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सप्रेम – तेरा प्यारा सा ख़्वाब

23 अप्रैल 2017

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एक ख्वाब मिला था किसी मोड़ पर

लिए एक पैगाम.

थी एक पल की उसकी हस्ती

और किया था एक पल सलाम.


कर रहा था गुज़ारिश मुझसे मिलने की फिर एक बार
जब रात हो खामोश और हर लम्हा हो तन्हा.

मैने कहा भाई अब क्या काम है तेरा, क्यूँ मिलना है तुझे.

तो मुस्कुरा कर बोला…

सिर्फ़ इतना बताना है…

शहर की इस दौड़ में भटक गया है तू,
अजीबोगरीब चीज़ों के बीच अटक गया है तू.
ये लाएँगी तेरी ज़िंदगी में मुश्किलें और परेशानियाँ हज़ार
फिर नहीं याद रहेगा तुझे कोई तीज या त्यौहार.

ज़रा मुझे बता तुझे याद है क्या?

आख़री बार कब बारिश की बूँदों में नहाया था.
कब उस गीले-भीगे से नाले में कश्ती को बहाया था.

आख़री बार कब मीठी मुस्कान लेकर घर आया था.
कब घरवालों संग सुकुभरा वक़्त बिताया था.

सोच ज़रा…

आख़री बार कब बॅलेन्स शीट और डेडलाइन्स की मिस किया था.
कब तूने ज़िंदगी की फिर से जिया था.

याद है… नहीं ना. अगर तू इसे जीना कहता है, तो सच सच बोल मारना किसे कहते हैं.

तुझे फिर से जीना सीखने के लिए, तुझसे मिलना है. गर हो तमन्ना तेरी तो बुला लेना कभी भी, में वहीं मिलूँगा उसी पुराने ख्वाबों के खंडहर के करीब.

सप्रेम – तेरा प्यारा सा ख़्वाब.

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