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रिसता घाव "भाग १"

15 मार्च 2022

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तुमने हमारे लिए किया ही क्या है ? छोटा बेटा  बिनय , अपनी माँ कमली से झगड़ते हुए कह रहा था ।

कमली तीन बच्चों की माँ है बीमारी और गरीबी ने उसे असहज बना दिया था ।

पति भी 2 साल से बेरोजगार ही घूम रहा था दावाइयाँ का खर्चा डक्टर की फिस और ऊपर से छोटे बेटे के ताने ।

कमली चुपचाप बेटे की , बर्च्छि की भांति दिल पर चुभने वाली बातें सुने ही जा रही थी ।

शाम ढल चुकी थी , कमली खामोश होकर  बालकनी  में खड़ी हो गयी । बेटा कृष्ण दोस्तों के साथ घर से बाहर जा चुका था ।

कमली बालकोनी से झाँकते हुए , अपने अतीत में गुम हो गयी ।

डोली से जब उतर कर कमली के पाऊँ ससुराल में पहली बार पड़े तो कमली के जीवन का , एक नया अध्याय जुड़ गया था ।

न जाने कितने सपने लिए , कमली डोली में संग लायी थी  और कितने और देखने बाकी थे ।

गोरी चिट्टी इकहरा बदन , सुंदर नैन नक्श वालो कमली ।

भाग्य शायद कुछ खेल ,खेल रहा था शायद कमली को दुःख से रिश्ता निभाना था ज्यों ही कमली ने डोली से उतरते ही कदम ससुराल को जमीं पर रखा , कमली की तबियत खराब सी होने लगी ।

सुबह हुई सब अपने अपने कामों में लग गए । शाम को कमली ने अपने पति संग बाट दोहराना के लिए मायके जाना था तो बेसब्री से शाम का इंतज़ार होने लगा ।

ससुराल और मायके की दूरी 5 से 10 मील रही होगी  2 , 4 ऊपर निचे हो सकता है ।

खैर  ! बाट दोहराना भी हुआ  और महीना बीत गया कमली का पति नौकरी पर प्रदेश चला गया ।

बात ईसावी सन 1993 की है उस समय तो फोन भी गांव में देखने को विरले ही हुआ करते थे , मोबाइल की बिसात ही कहाँ थी तब ।

कमली बीमार रहने लगी , मायके वालों ने इलाज करवाया ससुराल वालों ने भी जिसने जो इलाज बतलाया झाड़ फूंक बकरे की बलि मुर्गे की बलि सब तिकड़म बाजी किया मगर कोई लाभ न मिला ।

शादी हुए 1 साल बीतने को था कमली दिन प्रतिदिन कमज़ोर होती गई ।

पड़ोस में शादी थी कमली को आश थी कि शादी में पति घर आएंगे और हुआ भी वही कमली के पति प्रदेश से शादी में सामिल होने घर आये हुए थे ।

पति ने जैसे ही कमली को देखा हैरान रह गया , ये क्या कमली ! तुम....! तुम , इतनी कमज़ोर !!!! तुम्हारी तो हालात खराब हो रखी है क्यों क्या हुआ ? तुम बीमार थी चिठ्ठी पर तो लिखा होता , बिना रुके कमली के पति ने कमली से सवाल पे सवाल किए जा रहा था और कमली खामोश सी पति को निहारे जा रही थी ।

पड़ोस में शादी निपट गयी थी , सब लोग इधर उधर अपने अपने घर विदा हो रहे थे ।

कमली के पति को जिस सुबह , नौकरी पर प्रदेश जाना था उसी रात कमली की तबियत अचानक खराब हो गयी ।

रात जैसे तैसे कटी सुबह कमली अपने पति संग डॉक्टर के पास चेकअप के लिए जिले में अस्पताल आ गयी ।

डॉक्टर के जांच से पता चला कि , कमली को टीबी हो गयी है ।

मोहन (कमली का पति)  और कमली के ऊपर मानो वज्रपात हुआ हो ।

मोहन सोचता रहा यदि गांव में यह बात किसी को पता चली  कि ,  कमली को टीबी है तो ! तो गांव वाले तरह तरह की बातें करेंगे कमली को हीन नज़रों से देखेंगे बंदे बर्तन अलग थलग इसका तो सामाजिक वहिष्कार कर देंगे उस जमाने मे तो टीबी को भयंकर और जानलेवा बीमारी माना जाता था ।

कब गाँव का बस स्टॉप आया मालूम न हुआ ।

कुछ एक आध घंटे पैदल चलने के बाद घर आ गया , हाथ मुह धोने के बाद चाय पानी पी ही रहे थे कि... और क्या कहा डॉक्टर ने ? { भरोसी राम (मोहन के पिता ) ने कहा }

डॉक्टर ने बोला है कि ईएसआर बड़ा हुआ है मोहन ने अपने पिता जी को जबाब में कहा ।

ईएसआर ?? ये क्या होता है साफ साफ बता ,  पिताजी ने दुबारा पूछा ।

कमली को टीबी है मोहन वाक्य पूरा ही कर पाता कि पिताजी हैरान होकर बोल पड़े टीबी......! हैं !! वो कैसे हो गयी ?

मैं कल सुबह इसे !!

(कमली की और इशारा करते हुए मोहन ने कहा था कि  )

क्या इसे ? अच्छा तो शहर ले जाने का विचार है बहु को ? अभी तो मैंने इसका लाया हुआ पानी नही पिया और न ही लकड़ी और घास ही का कोई सुख देखा है  ।

और महारानी शहर जा रही है ।

अब !!

(मोहन की मां शांति ने मुँह बनाते हुए कहा ।)

अरे भगवान बहु ठीक हो जाएगी तो सब कुछ सही हो जाएगा , क्यों परेशान होती है ।

मोहन बेटा जा बहु को शहर ले जा यहाँ गांव में इसका इलाज नही हो पायेगा और गांव के हाल तू जाने ही है कैसे कैसे बातें बनाते है यहां लोग । भरोसी राम ने मोहन से कहा ।

सुबह होते ही कमली अपने पति संग , शहर के लिए रवाना हो गयी । बस में कमली खिड़की की तरफ बैठ गयी रोमांचित सी लग रही थी तबियत ठीक तो माही थी किन्तु चेहरे पर आज अलग ही तरह का नूर छलक रहा था ।

कमली पहली बार घर से बस द्वारा इतना लंबा सफर कर रही थी या यूं कहिये कि शहर ही पहली बार आ रही थी ।

शाम करीब 7 बजे  कमली और मोहन शहर पहुंच गए , सफर की शरीर तोड़ने वाली थकान पड़ोसी भले बिचारे चाय पानी ले आये खाने के लिए बिस्कुट कमली तब शर्मीली भी थी उसने चाय तो पी ली पर बिस्कुट नही खाई ।

ले ले ...खा लो एक तो ले लो ! मोहन कमली की और बिस्कुट बढ़ते हुए बोला ।

न , उऊँ हूँ न कमली हाथ से रोकते हुए मोहन से बोली ।

रात का खाना भी पड़ोसी के यहाँ ही था...।

कमली बोली हेजी ! सुनो तो कमली किनारे पर ले जाकर मोहन से बोली , आपने अपने रूम पर राशन नही भारी क्या ? पडोसी के यहां खाना मोहे तो न जचता । परदेश में अपना गुजारा मुश्किल से होता है ऊपर से हम दो भी न बाबा तुम उन्हें जा कर माना कर दो ।

ऐ पागला गयी हो का ? वो नाराज हो जाएंगे एक रात की बात तो है कल से अपनी राशन पानी आ जायेगी तो चिंता न कर वैसे भी शर्मा जी बहुत भले इंसान है । मोहन सरपट बोले ही जा रहा रहा और कमली सुनये ही जा रही थी ।

मोहन भाई !  भाभी जी ! हाथ मुँह धोलो , खाना लग दिए है।

आ जाओ ! श्रीमती शर्मा जी आवाज लगते हुए बोली ।

दोनो ने हाथ मुँह धोकर खाना खा रात बहुत हो चुकी थी थकान भी बहुत लगी  थी , तो दोनों सो गए अगली सुबह...

कमली जल्दी जाग गई थी 5 बजे के आसपास , गांव में कमली इतने ही बजे उठती थी , तो अदद है ।

हे जी उठो !! सुनो तो कमली सोये हुए मोहन को जगाने का प्रयास करती है  ।

मोहन बड़ी मुश्किलों से जागते हुए अँगड़ाई लेते हुए अरे भाग्यवान इतनी सुबह सुबह क्यों जगा दिया ।

अजी सुनो तो मुझे चाय पीनी है , जाओ दुकान से चाय पत्ती दूध और चीनी ले आओ न उफ्फ देखो खड़े उठते हो कि नही वरना मैं पानी डाल दूंगी फिर मत कहना कि बिगा दिया ।

अरे यार इतनी जल्दी दुकान नही खुलती 7-8 बजे खुलेगी तब तक मुझे एक नींद सोने दो और मोहन फिर सो गया । कमली ने कमरे की सफाई की किचन में भांडे बर्तन साफ किये स्नान कर धूप अगर बत्ती जलाकर पूजा पाठ कर के तैयार हो गई ।

दरवाजे पर दस्तक हुई खट्ट! खट्ट ! खट्ट!

भाभी ! वो भाभी ! क्या लायी हूँ दरवाजा खोलो !

दरवाजे पर श्रीमती शर्मा थी जो कमली और मोहन के लिए चाय लायी थी ।

कमली दरवाजा खोलते अरे ! आपने क्यो तखलिफ़ की दीदी !

अरे इसमें तखलिफ़ की कौन सी बात है और मैं कौन सा तुम्हे रोज़ पिलाने वाली हूँ , लो ! हंसते हुए चाय हाथ मे थमाते हुए श्रीमती शर्मा बोली , और चाय देकर अपने कमरे में चली गई ।

कमली ने मोहन को हिलाते हुए हेजी अब तो जागो लो चाय पिलो दीदी लायी है दोनों ने चाय पिया और कुछ मस्ती की....चलो चलो बहुत हो गया चलो नाहा लो और बाजार से कुछ खाने के लिए लाओ बहुत भूख लग रही है ।

मोहन नाहा धोकार बाजार चला गया , साग सब्जी ,आटा चावल , दाल मिर्च मसाले सब थोड़ा थोड़ा ले आया ।

और एक पैकेट ब्रेड मक्खन और आधा लीटर दूध  भी ले आया ।

घर पहुंचते ही , कमली !! वो कमली अरे  कहाँ हो तुम  मोहन ने आवाज लगाई ।

मैं बाथरूम में हूँ कपडे धो रही हूँ कमली ने बाथरूम से ही जबाब दिया ।

ठीक है ठीक !! फिर मैं ही नाश्ता बना लेता हूँ जल्दी करो तो

मोहन ने कहां ।

हाँ बस आयी तुम तब तक बनाओ क्या बना रहे हो? कमली ने पूछा ।

कुछ नही वो ब्रेड और मक्खन लाया हूँ वो ही गर्म करके और चाय बनाता हूँ ठीक है न बाकी थोड़ी थोड़ी राशन पानी लाया हूँ मोहन बोला ।

हां ठीक है बनाओ , बस तुम्हारी कमीज़ ही रहती है ।बस हो  गया समझो आती हूँ ।

और थोड़ी देर में कमली आ ई दोनो ने नाश्ता किया । कमली ने नाश्ते के बर्तन धोये , मोहन ड्यूटी के लिए तैयार हो रहा था ।

कहाँ की तैयारी हो रही है जी , कमली अदा बिखरते हुए बोली ।

वो क्या है कमली मैं सोच रहा हूँ कि छुट्टी खत्म हो चुकी है तो आज हज़ारी लगा लेता हूँ , कल फिर बोस से छुट्टी ले लूंगा तुझे भी तो , अस्पताल चेकअप के लिए  लेकर जाना है न ।

कमली बोली अच्छा और मैं अकेली कमरे पर कैसे रहूंगी....

मोहन ने कमली को अपने सीने से लगते हूऐ कहा .. अरे पगली ! मैं दोपहर एक डेढ़ बजे आ जाऊंगा खाना खाने ।

हां देख एक बात तो मैं बताना ही भूल गया ये देख यह है गैस का चूल्हा , और यह बटन है माचिस जलाकर इस बटन को इस ओर घूमना और तीली चूल्हे पर लगाना आग जल जाएगी  ।

देख ऐसा घुमाएगी तो बंद हो जाएगा , और काम ज्यादा देख ऐसे ऐसे करते है ठीक है , मोहन बड़े प्यार से समझा रहा था ।  क्योंकि उस जमाने मे गाँव मे गैस नही हुआ करती थी लोग लकड़ी के चूल्हे में ही खाना बनाते थे , अतः कमली के लिए गैस और गैस का चूल्हा नया ही कोई चमत्कार से कम न था ।

उफ्फ बत्ती भी गुल हो गयी ...ऊपर से गर्मी , कमली गत्ते के एक दुकड़े से खुद को हवा लगते हुए कुछ सो ही रही थी कि 1सवा 1 बजे दोपहर को मोहन दोपहर का खाना खाने घर आ गया ।

कमली परेशान कमली को कुछ सूझ ही नही रहा था क्या कहे क्योंकि कमली ने तो खाना बनाया ही नही था बिजली गुल जो थी...कमली समझ रही थी कि बिना बिजली के गैस चूल्हा नही जलता ।

उसे तो यह तक भी मालूम नही था कि गैस भी कोई बाला है जो जलती है ।

कमली क्या बनाया है यार बहुत भूख लगी है दो कुछ...मोहन बोला ।

कमली बोली ..मैन अभी कुछ नही बनाया कैसे बनाती बत्ती तो सुबह आपके जाने के बाद गुल हो गई थी ।

फिर कैसे बनाती ?

अरे बत्ती और खाने का क्या संबंध मोहन बोला ।

तो बनाती काहे में बिना बत्ती के कैसे चूल्हा जलेगा कमली मुहँ बनाते हुए बोली ।

मोहन जोर जोर से ठहाके मारकर हँसने लगा हे काली(पगली) यह चूल्हा बिजली से नही जलता यह गैस का चूल्हा है ये देख गैस का सिलेंडर पर्दे के पीछे इस में गैस रहती । और ए चूल्हा माचिस जलाओ आग बल जाली है ।

कमली दिखावटी गुस्सा करते हुए मुझे क्या पता होना है जब मैंने कभी यह चीज़ देखी ही नही तुम मुझे पहले नही बता सकते थे ।

चलो रहने तो अब चाय बनाओ मैं ब्रेड लेकर आता हूँ दुकान से और क्या लाऊं मक्खन के अंडे मोहन बोला ।

ऐसा करना मक्खन भी और अंडे भी दोनो लेते आना । शाम को अंडा करि बनाउंगी कमली बोली ।

ठीक है मोहन ने सहमति व्यक्त की । मोहन दुकान से सामान ले आया चाय बेआड मक्खन खाया और मोहन फिर काम पर चला गया

कमली भी चाय के वर्तन वैगरा धोये और बाहर बगीचे में पेड़ की छांव में बैठ गयी ।

अगली सुबह

हे जी ! उठो लो चाय , कमली मोहन को जागते हुए

ऊँ.. आह ऐय्य....हे प्रभु !

टाइम कितना हुआ कमली मोहन बोला ।

साढ़े सात ! कमली बोली ।

अच्छा जल्दी से तैयार हो जाना आज ईएसआई हॉस्पिटल जाना है त्यरा चेकअप करवा लेता हूँ ।

और फिर दोनों जल्दी से नाहा धोकर तैयार होकर हॉस्पिटल के लिए निकल गए ।

करीबन आधा घंटे में ईएसआई की डिस्पेंसरी में पहुंच गए , संयोग ही था कि भीड़ ज्यादा नही थी 20वे नम्बर पर बारी आ गयी ।

डॉक्टर को कमली के  बारे में बताया मगर डॉक्टर ने ढंग से देखा ही नही न हमारी बात पूरी सुनी और

मीठी मीठी से कुछ गोलियाँ देकर , अपना पल्ला झाड़ दिया ।

कमली और मोहन आपस मे इस बात को लेकर उलझ पड़े ।

बड़े आये शहर के डॉक्टर को दिखाएंगे...क्या दिखाया ऐसे !! उसने तो ढंग से देखना तो दूर पर हमारी सुनी तक नही कमली बोली ।

अरे यार मुझे क्या मालूम होना था , चल गुस्सा न कर तुझे प्राइवेट में दिखता हूँ । और यह कह कर मोहन कमली को मनाने लगा ।

और दोनों कमरे आ गए , उसकी शाम मोहन के पिता जी भी गाँव से आ गए ।

नमस्कार आशिर्वाद की औपचारिकता होने के पश्चयात खाना खाते समय मोहन की पिता भरोसी राम बोले अरे मोहन बहु को डॉक्टर के ले गया था क्या ? क्या कहा उसने ?

हाँ ले गया था , कुछ न कहा उसने ईएसआई हॉस्पिटल ले के गया रहा मोहन बोला ।

ये कौन सी बात हो गयी के कुछ न बोला डॉक्टर ने , तूने बोला नही उसने कि बहु को गाँव वाले डॉक्टर टीबी बतला रहे है भरोसी बोला ।

हाँ कही थी मैंने बापू !कही थी पर उसने सुनकर अनसुनी सी कर दी और या गोली लिख दी मीठी सी  मोहन बोला ।

अच्छा !

तो तू यूँ कर के कल सुबह , डॉक्टर सुखदेव के दिखा ले आ बहु ने ।बहुत बढ़िया डॉक्टर है वो भरोसी मोहन से बोला ।

अच्छा बापू ! मोहन गहरी सांस भरते हुए ।

चलो सो जाओ इब रात बहुत हो ली ।

और कहते हुए मोहन बापू से विदा लेते, अपने कमरे में सोने चला गया ।

उधर कमली पहले से ही कमरे में मौजूद थी ।

क्या कह रहे थे ससुर जी तुमसे ? कमली मोहन से बोली ।

कुछ न ! नु कह रहे थे कि तुमको कल डॉक्टर सुखदेव के देखा लाऊं बढ़िया डॉक्टर है वो ।

अच्छा ससुर जी कह रहे है तो उसने देखा लेते है ।

हाँ ठीक है सुबह 11 बजे चलेंगे यही नजदीक पर है वो पैदल 15 मिनेट का रास्ता है । चलो सो जाओ सुबह जल्दी उठना भी है अब तो बापू जी भी आ गए है उन्हें तो बस घर के सभी लोग सुबह जागे मिलने चाहिए और दोनों.... सो गए अगली सुबह

नाश्ता-पानी खाया और कमली एवं मोहन डॉक्टर सुखदेव के पास चेकअप के लिए चले गए

.....लगातार( to be continue)

✍️......ज्योति प्रसाद रतूड़ी

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यह सत्य घटना पर आधारित है पात्र के नाम और जगह काल्पनिक है ।

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