हाँ! साँस है
चल रही है
मद्धम - सी
जल रही है
सितम -सी
धमनियां भी
धड़कती है
धक -धक!
ज़ोरों - सी
नब्ज़ थाम के
महसूस किया
ज्वर है
माँ को मुझसे पहले
ख़बर है
मना करती थी
बारिश के पानी में खेलने से
पर बचपन का बचपना
फ़ौरन
गीली पट्टी
माथे पे सजा दी
इक ज़ोर से
पूरे बदन में
ठंडक की बिजली दौड़ी
जैसे जलते अंगारे पर
पानी की बूँद रख दी
गहरी साँस भरी सिसकी
कराह से निकली
माँह्ह्ह्ह्ह………
झट कलेजे से लिपटा लिया
सारी ममता
पलकों में उमड़ आई
जो बूँद मेरे तपतपे बदन में
सोख चुकी थी
वो इन आँखों से ज़ार ज़ार
फूट कर कह रही थी
मेरी शब्बोह्ह्ह्ह्ह!
मेरी शब्बोह्ह्ह्ह!
कुछ नहीं होगा तुम्हें
तू ही मेरी हक़ीम है
ममता कभी न होती तक़्सीम है
# संगम वर्मा