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रमपलवा

19 अक्टूबर 2015

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featured imageखेल खिलौने पढ़ना लिखना हँसना तक वो छोड़ चुका है, सुबह से लेकर रात तलक बस काम से नाता जोड़ चुका है, अब गाई चराई रमपलवा, बापु सिधारेस स्वर्गलोक, औ घरु मा माई करै सोकु, पेटु का खाली भा गढ़वा, अब गाई चराई रमपलवा, है उमिर बरस बारा कै बसि, नेकर ढीली लीन्हेस कसि, नंगे पाँव जरैं तरवा, अब गाई चराई रमपलवा, गोरू ख्यातन मा घुसे जात, लाठी लीन्हे नान्ह हाँथ, लखेदि लिहिस भुरउ पड़वा, अब गाई चराई रमपलवा, जेठु घाम औ मुख मलिन, दउरि रहा है गाँव गलिन, स्वाचन मा खाय़ रहा हेलुवा, अब गाई चराई रमपलवा।
ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

राजेंद्र जी, बैसवारी में लिखी आपकी एक और सुन्दर रचना ! बहुत ही बढ़िया ! आपको बता दें, बैसवारी समझने और इसका आनंद लेने वाले पाठकों का एक बड़ा वर्ग है जो इन रचनाओं को बहुत पसंद करता है ! रचना प्रकाशन हेतु बहुत-बहुत बधाई !

20 अक्टूबर 2015

राघवेन्द्र कुमार

राघवेन्द्र कुमार

सुन्दर भावाभिव्यक्ति... अवधी मा पढ़िकै औरउ नीक लागो...

20 अक्टूबर 2015

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नया क्या है

27 अप्रैल 2015
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नया खोजने की चाह

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सरकारी नौकरी

27 अप्रैल 2015
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लिखत लिखत जब कलम टूटि,तब मलकिन बोलीं याक दिना,तुम्हरे बिनु हम रहि लेबै,मुल साथ ना रहिबे एकु दिना,हमहूँ स्वाचा कुछु करैक चही,कर्जा ते कब तक कामु चली,बिना कमाये घरु बाहेर,पूरी पानी मा अब ना तली,यहै सोचि के याक दिना,डिगरी लई लीन गठरिया मा,औ निकरि परेन घर ते बाहेर,करै नामु फुलबरिया मा,बना रहै कालेजु नवा

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भू-सुर

28 अप्रैल 2015
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गजेन्द्र सिंह की मृत्यु से आहत..

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घोड़ा गाड़ी

23 अगस्त 2015
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पुतऊ बोले एक दिना,बप्पा हम लेबे गाड़ी,साइकिलौ खचड़िया होइ गै है,अब लेबै हम इंजन वाली,हम बोलेन गाड़ी का करिहौ,मँहगाई ससुर बहुत बाढ़ी,एकु घोड़ा तुमका लई देबे,गाड़ी तौ जंग लगी ठाढ़ी,पेट्रोल मा आगी लागि रही,डीजल कऱू तेल होइगा,गैसौ भभकि रही द्याखौ,मिट्टी क तेलु तिली होइगा,खुब समुझावा हाँथ जोरि,तब छाँड़े

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मँहगी राखी सस्ता प्यार..

30 अगस्त 2015
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मैं अभागा,चुप था देेख राखी का धागा,मँहगाई से त्रस्त सादा सा बेरंग,मजबूरी और भावनाओं से तंग,क्या ऐसा होता है त्योहार,कहाँ गया वो तुम्हारा प्यार,आँखों में आँसू भर बहना बोली,प्यार से भरी है और पैसे से खाली है मेरी झोली,पर तुम उदास मत होना,आपकी दूसरी बहन सोना,जरूर मँहगी राखी लायेगी,भाई के त्योहार में चा

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रमपलवा

19 अक्टूबर 2015
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खेल खिलौने पढ़ना लिखना हँसना तक वो छोड़ चुका है,सुबह से लेकर रात तलक बस काम से नाता जोड़ चुका है,अब गाई चराई रमपलवा,बापु सिधारेस स्वर्गलोक,औ घरु मा माई करै सोकु,पेटु का खाली भा गढ़वा,अब गाई चराई रमपलवा,है उमिर बरस बारा कै बसि,नेकर ढीली लीन्हेस कसि,नंगे पाँव जरैं तरवा,अब गाई चराई रमपलवा,गोरू ख्यातन म

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