19 अक्टूबर 2015
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मैं लघुशस्त्र निर्माणी कानपुर में सेवारत हूँ कविता मुझमे सहज विराजती है जब तक जन्म ना ले ले मुझे व्याकुल रखती है शब्द ही मेरी पहचान हैं.. "भले ना हो पास मेरे शब्दों का खजाना, ना ही गा सकूँ मैं प्रशंसा के गीत, सरलता मेरे साथ स्मृति मेरी अकेली है, मेरी कलम मेरी सच्चाई बस यही मेरी सहेली है" D
राजेंद्र जी, बैसवारी में लिखी आपकी एक और सुन्दर रचना ! बहुत ही बढ़िया ! आपको बता दें, बैसवारी समझने और इसका आनंद लेने वाले पाठकों का एक बड़ा वर्ग है जो इन रचनाओं को बहुत पसंद करता है ! रचना प्रकाशन हेतु बहुत-बहुत बधाई !
20 अक्टूबर 2015
सुन्दर भावाभिव्यक्ति... अवधी मा पढ़िकै औरउ नीक लागो...
20 अक्टूबर 2015