मैंने यूट्यूब पर बागेश्वर धाम के वीडियोज़ देखे और ये भी पता चला की वहाँ बहुत सारे लोग आते हैं अपने कष्टों के निवारण के लिये।सबसे पहली बात तो ये कि आपकी ज़िंदगी की परेशानियों को आपंसे ज़्यादा कोई नहीं जानता और उनका हल भी औरों के हाथ में नहीं है।ज़िंदगी केवल एक है इसे अच्छे से जियें और दूसरों को भी जीने दें।आपको अपनी ज़रूरत के बारे में पता होना चाहिये कि आपके लिये कोई चीज़ कितनी प्रयाप्त है।अब देखिये अगर और और और चाहिए के चक्कर में रहेंगे तो बाबाओं के पास जाना ही पड़ेगा।आप ये बात क्यूँ नहीं समझते कि ज़िंदगी सुख दुख का मेल है।कोई भी इंसान सदैव सुखी या दुखी नहीं रहेगा।ये सुख और दुख दिन और रात की तरह आते जाते रहेंगे।अब मेरा सवाल ये है कि बाबा जी तो बैठें हैं स्टेज पर आराम से और अच्छा अच्छा ज्ञान दे रहे हैं।पर क्या बाबा जी को नौकरी की फ़िक्र है शाम को ख़ाना मिलने या न मिलने की फ़िक्र है।बाबा जी बिलकुल मज़े की और निश्चिंत ज़िंदगी जी रहे हैं अगर आज हनुमान जी ज़िंदा होते तो क्या वो ये चाहते की तुम आओ मेरे पैर पड़ो और अपनी समस्या का हल पाओ। भगवान को अपने दिल में ज़िंदा रखो उसने आपको ज़िंदगी दी है दिमाग़ दिया है सोचने के लिये और क्या चाहिए आपको। एक और चीज़ अगर बाबा जी इतने पहुँचे हुए हैं तो मानवता की भलाई के लिए ये क्यूँ नहीं बताते कि देश में कुदरती आपदाएँ कहाँ पर आयेंगी।सीबीआई जॉइन करके अपराधियों के मन में क्या चल रहा है ये क्यूँ नहीं बताते।इसलिए नहीं सीबीआई जॉइन करते क्यूँकि उनको पता है कि सीबीआई वाले दिमाग़ का इस्तेमाल करते हैं।वो भावनाओं में नहीं बहते।उनको फँसाना मुश्किल है।और ये आम जनता हमारे भोले भाले लोग बेचारों को लगता है कि बाबा कोई चमत्कार कर देंगे।चमत्कार आपको ख़ुद करना होगा अपनी मेहनत से अपनी लगन से अपनी बुद्धि से। मुझे शिकायत बाबाओं से नहीं है लोगों से है।अरे आपने जितना समय इनके पास जाने के लिए ख़राब किया उतने ही समय में अपना कोई और काम कर लेते।किताबें पढ़िए और आँखें खोल कर देखिए के आपके साथ आस्था के नाम पर क्या किया जा रहा है।हम सबने ही अपनी ज़रूरतों को बढ़ा लिया है। किसी को मेरे इन विचारों के संबंध में कोई सुझाव देना हो तो मेरी इंस्टाग्राम आईडी Apnidastaan पर या मेरी जीमेल apnidastaan7@gmail.com पर मुझसे संपर्क कर सकता है।आख़िर में कुछ पंक्तियाँ आपके साथ सांझी कर रहा हूँ।
रोटी कपड़ा और मकान
से आगे निकला इंसान
जो है ज़रूरत से ज़्यादा वो ज़हर है
क्यूँ शोहरत की माला जपता हर पहर है
दौलत का नादान परिंदे काहे करता है अभिमान
रोटी कपड़ा और मकान से आगे निकला इंसान
कितने बरसों से दौड़ रहा क्या दौड़ दौड़ के थका नहीं
जो पाना चाहता था अब तक क्या वो भी तू पा सका नहीं
पैसा मिलने चाहिए अब तो जाती है तो जाये जान
रोटी कपड़ा और मकान से आगे निकला इंसान
धर्मों का अब धंधा होने लग गया है
तेरे सपने कुछ पैसों में
भगवान पिरोने लग गया है
दिल में रख के खोट रे पगले
क्यूँ रब का करता गुणगान
रोटी कपड़ा और मकान से आगे निकला इंसान
रॉबिन संधू