shabd-logo

आज फिर सो गया

26 दिसम्बर 2022

12 बार देखा गया 12

लाखों ग़म थे सीने में छुपा के सो गया

आज फिर मैं तन्हाई गले लगाके सो गया

जमीं है कम पड़ रही तुर्बतों लिये

अरमानों को फिर आज दफ़ना के सो गया

ऐसी क्या बात है आख़िर उस शख़्स में

के जो उसके पास गया वो उसका हो गया

करूँ इंतज़ार और उसका या चला जाऊँ अब

वो आया क्यूँ न लौट के इक बार जो गया

कल किसी नये शहर किसी नये सफ़र पे निकलूँगा

ऐ ज़िन्दगी वो पुराना सफ़र तो कब का मुकम्मल हो गया

ये फूल कमबख़्त खिले क्यूँ नहीं अब तक

वो माली तो बीजों को कब का बो गया

ये ज़िन्दगी इक गहरा समंदर है

जो तैर गया वो सलामत जो डूबा वो खो गया

लाखों ग़म थे सीने में छुपा के सो गया

आज फिर मैं तन्हाई को गले लगाके सो गया

8
रचनाएँ
हर्फ़-दर-हर्फ़ ज़िन्दगी
0.0
मेरी यह किताब एक कविताओं का संग्रह है।जिसमें मैं विभिन्न प्रकार की कविताओं को शामिल करूँगा।
1

याद आता है

18 दिसम्बर 2022
0
0
0

वो गाँव में  तारे देखते देखते  सो जाना  याद आता है अम्मा का खटिया पे बिस्तर लगाना  और फिर आजा जल्दी दूध पीले  कहके बुलाना  याद आता है सुबह उठ के  खेत को जाना और पशुओं के लिए चारा

2

क्या हूँ मैं

18 दिसम्बर 2022
1
0
0

ज़्यादा नहीं हूँ अच्छा ए ज़माने थोड़ा बहुत ख़राब हूँ मैं लोग कहते हैं ये बुरी है मगर मुझे सहारा देती है तभी पीता शराब हूँ मैं ये दुनिया के तो क्या कहूँ बाज़-वक़्त तो लगता है के ख़ुद इक सराब

3

अपने हिस्से का जीके

24 दिसम्बर 2022
0
0
0

न रुकी थी न रुकी है न रुकेगी तू तो चलती रहे सदा तुझसे बिछड़ा एक बार जो कोई फिर है कब मिला ये वादा है मेरा जो भी तुझसे लिया है सब मोड़ जाऊँगा दुनिया अपने हिस्से का जीके तुझे छोड़ जाऊँगा दुनिय

4

आज फिर सो गया

26 दिसम्बर 2022
0
0
0

लाखों ग़म थे सीने में छुपा के सो गया आज फिर मैं तन्हाई गले लगाके सो गया जमीं है कम पड़ रही तुर्बतों लिये अरमानों को फिर आज दफ़ना के सो गया ऐसी क्या बात है आख़िर उस शख़्स में के जो उसके पास गया वो

5

क्या हूँ मैं

11 जनवरी 2023
0
0
0

ज़्यादा नहीं हूँ अच्छा ए ज़माने थोड़ा बहुत ख़राब हूँ मैं लोग कहते हैं ये बुरी है मगर मुझे सहारा देती है तभी पीता शराब हूँ मैं ये दुनिया के तो क्या कहूँ बाज़-वक़्त तो लगता है के ख़ुद इक सराब हूँ

6

आज फिर सो गया

11 जनवरी 2023
0
0
0

लाखों ग़म थे सीने में छुपा के सो गया आज फिर मैं तन्हाई गले लगाके सो गया जमीं है कम पड़ रही तुर्बतों लिये अरमानों को फिर आज दफ़ना के सो गया ऐसी क्या बात है आख़िर उस शख़्स में के जो उसके पास गया वो

7

अपने हिस्से का जीके

11 जनवरी 2023
0
2
0

न रुकी थी न रुकी है न रुकेगी तू तो चलती रहे सदा तुझसे बिछड़ा एक बार जो कोई फिर है कब मिला ये वादा है मेरा जो भी तुझसे लिया है सब मोड़ जाऊँगा दुनिया अपने हिस्से का जीके तुझे छोड़ जाऊँगा दुनिया

8

आस्था या अंधविश्वास(बागेश्वर धाम)

18 जनवरी 2023
1
1
0

मैंने यूट्यूब पर बागेश्वर धाम के वीडियोज़ देखे और ये भी पता चला की वहाँ बहुत सारे लोग आते हैं अपने कष्टों के निवारण के लिये।सबसे पहली बात तो ये कि आपकी ज़िंदगी की परेशानियों को आपंसे ज़्यादा कोई नहीं

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए