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रिसता घाव "भाग २"

2 अप्रैल 2024

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भीड़ काफी थी , कुछ देर में कमली बारी आ ही गई नाम पुकारा गया ।

कमली ! कमली !

मोहन और कमली  तुरंत उठ कर डॉक्टर के कमरे में चले गए , डॉक्टर ने जांच पड़ताल करने के बाद कुछ खून और पेशाब के नमूने लेने के लिए कंपाउंडर को आवाज लगाई "रावत"

रावत आया और वो दोनों उसके साथ प्रयोगशाला में चले गए ।

वहां नमूने देने के बाद , वो दोनों वापस डॉक्टर के पास आ गए ।

डॉक्टर साहब ने भी उन्हें पर्ची थमाई फीस ₹५० लिए कुछ दवाइयां लिखी और कहा कि कल रिपोर्ट आ जायेगी उसके बाद इलाज शुरू किया जाएगा ।

कमली और मोहन वापस कमरे आ गए , बेसब्री से अब रिपोर्ट का इंतजार था ।

दिन बीता ,रात भी करवटों में गुजर गई ।

अगली सुबह मोहन और कमली, खून और पेंशन की जांच की रिपोर्ट लेने डॉक्टर सुखदेव की क्लिनिक पहुंच गया ।

प्रयोगशाला से रिपोर्ट लेने के बाद , जब डॉक्टर को दिखाई डॉक्टर ने रिपोर्ट पड़ने के बाद कहा इन्हें ए टी टी है , और यह गर्व से भी है और इनका इलाज लंबा चलेगा ।

मोहन को समझ नही आया  और वो पूछ बैठा , डॉक्टर साहब  ए टी टी कौन सी बीमारी है ।

डॉक्टर में बड़े प्यार से समझते हुए कहा , इन्हे टीवी है लेकिन घबराने की कोई बात नही है ।

यह ठीक हो जाएंगी  ९ महीने का कोर्स है , हम इन्हें हल्की दावा देंगे और साथ ही हमें  इनके गर्व में पल रहे बच्चे का भी ख्याल रखना है ।

इनके खान पान का तुमको विशेष ध्यान रखना होगा , अब यह एक नही दो जान है ।

मोहन हां में सर हिलाते हुए "जी"  डॉक्टर की बातों पर प्रतिक्रिया कर रहा था क्योंकि मोहन टीवी की बीमारी की बात पहले से ही जनता था ।

रोज के दिमाचार्य में कमली के अब , दवाइयां भी जुड़ चुकी थी ।

समय बीतता जा रहा था , कमली पहली बार मां बनने जा रही थी ।

यह उसके लिए नया और अभूतपूर्व अनुभव था ।

वो अपने गर्व में पल रहे शिशु को लेकर काफी उत्साहित थी ।

सारा दिन बच्चे के नाम के बारे में सोचती , लड़का होगा तो ये नाम रखूंगी लड़की हो तो ये नाम रखूंगी तरह तरह के नाम उसके दिल ओ दिमाग में आते रहते ।

एक रोज कमली ने अपने पति मोहन से कहा हे जी सुनते हो !!

मोहन : हां बोलो जी ।

क्या बोलूं मैं कह रही थी कि क्या तुमने कोई नाम सोचा है अपने होने वाले बच्चे का कमली मुस्कुराते हुए बोली ।

नही तो पर हां सोचता हूं लड़का होगा सुमित और लड़की होगी तो सुमिता मोहन ने उत्तर में कहा ।

कमली ने होने वाले बच्चे के नाम पर अपनी राजी की मोहर  लगा दी ।

मोहन  शराब पीना तो छोड़ चुका था , वो भी कमली ने जब एक रोज बहुत झगड़ा किया था  मगर उसकी जुए की आदत नही छूट रही थी ।

मोहन आए दिन जुआ में पैसे हारते जाता कभी जीत के भी आता पर जीता हुआ पैसा गिनती में माही आता ।

घर की हालत गिरती जा रही थी मोहन को भी गृहस्थी का नया नया ही भार उठाना हुआ था कोई खास अनुभव नहीं था । पिताजी सर पर थे चिंता खास  ना थी ।

एक रोज की बात जिस मकान में ,कमली और मोहन रहते थे ।

उसका मकान मालिक के कोई रेतेदार भी उस मकान में रहते थे । उनका एक नौकर मन बहादुर , एक मकान में रहने के कारण मन बहादुर और मोहन में दोस्ती हो गई थी । और दोनो काफी एक दूसरे पर भरोसा भी करते थे ।

मन बहादुर को दो तीन दिन के लिए कहीं जाना था , उसके साहब ने उसे पांच हजार रुपए दिया था तो बहादुर ने वो रुपए मोहन को यह कहते हुए दिए कि मेरे साहब आयेंगे तो उन्हे यह रुपए वापस दे देना कहना की मैने दिए है ।

मोहन में रुपए ले लिए ,और मोहन वहां से चला गया ।

अगले दिन मोहन उन रुपए से लॉटरी के टिकट खरीद ले आया , वो तो संयोग रहा कि पांच हजार रुपए वापस इनाम के रूप में निकल गए वरना कलेश खड़ा हो जाता ।

और इतने पैसे लौटा पाना मोहन के लिए बहुत मुश्किल हो जाना था ,अतः मन बहादुर के आते ही उसे रुपए वापस दे दिए  चियुंकि वो अपने साहब से पहले खुद वापस आ गया था ।

कमली पेट से थी जिस कारण उसकी तबियत में अब नई तकलीफें होनी शुरू हो गई ।एक रोज की बाती आधी रात को कमली के पेट मेंबहुत जोरों से दर्द हुआ कमली तड़प उठी मोहन भी घबरा गया मोहन ने अपने पिता जी को जगाया उनकी सलाह से पड़ोस में एक बहुत बड़ा नर्सिंग होम था वहां से डॉक्टर को बुला ले आया ।

डॉक्टर ने मुयाना करने के बाद एक इंजेक्शन कमली को लगा दिया कमली को कुछ देर बाद आराम आ गया ।

डॉक्टर ने ₹१००० अपनी फीस और दावा के पैसे लिए और जाते हुए बोला " कल इन्हें चेकअप के लिए  नर्सिंग होम ले आना वहां लेडी डॉक्टर इनका अच्छी से चेकअप कर लेंगे "

मोहन ने अगली सुबह १० बजे कमली को नर्सिंग होम ले गया जांच से पता चला की कमली के गर्वधान में इन्फेशन हो गया है जिस कारण दर्द हुआ और उन्हें इसके इलाज के लिए रोज १० दिन तक एक इंजेक्शन जेंटामैसिन के लगेगे ।

दस दिन तक इंजेक्शन लगे उधर से टीवी का इलाज भी चल रहा था । दिसंबर भी गुजर गया नए साल १९९५ की नई सुबह के साथ नई शुरुवात हुई ।

कमली के चेहरे पर  छाइयां सी पड़ने लगी थी खान पान तो मोहन अपने हिसाब से ठीक ही रखता था पर शायद कमली के इच्छा का ना होता था ।

कभी कभी कमली ने दिन भूखे पेट भी गुजरे है पानी पीकर अपने को जिंदा रखा था ।

(खैर फरवरी का वो महीना आ गया और कमली मां बन गई) मोहन तीन दिन तीन रात हॉस्पिटल में बच्चा जच्चा वार्ड के बाहर ही बैठा रहा और शुभ समाचार की इंतजार करता रहा ।

अचानक एक आवाज लाउडस्पीकर से गूंजी कमली के साथ जो है वो बच्चे के कपड़े ले कर लेबर रूम के बाहर आ जाएं ।

मोहन को कुछ समझ में नहीं आया कपड़े कैसे कपड़े और मोहन लेबर रूम के बाहर नर्स से बोला मैं मोहन कमली के साथ हूं ।

नर्स: कपड़े कहां है जल्दी से कपड़े दो बच्चे के ।

मोहन ने इंकार करते हुए कहां सिस्टर मैं तो कपड़े लाया नही ।

नर्स बोली : अपनी जैकेट उतारो जल्दी से बच्चे को ठंड लग जायेगी ।

मोहन ने जैकेट उतर कर नर्स को पकड़ा दिया ।

कमली की देख रेख में कमली की मां भी गांव से कमली के पास आई हुई थी शायद महीना ही हुआ था ।

वो भी जच्चा बच्चा देखने  अस्पताल पहुंच गई । कमली अपनी मां को देख कर बहुत खुश होई और अपनी नन्ही सी बच्ची को हाथ में लिए अपनी मां को दिखाते हुए बोली मां ये देख कितनी  छोटी सी है मैं क्या करूं इसका और कंठ से रुद्र स्वर आने लगे ।

कमली की मां बोली चिंता न कर बेटी यह खूब सुंदर होगी अच्छी सेहतमंद भी होगी अपना दिल मत दुखी कर देखना यह लड़की एक दिन तेरा नाम रोशन करेंगी ।

कमली की मां कमली को , ठहासा बंधाए जा रही थी ।

और कमली धीरे धीरे अपने में , हिम्मत जगाए जा रही थी ।

कमली तीन दिन  हॉस्पिटल में रही इस बीच जहां मोहन जिस मकान में रहता था , उस मकान को मकान मालिक ने बेच दिया था मोहन का सारा सामान मोहन की पिता भरोसी राम ने दूसरी जगह किराया पर एक कमरा लेकर वहां स्थानांतरित कर दिया था ।

चौथे दिन कमली को हॉस्पिटल छुट्टी दे दी गई , और कमली अपने पति और माँ संग बच्ची को किराया के नए कमरे में ले आई ।

कमली की सास ने गांव में अपनी पोती का नामकरण भी कर दिया था "धनी" हालांकि यह नाम नवजात शिशु का नही रखा गया बच्ची का नाम सुनैना रखा गया सवाली रंग की सुनैना बहुत ही सुशीला और हंसमुख थी ।

कमली की ननद भी कमली के मां के साथ ही गांव से आई थी , अपनी भाभी की देखभाल के लिए ।

कुछ दिनों बाद कमली के मां और ननद दोनों मोहन (कमली के पति) के साथ गांव चले गए जब वो गांव जा रहे थे तो बहुत बड़ा संकट आते आते टल गया हुआ यूं कि बस ड्राइवर एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में बस दुर्घटनाग्रस्त हो गई वो किस्मत अच्छी थी तीनों को आंशिक चोटें आईं ।

बस में एकाध को छोड़ कर किसी को खास नुकसान नहीं हुआ था ।

करीब दो तीन दिन बाद मोहन शहर लौट आया , और पत्नी तथा सुनैना संग दैनिक क्रियाकलापों में लग गए ।

दिनचर्या , गरीबी और बेबसी में चल रही थी मोहन की तनख्वाह भी खास नहीं थी ऊपर से बच्ची के लिए मां का दूध भी नहीं उतरता था , डिब्बे का दूध बच्ची को पिलाना होता था एक सप्ताह में आधा किलो का डिब्बा खत्म हो जाता था ।

करीबन महीने में चार डिब्बे लगते थे , अपना राशन पानी भी बहुत मुश्किलों से गुजर हो पाती थी । कभी गाड़ी पटरी पर तो कभी पटरी से नीचे उतर जाती थी इसी उतार चढ़ाव में कमली अपने परिवार के साथ समन्वय  बनाने में अपनी भूमिका का निर्वाह बिना रुके बिना थके करती थी ।

कभी कभी कमली का ससुर भरोषी कमली को घर खर्च के लिए कुछ पैसे दे देते थे , जब कभी महीने छह महीने में भरोषी जब मिलने जाते थे ।

मगर कर्ज भी काफी हो गया था राशन भी उधार आती थी महीने की तनख्वाह जो मिलती थी वो , कर्ज और दुकान का उधारी चुकता करने के लिए भी पूरी नहीं पड़ती थी ।

बहुत मुश्किल हालातों से गुजर रहा था ,मोहन और उसकी पत्नी ।

धीरे धीरे समय गुजरता गया कमली की माता जी तीन चार महीनों बाद जो उसकी देखभाल के लिए आए थे , वह भी अपने गांव चली गई ।

भाग्य से कमली दोबारा गर्भवती हो गई पहले के बच्चे और दूसरे बच्चे में 9 महीने का ही तो अंतर था आखिर प्रसूति की तिथि आ गई और कमली ने पुत्र को जन्म दिया ।

समय का चक्र चलता रहा और उतार चढ़ाव से भरे जीवन को झेलत दुख सुख के पाटों में पिसते पिसते कमली तीसरे बच्चे की भी मां बन गई करीबन 4 वर्षों के भीतर कमली 3 बच्चों की मां बन चुकी थी।

हालात बहुत खराब हो चुके थे शरीर दुबला पतला हो गया था ।

जब छोटा बच्चा साल भर का था कमली के पति मोहन की नौकरी छूट गई थी जो कुछ कंपनी से मिला था वो समाप्त होते जा रहा था ।

✍️ज्योति प्रसाद रतूड़ी

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यह सत्य घटना पर आधारित है पात्र के नाम और जगह काल्पनिक है ।

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