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बातें कुछ अनकही सी...........: मैं चिराग हूँ बुझता हुआ ही सही,मगर याद रहे

2 अगस्त 2017

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मैं चिराग हूँ बुझता हुआ ही सही,मगर याद रहे

तुम्हारे दिल-e-मकान को रौशन,हमने ही किया था।

ये किसी और से तिश्नगी जायज़ है तुम्हारी,मगर याद रहे

मोहब्बत से रूबरू हमने ही किया था।

चली जाओ किसी गैर की बाहों में गम नहीं, मगर याद रहे

तेरे दिल की आवाज़ को धड़कन,हमने ही दिया था।

तुम आज भी बारिश में जरूर भीगती होगी,मगर याद रहे

तुम्हारे बदन पर उन बूँदों का एहसास,हमने ही दिया था।

तुम तो यूँ ही नादान सी निकल जाती थी उस गली में,मगर याद रहे

उस पायल की मीठी झनक को महसूस,हमने ही किया था।

आज जो ये दूरियाँ हैं,बंदिशें ही सही,जो भी हो,मगर याद रहे

कुछ दर्द हमने लिया था,कुछ दर्द तुमने दिया था।

आज जो पहुँचा हूँ इस मक़ाम पर,खुश हूँ,मगर याद रहे

समेट रहा हूँ खुद को,थोड़ा टूटा था,बिखेर तुमने दिया था।

©युगेश

बातें कुछ अनकही सी...........: मैं चिराग हूँ बुझता हुआ ही सही,मगर याद रहे

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