ऋषि राज
4 सितंबर, 1975 को दिल्ली में जन्मे ऋषि राज भारत सरकार के परिवहन क्षेत्र से जुड़े सार्वजनिक उपक्रम में संयुक्त निदेशक के समकक्ष पद पर कार्यरत हैं। सन् 1994 में भारतीय रेल कीसेवा में नियुक्ति से भारत भ्रमण कि शुरुआत हुई। वर्ष 2007 में लेह, लद्दाख, द्रास एवं कारगिल क्षेत्रों का विस्तृत दौरा किया और अपनी पहली डॉक्युमेंटरी फिल्म बनाई, इसे कारगिल युद्ध के शहीदों को समर्पित किया है। यहीं से डॉक्युमेंटरी बनाने के क्षेत्र में भी कदम रखा। सन् 2012 में कैलाश मानसरोवर की यात्रा के अनुभवों पर पहली पुस्तक ‘कैलाश दर्शन—कुछ यादें, कुछ बातें’ से लेखन शुरू किया। इस पुस्तक को भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने ‘राहुल सांस्कृत्यायन पुरस्कार’ से सम्मानित किया। सन् 2013 में यह ‘Height of Faith: Kailash’ शीर्षक से अंग्रेजी में प्रकाशित। सन् 2014 में अपनी तवांग और बूमला क्षेत्र की यात्रा के अनुभवों को डॉक्युमेंटरी ‘My Journey to the Splendid Tawang’ द्वारा दिखाया। 2015 में ही उनकी पुस्तक ‘अतुल्य भारत की खोज’ भी प्रकाशित हुई, जिसमें उन्होंने भारत के 31 राज्यों में किए गए भ्रमण पर आधारित यात्रा-वृत्तांतों को सँजोया है। 2016 में डॉक्युमेंटरी ‘The Divine Journey to Gangotri and Yamunotri’ भी बनाई। ‘देशभक्ति के पावन तीर्थ’ लेखक की तीसरी पुस्तक है। वेबसाइट : http://www.exploringindiawithrishi.com/
50 महान् स्वतंत्रता सेनानी
जिन लोगों ने देश को स्वाधीन कराने का स्वप्न देखा, इसकी कल्पना की और दृढ निश्चय कर अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया, उनका पुण्य स्मरण करना हमारा पुनीत कर्तव्य है। उनके बलिदान को आज की युवा पीढ़ी तक पहुँचाना हमारा परम धर्म है। जिस आजादी की हवा में हम साँस ल
50 महान् स्वतंत्रता सेनानी
जिन लोगों ने देश को स्वाधीन कराने का स्वप्न देखा, इसकी कल्पना की और दृढ निश्चय कर अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया, उनका पुण्य स्मरण करना हमारा पुनीत कर्तव्य है। उनके बलिदान को आज की युवा पीढ़ी तक पहुँचाना हमारा परम धर्म है। जिस आजादी की हवा में हम साँस ल
देशभक्ति के पावन तीर्थ
यह पुस्तक समावेश है यात्रा-वृत्तांत और वीरों से जुड़े ऐतिहासिक स्थलों का, जिसमें लेखक ने प्रयास किया है कि वे अत्यंत रोचक तरीके से आज की पीढ़ी को हमारे देश के स्वर्णिम इतिहास से अवगत करवाएँ। इस पुस्तक की शुरुआत 1857 की क्रांति से जुड़े स्थानों जैसे क
देशभक्ति के पावन तीर्थ
यह पुस्तक समावेश है यात्रा-वृत्तांत और वीरों से जुड़े ऐतिहासिक स्थलों का, जिसमें लेखक ने प्रयास किया है कि वे अत्यंत रोचक तरीके से आज की पीढ़ी को हमारे देश के स्वर्णिम इतिहास से अवगत करवाएँ। इस पुस्तक की शुरुआत 1857 की क्रांति से जुड़े स्थानों जैसे क
कारगिल - एक यात्री की ज़ुबानी
लेखक ऋषि राज को दो बार कारगिल जाने का अवसर प्राप्त हुआ है। अपनी इन यात्राओं के दौरान उन्होंने उन जगहों को बहुत नजदीक से देखा, जहाँ हमारे वीर शहीदों के बलिदान की अमर गाथा लिखी गई। द्रास, कारगिल, काकसर और बटालिक के इलाके मूक गवाह हैं, हमारे जवानों द्वा
कारगिल - एक यात्री की ज़ुबानी
लेखक ऋषि राज को दो बार कारगिल जाने का अवसर प्राप्त हुआ है। अपनी इन यात्राओं के दौरान उन्होंने उन जगहों को बहुत नजदीक से देखा, जहाँ हमारे वीर शहीदों के बलिदान की अमर गाथा लिखी गई। द्रास, कारगिल, काकसर और बटालिक के इलाके मूक गवाह हैं, हमारे जवानों द्वा