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मँहगी राखी सस्ता प्यार..

30 अगस्त 2015

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मैं अभागा, चुप था देेख राखी का धागा, मँहगाई से त्रस्त सादा सा बेरंग, मजबूरी और भावनाओं से तंग, क्या ऐसा होता है त्योहार, कहाँ गया वो तुम्हारा प्यार, आँखों में आँसू भर बहना बोली, प्यार से भरी है और पैसे से खाली है मेरी झोली, पर तुम उदास मत होना, आपकी दूसरी बहन सोना, जरूर मँहगी राखी लायेगी, भाई के त्योहार में चार चाँद लगायेगी, तभी सोना की चमक घर में छा गई, हमारी दूसरी बहन राखी लेकर आ गई, अब सज गई पूजा की थाली, बहना ने पर्स से राखी निकाली, नहीं था उसके प्रेम में कोई भेद, एक टमाटर में कर रक्खा था छेद, बोली ये राखी बड़ी मुश्किल से मिली है, सुई धागे से मखमल पे सिली है, स्वीकारों ये टमाटर भरा प्यार, मुबारक हो तुमको रक्षाबंधन का त्योहार।
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नया क्या है

27 अप्रैल 2015
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नया खोजने की चाह

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सरकारी नौकरी

27 अप्रैल 2015
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लिखत लिखत जब कलम टूटि,तब मलकिन बोलीं याक दिना,तुम्हरे बिनु हम रहि लेबै,मुल साथ ना रहिबे एकु दिना,हमहूँ स्वाचा कुछु करैक चही,कर्जा ते कब तक कामु चली,बिना कमाये घरु बाहेर,पूरी पानी मा अब ना तली,यहै सोचि के याक दिना,डिगरी लई लीन गठरिया मा,औ निकरि परेन घर ते बाहेर,करै नामु फुलबरिया मा,बना रहै कालेजु नवा

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भू-सुर

28 अप्रैल 2015
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गजेन्द्र सिंह की मृत्यु से आहत..

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घोड़ा गाड़ी

23 अगस्त 2015
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पुतऊ बोले एक दिना,बप्पा हम लेबे गाड़ी,साइकिलौ खचड़िया होइ गै है,अब लेबै हम इंजन वाली,हम बोलेन गाड़ी का करिहौ,मँहगाई ससुर बहुत बाढ़ी,एकु घोड़ा तुमका लई देबे,गाड़ी तौ जंग लगी ठाढ़ी,पेट्रोल मा आगी लागि रही,डीजल कऱू तेल होइगा,गैसौ भभकि रही द्याखौ,मिट्टी क तेलु तिली होइगा,खुब समुझावा हाँथ जोरि,तब छाँड़े

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मँहगी राखी सस्ता प्यार..

30 अगस्त 2015
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मैं अभागा,चुप था देेख राखी का धागा,मँहगाई से त्रस्त सादा सा बेरंग,मजबूरी और भावनाओं से तंग,क्या ऐसा होता है त्योहार,कहाँ गया वो तुम्हारा प्यार,आँखों में आँसू भर बहना बोली,प्यार से भरी है और पैसे से खाली है मेरी झोली,पर तुम उदास मत होना,आपकी दूसरी बहन सोना,जरूर मँहगी राखी लायेगी,भाई के त्योहार में चा

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रमपलवा

19 अक्टूबर 2015
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खेल खिलौने पढ़ना लिखना हँसना तक वो छोड़ चुका है,सुबह से लेकर रात तलक बस काम से नाता जोड़ चुका है,अब गाई चराई रमपलवा,बापु सिधारेस स्वर्गलोक,औ घरु मा माई करै सोकु,पेटु का खाली भा गढ़वा,अब गाई चराई रमपलवा,है उमिर बरस बारा कै बसि,नेकर ढीली लीन्हेस कसि,नंगे पाँव जरैं तरवा,अब गाई चराई रमपलवा,गोरू ख्यातन म

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