ध्ार्म शब्द धृत धातु से बना है जिससे तात्पर्य है कि धारण करना। नित्य अच्छा स्वाध्याय करेंगे यह संकल्प लेकर उस नियम का पालन करेंगे तो यह भी धार्मिक होना है। दूजों की सहायता का संकल्प लेकर धारण कर लेंगे अौर उस पर चल पड़ेंगे तो यह सहायता करने का धर्म भी आपका हो जाएगा। इस प्रकार आप कितने भी संकल्प बनाकर उन्हें धारण कर लें वे सभी मेरी दृष्टि में धर्मिक होना है।
मानव धर्म सर्वोत्तम है। इसके अलावा जातिगत रूप से धर्म को समझना अौर समझाना अपना उल्लू सीधा करना है। धार्मिक वही बन सकता हो अपनी धारणा शक्ति को एक दिशा दे पाता है। सुधारणा या सुसंकल्प का अनुसरण आपको सुमार्ग पर ही ले जाता है जिससे आप अपने साथ साथ दूजों का हित करते हैं।
परमात्मा एक है उस तक पहुंचने के मार्ग भिन्न हो सकते हैं पर पहुंचना तो मात्र उस एक के पास है। सुधार्मिक होना अच्छी बात है पर धर्म के नाम पर अपना स्वार्थ सिद्ध करना अत्यन्त निन्दनीय है।
मैं अपना लक्ष्य चुनकर उसको पूर्ण करने के लिए पूर्ण मनोयोग से प्रयास करता हूं तो मैं भी धार्मिक हुआ और मेरा यह प्रयास ही मेरा तप है जो मुझ अन्तत: लक्ष्य तक पहुंचाकर आशीष के तौर में अवश्य सुफल प्रदान कर ही देगा।
जब जन्म होता है तो कोई जाति नहीं होती है यह तो जिनके अभिभावक जिस मार्ग का अनुसरण करते हैं उस पर उसी का ठप्पा लग जाता है। धर्मिक होना अच्छी बात है। पर यह सोचना आवश्यक है कि आप कैसे धार्मिक बनें।
परमात्मा तक पहुंचना है तो काेई एक मार्ग अपना लें या मानव धर्म अपना लें लक्ष्य तो यही होना चाहिए कि आप किसी को अहित न पहुंचाएं और न अपना स्वार्थ सिद्ध करें। भला करें अौर भला करने की प्रेरणा देना भी सुधार्मिक होना है।