लाखों ग़म थे सीने में छुपा के सो गया
आज फिर मैं तन्हाई गले लगाके सो गया
जमीं है कम पड़ रही तुर्बतों लिये
अरमानों को फिर आज दफ़ना के सो गया
ऐसी क्या बात है आख़िर उस शख़्स में
के जो उसके पास गया वो उसका हो गया
करूँ इंतज़ार और उसका या चला जाऊँ अब
वो आया क्यूँ न लौट के इक बार जो गया
कल किसी नये शहर किसी नये सफ़र पे निकलूँगा
ऐ ज़िन्दगी वो पुराना सफ़र तो कब का मुकम्मल हो गया
ये फूल कमबख़्त खिले क्यूँ नहीं अब तक
वो माली तो बीजों को कब का बो गया
ये ज़िन्दगी इक गहरा समंदर है
जो तैर गया वो सलामत जो डूबा वो खो गया
लाखों ग़म थे सीने में छुपा के सो गया
आज फिर मैं तन्हाई को गले लगाके सो गया