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आस्था या अंधविश्वास(बागेश्वर धाम)

18 जनवरी 2023

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मैंने यूट्यूब पर बागेश्वर धाम के वीडियोज़ देखे और ये भी पता चला की वहाँ बहुत सारे लोग आते हैं अपने कष्टों के निवारण के लिये।सबसे पहली बात तो ये कि आपकी ज़िंदगी की परेशानियों को आपंसे ज़्यादा कोई नहीं जानता और उनका हल भी औरों के हाथ में नहीं है।ज़िंदगी केवल एक है इसे अच्छे से जियें और दूसरों को भी जीने दें।आपको अपनी ज़रूरत के बारे में पता होना चाहिये कि आपके लिये कोई चीज़ कितनी प्रयाप्त है।अब देखिये अगर और और और चाहिए के चक्कर में रहेंगे तो बाबाओं के पास जाना ही पड़ेगा।आप ये बात क्यूँ नहीं समझते कि ज़िंदगी सुख दुख का मेल है।कोई भी इंसान सदैव सुखी या दुखी नहीं रहेगा।ये सुख और दुख दिन और रात की तरह आते जाते रहेंगे।अब मेरा सवाल ये है कि बाबा जी तो बैठें हैं स्टेज पर आराम से और अच्छा अच्छा ज्ञान दे रहे हैं।पर क्या बाबा जी को नौकरी की फ़िक्र है शाम को ख़ाना मिलने या न मिलने की फ़िक्र है।बाबा जी बिलकुल मज़े की और निश्चिंत ज़िंदगी जी रहे हैं अगर आज हनुमान जी ज़िंदा होते तो क्या वो ये चाहते की तुम आओ मेरे पैर पड़ो और अपनी समस्या का हल पाओ। भगवान को अपने दिल में ज़िंदा रखो उसने आपको ज़िंदगी दी है दिमाग़ दिया है सोचने के लिये और क्या चाहिए आपको। एक और चीज़ अगर बाबा जी इतने पहुँचे हुए हैं तो मानवता की भलाई के लिए ये क्यूँ नहीं बताते कि देश में कुदरती आपदाएँ कहाँ पर आयेंगी।सीबीआई जॉइन करके अपराधियों के मन में क्या चल रहा है ये क्यूँ नहीं बताते।इसलिए नहीं सीबीआई जॉइन करते क्यूँकि उनको पता है कि सीबीआई वाले दिमाग़ का इस्तेमाल करते हैं।वो भावनाओं में नहीं बहते।उनको फँसाना मुश्किल है।और ये आम जनता हमारे भोले भाले लोग बेचारों को लगता है कि बाबा कोई चमत्कार कर देंगे।चमत्कार आपको ख़ुद करना होगा अपनी मेहनत से अपनी लगन से अपनी बुद्धि से। मुझे शिकायत बाबाओं से नहीं है लोगों से है।अरे आपने जितना समय इनके पास जाने के लिए ख़राब किया उतने ही समय में अपना कोई और काम कर लेते।किताबें पढ़िए और आँखें खोल कर देखिए के आपके साथ आस्था के नाम पर क्या किया जा रहा है।हम सबने ही अपनी ज़रूरतों को बढ़ा लिया है। किसी को मेरे इन विचारों के संबंध में कोई सुझाव देना हो तो मेरी इंस्टाग्राम आईडी Apnidastaan पर या मेरी जीमेल               apnidastaan7@gmail.com पर मुझसे संपर्क कर सकता है।आख़िर में कुछ पंक्तियाँ आपके साथ सांझी कर रहा हूँ।



रोटी कपड़ा और मकान

से आगे निकला इंसान

जो है ज़रूरत से ज़्यादा वो ज़हर है

क्यूँ शोहरत की माला जपता हर पहर है

दौलत का नादान परिंदे काहे करता है अभिमान

रोटी कपड़ा और मकान से आगे निकला इंसान

कितने बरसों से दौड़ रहा क्या दौड़ दौड़ के थका नहीं

जो पाना चाहता था अब तक क्या वो भी तू पा सका नहीं

पैसा मिलने चाहिए अब तो जाती है तो जाये जान

रोटी कपड़ा और मकान से आगे निकला इंसान

धर्मों का अब धंधा होने लग गया है

तेरे सपने कुछ पैसों में

भगवान पिरोने लग गया है

दिल में रख के खोट रे पगले

क्यूँ रब का करता गुणगान

रोटी कपड़ा और मकान से आगे निकला इंसान

रॉबिन संधू

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रचनाएँ
हर्फ़-दर-हर्फ़ ज़िन्दगी
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मेरी यह किताब एक कविताओं का संग्रह है।जिसमें मैं विभिन्न प्रकार की कविताओं को शामिल करूँगा।
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याद आता है

18 दिसम्बर 2022
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वो गाँव में  तारे देखते देखते  सो जाना  याद आता है अम्मा का खटिया पे बिस्तर लगाना  और फिर आजा जल्दी दूध पीले  कहके बुलाना  याद आता है सुबह उठ के  खेत को जाना और पशुओं के लिए चारा

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क्या हूँ मैं

18 दिसम्बर 2022
1
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ज़्यादा नहीं हूँ अच्छा ए ज़माने थोड़ा बहुत ख़राब हूँ मैं लोग कहते हैं ये बुरी है मगर मुझे सहारा देती है तभी पीता शराब हूँ मैं ये दुनिया के तो क्या कहूँ बाज़-वक़्त तो लगता है के ख़ुद इक सराब

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अपने हिस्से का जीके

24 दिसम्बर 2022
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न रुकी थी न रुकी है न रुकेगी तू तो चलती रहे सदा तुझसे बिछड़ा एक बार जो कोई फिर है कब मिला ये वादा है मेरा जो भी तुझसे लिया है सब मोड़ जाऊँगा दुनिया अपने हिस्से का जीके तुझे छोड़ जाऊँगा दुनिय

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आज फिर सो गया

26 दिसम्बर 2022
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लाखों ग़म थे सीने में छुपा के सो गया आज फिर मैं तन्हाई गले लगाके सो गया जमीं है कम पड़ रही तुर्बतों लिये अरमानों को फिर आज दफ़ना के सो गया ऐसी क्या बात है आख़िर उस शख़्स में के जो उसके पास गया वो

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क्या हूँ मैं

11 जनवरी 2023
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ज़्यादा नहीं हूँ अच्छा ए ज़माने थोड़ा बहुत ख़राब हूँ मैं लोग कहते हैं ये बुरी है मगर मुझे सहारा देती है तभी पीता शराब हूँ मैं ये दुनिया के तो क्या कहूँ बाज़-वक़्त तो लगता है के ख़ुद इक सराब हूँ

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आज फिर सो गया

11 जनवरी 2023
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लाखों ग़म थे सीने में छुपा के सो गया आज फिर मैं तन्हाई गले लगाके सो गया जमीं है कम पड़ रही तुर्बतों लिये अरमानों को फिर आज दफ़ना के सो गया ऐसी क्या बात है आख़िर उस शख़्स में के जो उसके पास गया वो

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अपने हिस्से का जीके

11 जनवरी 2023
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न रुकी थी न रुकी है न रुकेगी तू तो चलती रहे सदा तुझसे बिछड़ा एक बार जो कोई फिर है कब मिला ये वादा है मेरा जो भी तुझसे लिया है सब मोड़ जाऊँगा दुनिया अपने हिस्से का जीके तुझे छोड़ जाऊँगा दुनिया

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आस्था या अंधविश्वास(बागेश्वर धाम)

18 जनवरी 2023
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मैंने यूट्यूब पर बागेश्वर धाम के वीडियोज़ देखे और ये भी पता चला की वहाँ बहुत सारे लोग आते हैं अपने कष्टों के निवारण के लिये।सबसे पहली बात तो ये कि आपकी ज़िंदगी की परेशानियों को आपंसे ज़्यादा कोई नहीं

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