ख्यालों में ही गुजर कर ली हमने "ताउम्र" कुछ ही बची है । अब आ भी जाओ रूबरू कर दे , इक बार दिल को । रस्म ए दीदार अभी बाकी है । ✍️ज्योति प्रसाद रतूड़ी 🙏मुझे आशा है की "दिल की आवाज़" आपको पसंद आयेगी ।
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ख्यालों में ही गुजर कर ली हमने "ताउम्र" कुछ ही बची है ।अब आ भी जाओ रूबरू कर दे , इक बार दिल को ।रस्म ए दीदार अभी बाकी है ।✍️ज्योति प्रसाद रतूड़ी
"मुकद्दर वाला ही होगा वो , जिसे आपकी दोस्ती , हासिल है दिल से....हम तो यूं ही चकोर बनकर , चांद को निहारते है ।✍️ज्योति प्रसाद रतूड़ी
बस इक खूबसूरत सा सफर , उसमें आप और हम ।रह गई ये आरजू भी ,दिल के किसी कोने में दफन ।इस बेबसी में , करें तो क्या करें हम मिलन हो तो कैसे.... ?आएं तो आएं कैसे..?पहरे जमाने ने , बहुत बिठाए हुए है ।रह
आज हर इलजाम तेरा , ओ बेदर्द ! हम अपने नाम किए जाते है । जा तूझे माफ किया , इलजाम तेरी बेवफाई का हम , अपने सर किए जाते है । ✍️ज्योति प्रसाद रतूड़ी
छुपा कर दर्द अपना , मुश्किल से जी पा रहा हूं मैं । कहीं वो परेशान न हो जाए , जान कर मर्ज मेरा..! इसलिए , मुस्कुराए जा रहा हूं मैं ।। ✍️ज्योति प्रसाद रतूड़ी
कभी घबराया तो , कभी शरमाया हूं मैं । कभी चिलमन को हटाया तो , कभी खुद को उसमें छुपाया हूं मैं । दिल में हुआ था कुछ कुछ , देख कर उन्हें मेरे । शायद रहा हो वो "इश्क" जिसे जमाने से अब तक
कहूं क्या किस कदर , बसर हो रही है अब जिंदगी । बस कट रही है किसी तरह से , तन्हां तन्हा...! ख्यालों में से होकर , गुजरी रही है अब जिंदगी । ✍️ज्योति प्रसाद रतूड़ी
तुमसे ना हो सकी मुलाकात जी भर , तुमसे ना हो सकी मुलाकात जी भर ,बस यही मलाल रहेगा मुझे उम्र भर ।। नादान भी तुम इतनी ना बनो कि , नादान भी तुम इतनी ना बनो कि ,तुम जो समझ न सको । दायरे भी है कुछ , द
कैसे रहूंगा मैं तेरे बिना , कैसे रहूंगा कैसे रहूंगा । कैसे रहूंगा मैं तेरे बिना , कैसे रहूंगा कैसे रहूंगा । तेरी याद पल पल , जो आएगी मुझको । इस दिल को मैं , क्या कह के कहूंगा । इस दिल को मैं ,
तेरी इस अंजुमन में , आ तो गए हम । अब मुझको तुम , संभाल लेना । मुद्दतों से खुश्क ही रहा है ये दिल, इक़ घुट ही काफी है । तेरे मयकदे से छलके है जाम , और ज़ियादा । पी जाएं कुछ ज़ियादा हम , "जाम ए हुश
ऐ जिंदगी बना हूँ, मैं तेरा दीवाना । और तू है कि , चली जा रही है । कभी खामोश सी और , कभी मुस्कुरा रही है । जरा ठहर तो सही , आ पास बैठ । कुछ तू अपनी कह, कुछ हम अपनी सुनाएं ।
बेवजह की भी, कोई वजह होती है । वेवजह कभी कुछ, होती नही ।। कशिश होती है जरूर , तमन्नाओं के समंदर में । न आये उफान तो क्या , " लहरें " साहिल से मिलना कभी ,
कू-कू कोयल राग प्यार का , गीत मधुर यह गाती है । बैठी है दूर डाल पर , सबके मन को भाती है । नही बैर इसको किसी से , मस्ती में यह रहती है । कू-कू कोयल राग प्यार का, गीत मधुर यह गाती है । बसंत अलब
चांद ही नहीं उगा आज , शब ए गम में । बड़ी मुश्किल से गुजरी है , आज जिंदगी तन्हाई में । हाल ए दिल देख कर , हमसे रोया न गया । बहुत थे अल्फ़ाज़ ए गम, बेबस ही रहे उन्हें देख कर हम । आये ख्याल उनको,
दिल से न जुदा होने देंगे प्रीत तेरी , दिल में बसा के रखेंगे हम प्रीत तेरी । याद तेरी आती है बहुत , जीना दुस्वार हो जाता है । तुमसे मुलाकात को यह दिल, तड़प जाता है । हो जाती है गुफ्तगू तुमसे जब
मेरे ख्यालों ने आज मुझे, सकून की वो रातें दी है । रहा मैं संग उनके , हसीन पलों की वो बातें दी है । मेरे ख्यालों ने आज मुझे , सकून की वो रातें दी है । रहा मैं संग उनके , हमसफ़र बनकर । वो बिछौना मेरे
बेज़ार नही हम तुझसे मेरे मौला ! मगर शिकवा जरूर है तुझसे । जिन्हें चाहते है हम जी भर कर , काश के उनको मेरे मुकद्दर में, बनाया होता । यूँ तो जिंदगी के हर पहलुओं में , मुझे तुझसे शिकायत रही है मगर
वो मेरे आंसू थे , जो छलक गए अंखियों के झरोखों से । आह...! आई किसी की याद आज , सच कई दिनों से । ✍️ज्योति प्रसाद रतूड़ी ।
तेरी कातिल आंखें है , यह लोग कहते है । इक बार इधर तो देखो ,ये हुस्न ए बाहर । हम इन आंखों से, कत्ल होना चाहते है । ✍️ज्योति प्रसाद रतूड़ी
हे प्रभु ! कुछ पल के लिए ही सही , मुझे वो सकुन दे दे । न अहसास गम का , न खुशी का ही । न मैं खुद को जान सकूँ , और न किसी को पहचान सकूँ । सब , देख लिया है यहां । बदल रहा है हर कोई , मौसम की तरह ।
सुनो कांग्रेस वालों और कांग्रेस के संग सहयोगियों, अपनी ऊर्जा , व्यर्थ में न जाया करो । देश भक्त जनता देश की , संग बीजेपी के है । यह बात तुम सब , मान जाया करो । नहीं बहकने वाले अब जनशक्ति ,
यादों के झरोखों से आज, तेरी याद चली आई है । ऐ मेरे बचपन तू , अब तो लौट आ । कई बहार आई और गुजर गई , इस रंगीन जमाने में । बे रंग सी जिंदगी है अब हमारी , सदियों की तन्हाई है । ✍️ज्योति प्रसाद रतूड़ी
गुजर गए वो वक्त अब , अच्छा या बुरा जैसा भी रहा होगा । फिक्र तो अब आगे की है कि , वक्त अब आगे का कैसा होगा ? ✍️ज्योति प्रसाद रतूड़ी
कहूं क्या इस दर्द ए हाल में , अब अल्फाजों ने जुबां से , रुखसत ले ली । आ करीब कुछ और हमारे , वक्त न जाने कब हमें , खामोश कर दे ।। ठहर कुछ देर और ऐ जिंदगी , कुछ देर और उन्हें मैं , गल
यनु भी क्या शरील पर , बिति ग्याई कि , जिणों को मोह जू त्यारू ,भंग ह्वे ग्याई । अभी त उमर बाळापन मान , थोडा ही उबे होई । क्या दिखि क्या लाई गाडी , अभी बाबा ! जु ई ज्वानि सि , मन भोरै ग्याई । अभ
मैं समय के साथ बदला हूं , या समय मेरे साथ । जो भी हो पर अब , अंतर पहले से बहुत हो गया है । लाली गुम और , गाल गुठली आम हो गया है । उमर अभी खास नहीं मगर , लगते बुजुर्ग 60 पार हो गया है ।।