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Robin Sandhu के बारे में

पुरस्कार और सम्मान

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दैनिक लेखन प्रतियोगिता2023-01-18
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दैनिक लेखन प्रतियोगिता2022-12-24

Robin Sandhu की पुस्तकें

हर्फ़-दर-हर्फ़ ज़िन्दगी

हर्फ़-दर-हर्फ़ ज़िन्दगी

मेरी यह किताब एक कविताओं का संग्रह है।जिसमें मैं विभिन्न प्रकार की कविताओं को शामिल करूँगा।

4 पाठक
8 रचनाएँ

निःशुल्क

हर्फ़-दर-हर्फ़ ज़िन्दगी

हर्फ़-दर-हर्फ़ ज़िन्दगी

मेरी यह किताब एक कविताओं का संग्रह है।जिसमें मैं विभिन्न प्रकार की कविताओं को शामिल करूँगा।

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Robin Sandhu के लेख

आस्था या अंधविश्वास(बागेश्वर धाम)

18 जनवरी 2023
1
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मैंने यूट्यूब पर बागेश्वर धाम के वीडियोज़ देखे और ये भी पता चला की वहाँ बहुत सारे लोग आते हैं अपने कष्टों के निवारण के लिये।सबसे पहली बात तो ये कि आपकी ज़िंदगी की परेशानियों को आपंसे ज़्यादा कोई नहीं

अपने हिस्से का जीके

11 जनवरी 2023
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न रुकी थी न रुकी है न रुकेगी तू तो चलती रहे सदा तुझसे बिछड़ा एक बार जो कोई फिर है कब मिला ये वादा है मेरा जो भी तुझसे लिया है सब मोड़ जाऊँगा दुनिया अपने हिस्से का जीके तुझे छोड़ जाऊँगा दुनिया

आज फिर सो गया

11 जनवरी 2023
0
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लाखों ग़म थे सीने में छुपा के सो गया आज फिर मैं तन्हाई गले लगाके सो गया जमीं है कम पड़ रही तुर्बतों लिये अरमानों को फिर आज दफ़ना के सो गया ऐसी क्या बात है आख़िर उस शख़्स में के जो उसके पास गया वो

क्या हूँ मैं

11 जनवरी 2023
0
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ज़्यादा नहीं हूँ अच्छा ए ज़माने थोड़ा बहुत ख़राब हूँ मैं लोग कहते हैं ये बुरी है मगर मुझे सहारा देती है तभी पीता शराब हूँ मैं ये दुनिया के तो क्या कहूँ बाज़-वक़्त तो लगता है के ख़ुद इक सराब हूँ

आज फिर सो गया

26 दिसम्बर 2022
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लाखों ग़म थे सीने में छुपा के सो गया आज फिर मैं तन्हाई गले लगाके सो गया जमीं है कम पड़ रही तुर्बतों लिये अरमानों को फिर आज दफ़ना के सो गया ऐसी क्या बात है आख़िर उस शख़्स में के जो उसके पास गया वो

अपने हिस्से का जीके

24 दिसम्बर 2022
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न रुकी थी न रुकी है न रुकेगी तू तो चलती रहे सदा तुझसे बिछड़ा एक बार जो कोई फिर है कब मिला ये वादा है मेरा जो भी तुझसे लिया है सब मोड़ जाऊँगा दुनिया अपने हिस्से का जीके तुझे छोड़ जाऊँगा दुनिय

क्या हूँ मैं

18 दिसम्बर 2022
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ज़्यादा नहीं हूँ अच्छा ए ज़माने थोड़ा बहुत ख़राब हूँ मैं लोग कहते हैं ये बुरी है मगर मुझे सहारा देती है तभी पीता शराब हूँ मैं ये दुनिया के तो क्या कहूँ बाज़-वक़्त तो लगता है के ख़ुद इक सराब

याद आता है

18 दिसम्बर 2022
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वो गाँव में  तारे देखते देखते  सो जाना  याद आता है अम्मा का खटिया पे बिस्तर लगाना  और फिर आजा जल्दी दूध पीले  कहके बुलाना  याद आता है सुबह उठ के  खेत को जाना और पशुओं के लिए चारा

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