लिखत लिखत जब कलम टूटि,
तब मलकिन बोलीं याक दिना,
तुम्हरे बिनु हम रहि लेबै,
मुल साथ ना रहिबे एकु दिना,
हमहूँ स्वाचा कुछु करैक चही,
कर्जा ते कब तक कामु चली,
बिना कमाये घरु बाहेर,
पूरी पानी मा अब ना तली,
यहै सोचि के याक दिना,
डिगरी लई लीन गठरिया मा,
औ निकरि परेन घर ते बाहेर,
करै नामु फुलबरिया मा,
बना रहै कालेजु नवा,
स्वाचा हेड माट्टरु बनिबे,
लीन्हे रूल का हाँथे मा,
चकरी अस खूब नचइबे,
मुल आँखिन उजेरिया कउंधि परी,
जगमग होइगा टिमटिम तारा,
लोटिया रसरी ते बँधी रहै,
वह नचा कै मुहि पर दइमारा,
खैर चलौ लोटिया पिचकी,
हड्डी ना याकु तनौ लचकी,
बाहेर चपरासी ठाढ़ रहै,
चिलम पियउवा गाढ़ रहै,
हमका देखेसि ऊपर नीचे,
हम ठाढ़ रहेन गठरी भींचे,
पूँछेसि कस लीन्हेव है गठरी,
हम कहा कि येहि मा हैं डिगरी,
वह बैन मिरिच अस उच्चारेसि,
जनौ शब्दन कै गोली मारेसि,
डिगरी तौ हमरेओ पास रहै,
औ जोड़ु जुगाड़ौ ख़ास रहै,
मुल डिगरी गठरी मा धरी रही,
मूठी रुपियन ते भरी रही,
तब पद सरकारी लइ पायेन,
चपरासी का पद लई पायेन,
ई डिगरी गठरी मा धरे रहौ,
बस रुपिया मूठीम भरे रहौ,
लाभ उठाएव व्यापम का,
सरकारी नौकर बनि जइहौ,