shabd-logo

अपने हिस्से का जीके

24 दिसम्बर 2022

8 बार देखा गया 8

न रुकी थी न रुकी है न रुकेगी

तू तो चलती रहे सदा

तुझसे बिछड़ा एक बार जो

कोई फिर है कब मिला

ये वादा है मेरा

जो भी तुझसे लिया है सब

मोड़ जाऊँगा दुनिया


अपने हिस्से का जीके तुझे

छोड़ जाऊँगा दुनिया


अगले पल भी रहूँ न रहूँ

नहीं जानता मैं

पैसा है तो सब कुछ है ये

नहीं मानता मैं

साँसों के थमने से पहले

बन्दे से बन्दे का रिश्ता

जोड़ जाऊँगा दुनिया


अपने हिस्से का जीके तुझे

छोड़ जाऊँगा दुनिया


खेत में जा इक कोने में

मैं चोरी छुपके रोता था

दोपहर में मारा मारा 

जिस पेड़ के नीचे सोता था

उसी पेड़ की मिट्टी में 

साँसों का मटका 

तोड़ जाऊँगा दुनिया


अपने हिस्से का जीके तुझे

छोड़ जाऊँगा दुनिया



8
रचनाएँ
हर्फ़-दर-हर्फ़ ज़िन्दगी
0.0
मेरी यह किताब एक कविताओं का संग्रह है।जिसमें मैं विभिन्न प्रकार की कविताओं को शामिल करूँगा।
1

याद आता है

18 दिसम्बर 2022
0
0
0

वो गाँव में  तारे देखते देखते  सो जाना  याद आता है अम्मा का खटिया पे बिस्तर लगाना  और फिर आजा जल्दी दूध पीले  कहके बुलाना  याद आता है सुबह उठ के  खेत को जाना और पशुओं के लिए चारा

2

क्या हूँ मैं

18 दिसम्बर 2022
1
0
0

ज़्यादा नहीं हूँ अच्छा ए ज़माने थोड़ा बहुत ख़राब हूँ मैं लोग कहते हैं ये बुरी है मगर मुझे सहारा देती है तभी पीता शराब हूँ मैं ये दुनिया के तो क्या कहूँ बाज़-वक़्त तो लगता है के ख़ुद इक सराब

3

अपने हिस्से का जीके

24 दिसम्बर 2022
0
0
0

न रुकी थी न रुकी है न रुकेगी तू तो चलती रहे सदा तुझसे बिछड़ा एक बार जो कोई फिर है कब मिला ये वादा है मेरा जो भी तुझसे लिया है सब मोड़ जाऊँगा दुनिया अपने हिस्से का जीके तुझे छोड़ जाऊँगा दुनिय

4

आज फिर सो गया

26 दिसम्बर 2022
0
0
0

लाखों ग़म थे सीने में छुपा के सो गया आज फिर मैं तन्हाई गले लगाके सो गया जमीं है कम पड़ रही तुर्बतों लिये अरमानों को फिर आज दफ़ना के सो गया ऐसी क्या बात है आख़िर उस शख़्स में के जो उसके पास गया वो

5

क्या हूँ मैं

11 जनवरी 2023
0
0
0

ज़्यादा नहीं हूँ अच्छा ए ज़माने थोड़ा बहुत ख़राब हूँ मैं लोग कहते हैं ये बुरी है मगर मुझे सहारा देती है तभी पीता शराब हूँ मैं ये दुनिया के तो क्या कहूँ बाज़-वक़्त तो लगता है के ख़ुद इक सराब हूँ

6

आज फिर सो गया

11 जनवरी 2023
0
0
0

लाखों ग़म थे सीने में छुपा के सो गया आज फिर मैं तन्हाई गले लगाके सो गया जमीं है कम पड़ रही तुर्बतों लिये अरमानों को फिर आज दफ़ना के सो गया ऐसी क्या बात है आख़िर उस शख़्स में के जो उसके पास गया वो

7

अपने हिस्से का जीके

11 जनवरी 2023
0
2
0

न रुकी थी न रुकी है न रुकेगी तू तो चलती रहे सदा तुझसे बिछड़ा एक बार जो कोई फिर है कब मिला ये वादा है मेरा जो भी तुझसे लिया है सब मोड़ जाऊँगा दुनिया अपने हिस्से का जीके तुझे छोड़ जाऊँगा दुनिया

8

आस्था या अंधविश्वास(बागेश्वर धाम)

18 जनवरी 2023
1
1
0

मैंने यूट्यूब पर बागेश्वर धाम के वीडियोज़ देखे और ये भी पता चला की वहाँ बहुत सारे लोग आते हैं अपने कष्टों के निवारण के लिये।सबसे पहली बात तो ये कि आपकी ज़िंदगी की परेशानियों को आपंसे ज़्यादा कोई नहीं

---

किताब पढ़िए