‌‌- “राम राम भाई साह्ब।“ तब मैंने उसकी और ध्यान से देखा एक दुबला पतला नवयुवक, बाल बिख्ररे हुये, मुहँ गंदा सा, कपडो से अजीब सी बदबू आ रही थी, कपडे भी फटे हुये  जैसे कई महिनो से नहाया न हो।
उसे देखकर थोडा अजीब तो लग रहा था लेकिन मैंने उसे राम राम किया और मैं अपने रास्ते चला गया।

अगले दिन मैंने उसे एक आम के पेड के नीचे बैठे देखा वो अकेला बैठकर खुद से बात कर रहा था। शायद वह खाना खा रहा था तब मुझे समझ आया कि वह मानसिक रुप से बिमार (जिसे आम भाषा में पागल कहा जाता है।) व्यक्ति है।यह देखकर मैं चला गया लेकिन मेरे मन में अभी तक उसका चेहरा घुम रहा था। बेचारे की वह कौनसी स्थिती रही होगी जब वह अपनी मानसिक परेशानियो को सम्भाल नही पाया होगा और इस तरह से पागल हो गया होगा ।

 क्या उस बेचारे की किस्मत आगे चलकर ऐसा रुप दिखाएगी उसने कभी सोचा था क्या?
लेकिन उसे इस बात से फर्क ही नही पड्ता होगा कि वह ऐसा लग रहा है क्योकि अगर दूसरो की नज़र से देखा जाये तो वह अजीब लगता होगा मगर वह तो अपने हिसाब से ठीक रहता क्योकि उसकी आंखो के सामने तो आज भी वह उसी से बात कर रहा है जिससे पह्ले बात करता था।
 बस यही सोचता हुआ मैं अपनी पढाई के लिये चला गया। हैरानी मुझे तब हुयी जब मैंने कुछ दिनो बाद किसी ऐसे नये व्यक्ति को देखा जो बिल्कुल उसी की अवस्था से गुज़रा हुआ लग रहा था।एक सरकारी स्कूल की दिवार से टिक कर बैठा हुआ खुद से ही बात कर रहा था।
आते जाते लोग उसे देखकर निकल जाते लेकिन कोई उसकी तरफ ठीक से देखता भी नही शायद लोगो को ऐसे माहौल की आदत सी हो गयी परंतु मैंने उसी क्षण एक छोटे लड्के को देखा जिसे सही गलत की समझ नही थी उसकी नज़र मे तो सभी लोग एक जैसे थे तब उसने इस अजीब से व्यक्ति को देखा और अपनी मॉ से पूछा कि ये आद्मी ऐसा अकेला बैठा किससे बात कर रहा है तब उसकी मॉ ने कहा की – बेटा ये आदमी पागल है उससे दूर रहो और वह तुरंत डर गया।

 उस लड्के के चेहरे पर डर साफ दिख रहा था। क्या उस मॉ को अपने बेटे को ऐसा कहना ज़रुरी था? ऐसा भी तो वह बोल सकती थी कि बेटा ये आद्मी बिमार है इसलिये ये ऐसा हो गया है।
जिस तरह उस मॉ ने अपने बेटे से कहा कि – “बेटा ये आदमी पागल है उससे दूर रहो।“ हो सकता है उस समय से उस छोटे से बालक के मन मे ऐसी छ्वि बन गयी हो कि वह उनके प्रति सहानुभूति व्यक्त करने कि बज़ाय डर के कारण उनसे दूर ही हो गया हो।

यही सबकुछ देखकर मुझे ख्याल आया कि क्या हमे ऐसे व्यक्तियो के प्रति सिर्फ सहानुभूति प्रकट करना चाहिये या उनकी मदद भी करना चाहिये। रोज़ की तरह आज भी यही सब सोचता हुआ अपने रास्ते पर चल दिया।
रोज़ यही सब देखता हुआ एक दिन मैं भी बाकी सभी लोगो की तरह नज़रअंदाज़ करके अपनी पढाई करने चला गया और वह व्यक्ति वहा खुद से ही बाते करता रहा लोग आते रहे, जाते रहे, उसे देखते रहे और ये सारी बाते जैसे दूसरो के मन मे दबी रहती हैं वैसे ही मेरे मन मे भी कही दब गयी।

Shubham panwar की अन्य किताबें

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए