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रुख से पर्दा हटा कर देखना / ग़ज़ल

2 नवम्बर 2015

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रुख से तुम पर्दा हटा कर देखना ।


दूरियां सब तुम मिटा कर देखना ।।


उफ़ तक भी हम ना करेंगे आपसे ।


बिजलियाँ चाहे गिरा कर देखना ।।


आप भी मेरे ही जैसे हो सनम ।


आइना खुद को दिखा कर देखना ।।


सारी दौलत तुम यहाँ पा जाओगे ।


माँ के पांवों में झुका का देखना ।।


याद मुझको आ जाये मेरा खुदा ।


मेरे यूँ गुनाह गिना कर देखना ।।


 वक्त की कीमत को जान जाओगे ।


घर में इक घडी लगा कर देखना


हो मेरी तस्वीर गर धुंधली कभी



याद का दीपक जलाकर देखना


आएंगे अपने ही जैसे सब नज़र


आँखों से चश्मा हटाकर देखना


नींद मुझको भी ज़रा आ जायेगी ।


अपनी बाहों पर सुला कर देखना ।।


नामुमकिन कुछ भी नहीं है दोस्तों


हौंसला दिल में जगा कर देखना ।।


महेश कुमार कुलदीप 

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ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

नामुमकिन कुछ भी नहीं है दोस्तों, हौंसला दिल में जगा कर देखना............ बहुत खूबसूरत ग़ज़ल !

2 नवम्बर 2015

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mkkuldeep
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