अपनी बर्बाद फसल को देखते हुये मैंने एक किसान से कहा कि ...
सिर को पकडे हुये अपनी बर्बाद फसल को कातर निगाहों से देखते हुये मैंने एक किसान से कहा कि चल उठ मन की बात ही सुन ले सुकून मिलेगा। वह उठा और अपने मन की जो सुनायी वह बयान करता हूँ---- बोला " कहाँ जाऊँ मैं अपनी यह बर्बाद फसल लेकर; सोचता हूँ मर जाऊँ इसी आम के पेड़ पर लटक कर; घर जाऊँ कैसे? मेरी बूढी माँ