सहायक प्राध्यापक, स्नातकोत्तर हिंदी विभाग, सतीश चन्दर धवन राजकीय महाविद्यालय, लुधियाना, पंजाब, ई मेल - sangamve@gmail.com, चलभाष - 094636-03737
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मेरा कुछ सामान
है---- मेरा----- दिल----- मोम----- सा तू---- धड़के---- उसमे----- ॐ---- सा #संगमवर्मा
31 ने 1 का हाथ पकड़ कर यूँ इज़हार किया तेरे बिन मैं नहीं...1 ने फिर हाथ थामते हुए इख्तियार किया हाँ !....तुम्हारे बिन मैं नहीं और मेरे बिन तुम नहीं
हदें तो हदें ही होती हैं जब सरहदें बन जाएँतो बेहदें हो जाती हैंसंगम वर्मा
'लफ्ज़', तीन हैं और काफ़ी हैं जेहन में उतरने के लिए दिल के धड़कने के लिएसुरों में बाँधने के लिएताल में बैठाने के लिएगीत गुनगुनाने के लिएमिसरा बनाने के लिएग़ज़ल गाने के लिएहर नए तराने के लिए हर अफ़साने के लिएमुस्कुराने के लिए गुदगुदाने के लिए फुसफुसाने के लिएहक़ जताने के लिए रूठे को मनाने के लिए जोरों
चाँद ने दे दी है अब इजाज़तसबको सबका चाँद मुबारकमाथे पे बिंदी होंठों की लालीचूड़ियाँ बुलाएँ, चाँद मुबारकदेहरी के भीतर झाँकती आँखेंआएँ तो कहेंगी, चाँद मुबारकदिल के कोने से निकली आहहै निकला चाँद, चाँद मुबारकप्रेम की छननी से निहारूँ तुझेतो चाँद भी कहे चाँद मुबारकतेरे हाथों से पानी का घूँट पिऊँव्रत खोलूँ
पसंद है मुझे गुढ़ की डेली खाना खा तो ली है पर, परोसी गई मिठास खाने से कहीं अच्छी है ये बता नहीं सकता बेजुबान जो हूँ इस मिठास के चक्कर में कई दफा चाबुक की मार पड़ी हैक्यूंकि मुझे गुढ़ पसंद है संगम वर्मा
गोदलू -सा मेरा काकू क्या चाहिए? बोल, "हाँ! बोल" माँ की ऊँगली पकड़ मुँह में दाबे गोदलू चूसने लगा माँ बिन कहे समझती है माँ तुझे सलाम संगम वर्मा
अभी कल ही की बात है जब तुम्हारे- मेरे जज़्बातों की शुरुआत हुई थीयूं ही आँखों की आँखों से मुलाक़ात हुई थीतुमने हसीं लबों पे अपने मेरा नाम सजाया था दिल के खाली कमरे में मुझको बसाया थागुफ्तगू हुई और जुस्तजू बनी मेरी चाहत की तुम आरज़ू बनींये पाजेब की छम-छम चूड़ियों का खनकना नैनों के अंजुमन में पलकों का झपकन
सुबह - सुबह पानी में डुबो के साबुन से रगड़ कर थापी से पीट कर आधा घंटा वाशिंग मशीन में घुमाकर फिर पानी में डुबोकर शर्ट को कड़ी धुप में तार पे टांग दिया गले पर ज़ोर से चूंटी लगा दी शर्ट की जेब पे बनादिल वाला " आइकॉन " कितना बेज़ार हो गया है कितनी बेरुखी है
हाँ! साँस है चल रही है मद्धम - सी जल रही है सितम -सीधमनियां भी धड़कती है धक -धक! ज़ोरों - सीनब्ज़ थाम के महसूस किया ज्वर है माँ को मुझसे पहले ख़बर है मना करती थी बारिश के पानी में खेलने से पर बचपन का बचपना फ़ौरन गीली पट्टी माथे पे सजा दी इक ज़ोर से पूरे बदन में ठंडक की बिजली दौड़ी जैसे जलते अंगारे पर पानी