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याद आता है

18 दिसम्बर 2022

11 बार देखा गया 11

वो गाँव में 

तारे देखते देखते 

सो जाना 


याद आता है


अम्मा का खटिया पे

बिस्तर लगाना 

और फिर आजा जल्दी

दूध पीले 

कहके बुलाना 


याद आता है


सुबह उठ के 

खेत को जाना

और पशुओं के लिए

चारा लाना


याद आता है


बस यूँ ही

दोस्तों के साथ

गलियों में वक्त बिताना

लोगों से बेवजह ही

लड़ के आना 


याद आता है


स्कूल ना जाने 

के लिए 

बुख़ार का बहाना

कल तो जी 

घर पे कोई 

नहीं था

जाके मास्टर को बताना

 

याद आता है


बाज़ार से खिलौना 

ख़रीदने के लिए

बापू को मनाना

और फिर खिलौना

मिलने पर 

उसे कसके गले लगाना


याद आता है


बारिश के पानी में

छोटी सी कागज़ की

कश्ती को बहाना

खुले खेत में जाके

वो ऊँचा,और ऊँचा 

पतंग उड़ाना 


याद आता है


सारा दिन खेल कूद के

फिर रात को 

घर आना

पागलों की तरह

अकेले ही 

अपनी मौज में गाना 


याद आता है


छोड़ पराये वतन में 

जाके क्या करेगा

दिल को समझाना

आते हुए परदेस को

वो घर को सर झुकाना 


याद आता है


अब वो बात कहाँ

जो पहले थी

वो गुज़रा हुआ ज़माना


याद आता है



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रचनाएँ
हर्फ़-दर-हर्फ़ ज़िन्दगी
0.0
मेरी यह किताब एक कविताओं का संग्रह है।जिसमें मैं विभिन्न प्रकार की कविताओं को शामिल करूँगा।
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याद आता है

18 दिसम्बर 2022
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वो गाँव में  तारे देखते देखते  सो जाना  याद आता है अम्मा का खटिया पे बिस्तर लगाना  और फिर आजा जल्दी दूध पीले  कहके बुलाना  याद आता है सुबह उठ के  खेत को जाना और पशुओं के लिए चारा

2

क्या हूँ मैं

18 दिसम्बर 2022
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ज़्यादा नहीं हूँ अच्छा ए ज़माने थोड़ा बहुत ख़राब हूँ मैं लोग कहते हैं ये बुरी है मगर मुझे सहारा देती है तभी पीता शराब हूँ मैं ये दुनिया के तो क्या कहूँ बाज़-वक़्त तो लगता है के ख़ुद इक सराब

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अपने हिस्से का जीके

24 दिसम्बर 2022
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न रुकी थी न रुकी है न रुकेगी तू तो चलती रहे सदा तुझसे बिछड़ा एक बार जो कोई फिर है कब मिला ये वादा है मेरा जो भी तुझसे लिया है सब मोड़ जाऊँगा दुनिया अपने हिस्से का जीके तुझे छोड़ जाऊँगा दुनिय

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आज फिर सो गया

26 दिसम्बर 2022
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लाखों ग़म थे सीने में छुपा के सो गया आज फिर मैं तन्हाई गले लगाके सो गया जमीं है कम पड़ रही तुर्बतों लिये अरमानों को फिर आज दफ़ना के सो गया ऐसी क्या बात है आख़िर उस शख़्स में के जो उसके पास गया वो

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क्या हूँ मैं

11 जनवरी 2023
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ज़्यादा नहीं हूँ अच्छा ए ज़माने थोड़ा बहुत ख़राब हूँ मैं लोग कहते हैं ये बुरी है मगर मुझे सहारा देती है तभी पीता शराब हूँ मैं ये दुनिया के तो क्या कहूँ बाज़-वक़्त तो लगता है के ख़ुद इक सराब हूँ

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आज फिर सो गया

11 जनवरी 2023
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लाखों ग़म थे सीने में छुपा के सो गया आज फिर मैं तन्हाई गले लगाके सो गया जमीं है कम पड़ रही तुर्बतों लिये अरमानों को फिर आज दफ़ना के सो गया ऐसी क्या बात है आख़िर उस शख़्स में के जो उसके पास गया वो

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अपने हिस्से का जीके

11 जनवरी 2023
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न रुकी थी न रुकी है न रुकेगी तू तो चलती रहे सदा तुझसे बिछड़ा एक बार जो कोई फिर है कब मिला ये वादा है मेरा जो भी तुझसे लिया है सब मोड़ जाऊँगा दुनिया अपने हिस्से का जीके तुझे छोड़ जाऊँगा दुनिया

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आस्था या अंधविश्वास(बागेश्वर धाम)

18 जनवरी 2023
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मैंने यूट्यूब पर बागेश्वर धाम के वीडियोज़ देखे और ये भी पता चला की वहाँ बहुत सारे लोग आते हैं अपने कष्टों के निवारण के लिये।सबसे पहली बात तो ये कि आपकी ज़िंदगी की परेशानियों को आपंसे ज़्यादा कोई नहीं

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