अर्थशास्त्र में गुप्तचर व्यवस्था
हम आज विकास की सीढ़ियां चढ़ते हुए अंतरिक्ष तक पहुंच गए हैं आज हम अपनी राजनीतिक व्यवस्थाओं पर गर्व करते हैं और स्वयं की बुद्धि का लोहा मानकर खुद पर अहंकार करते हैं।आज हम सोचते हैं कि, हमारी बुद्धि की समता तो कोई कर ही नहीं सकता लेकिन हम यह भूल रहे हैं कि जिन नीतियों पर हम आज गर्व कर रहे हैं उससे अच्छी और सशक्त नीतियों का उल्लेख चाणक्य द्वारा अर्थशास्त्र में किया गया है।
चाणक्य ने अर्थशास्त्र में गुप्तचर विभाग का उल्लेख बहुत ही विस्तृत रूप से किया है मैं यहां संक्षिप्त परिचय देने की कोशिश कर रही हूं।।
मौर्य शासनकाल में गुप्तचर विभाग बहुत ही सशक्त था गुप्तचरों को राजा का चक्षु कहा जाता था क्योंकि राजा इन्हें के माध्यम से अपने सम्पूर्ण राज्य का सही रुप में अवलोकन करता था।
चाणक्य ने अर्थशास्त्र में दो प्रकार के गुप्तचरों का उल्लेख किया है••••
प्रथम प्रकार स्थाई गुप्तचर
द्वितीय प्रकार संचारा गुप्तचर
स्थाई गुप्तचर एक स्थान पर रहकर गुप्त रूप से राज्य की गतिविधियों पर दृष्टि बनाए रखते थे। गुप्तचरों को राज्य या शहर का कोई व्यक्ति पहचान नहीं सकता था क्योंकि इनकी नियुक्ति स्वयं राजा गुप्त रूप से करता था गुप्तचरों की नियुक्ति के समय राजा के साथ उनके प्रधानमंत्री ही साथ रहते थे कभी कभी राजा स्वयं अकेले ही गुप्तचरों की नियुक्ति करते थे।
संचारा गुप्तचर भ्रमणशील होते थे यह भेष बदलकर शहर-शहर गांव-गांव भ्रमण करते थे इन्हें कोई व्यक्ति पहचान नहीं सकता था।
चाणक्य ने इसका भी उल्लेख किया है कि, गुप्तचर सीधे राजा के सम्पर्क में होते थे अपनी सभी गतिविधियों और जानकारियों को राजा को ही बताते थे किसी दूसरे व्यक्ति से नहीं यहां तक की युवराज को भी नहीं गुप्तचर जब चाहें राजा से मिल सकते थे।राजा चाहे शयन-कक्ष में हो अंतःपुर में हो या किसी विशेष मंत्रणा में व्यस्त हो गुप्तचर तुरंत उनके पास जा सकता था राजा अपने सभी कार्यों को छोड़कर उनसे मिलता था।
वह समय दिन का हो या रात्रि का हो
अब बात आती है की गुप्तचरों की नियुक्ति के लिए उनमें योग्यता क्या होनी चाहिए वैसे तो प्रत्येक मंत्रियों की नियुक्ति के लिए कुछ विशेष गुण आवश्यक होते थे। यदि उतने गुण न मिल सकें तो गुप्तचरों और मंत्रियों में निम्न गुणों का होना आवश्यक होता था•••
कुलीनता, उसे राज्य का नागरिक होना, देशभक्ति, स्वामिभक्ति, चरित्रवान होना,हर तरह के व्यसनों से मुक्त होना अर्थात अवगुणों का न होना जैसे उस व्यक्ति को शराबी, जुआरी और चरित्रहीन नहीं होना चाहिए।
इतना ही नहीं गुप्तचरों और मंत्रियों की गुप्त रूप से तीन प्रकार से भी परीक्षा होती थी।
पहला भय दिखाकर उनको प्रताड़ित करके उनसे राज्य और राजा की बातों को जानने की कोशिश की जाती थी जबकि गुप्तचरों को इस बात का ज्ञान नहीं होता था कि उनकी परीक्षा ली जा रही है।
दूसरा धन का लालच देकर उनसे राज्य या राजा के विषय में जानकारी लेना
तीसरा उनके चरित्र के माध्यम से जैसे शराब पिलाने की कोशिश करना जुआ खेलने के लिए प्रेरित करना उन्हें नगर की गणिकाओं के पास लेकर जाने की बात करना यदि इनमें से किसी भी परीक्षा में व्यक्ति असफल हो जाता था तो उसे गुप्तचर विभाग में नियुक्ति नहीं किया जाता था।
एक विशेष व्यवस्था गुप्तचरों के परिवार के लिए की गई थी यदि किसी कारणवश गुप्तचर की मृत्यु राज्यकार्य करते हुए हो गई तो उसके परिवार की सम्पूर्ण जिम्मेदारी राज्य की होती थी जब उस परिवार का बालक युवावस्था में प्रवेश करता था तो उसकी योग्यता के अनुसार राजकीय कार्य के लिए नियुक्त किया जाता था कहने का तात्पर्य यह है कि, उसे सरकारी नौकरी दी जाती थी।
उपरोक्त बातों को जानने के बाद हम यह कह सकते हैं कि, हमारे देश में प्राचीन काल से ही गुप्तचर विभाग बहुत ही सशक्त था और वह लोग अपने देश और राजा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने में भी पीछे नहीं हटते थे।
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
21/7/2021