रुख से तुम पर्दा हटा कर देखना ।
दूरियां सब तुम मिटा कर देखना ।।
उफ़ तक भी हम ना करेंगे आपसे ।
बिजलियाँ चाहे गिरा कर देखना ।।
आप भी मेरे ही जैसे हो सनम ।
आइना खुद को दिखा कर देखना ।।
सारी दौलत तुम यहाँ पा जाओगे ।
माँ के पांवों में झुका का देखना ।।
याद मुझको आ जाये मेरा खुदा ।
मेरे यूँ गुनाह गिना कर देखना ।।
वक्त की कीमत को जान जाओगे ।
घर में इक घडी लगा कर देखना ॥
हो मेरी तस्वीर गर धुंधली कभी
याद का दीपक जलाकर देखना ॥
आएंगे अपने ही जैसे सब नज़र ।
आँखों से
चश्मा हटाकर देखना ॥
नींद मुझको भी ज़रा आ जायेगी ।
अपनी बाहों पर सुला कर देखना ।।
नामुमकिन कुछ भी नहीं है दोस्तों ।
हौंसला
दिल में जगा कर देखना ।।
महेश कुमार कुलदीप