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मजदूर

11 जून 2020
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वो मजदूर है, मज़बूर नहीं.

सरहदपार वाला प्यार

3 नवम्बर 2018
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सरहदपार वालाप्यारगुलज़ारसाहब ने क्या ख़ूब लिखा है... आँखों कोवीसा नहीं लगता,सपनो की सरहद नहीं होती...मेरी यहकहानी भी कुछ ऐसी ही है, इन पंक्तियों के जैसी, जिसे किसी वीसा या पासपोर्ट कीज़रूरत नहीं है आपके दिल तक पहुंचने के लिए. बस यूँ ही ख़्व

भूतिया स्टेशन

28 अगस्त 2017
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विशेष हमेशा की तरह इस बार भी ऑफिस की तरफ से एक टूर पर था. वैसे तो उसके लिए टूर पर जाना कोई नई बात नहीं थी फिर भी इस बार उसे एक अजीब सी ख़ुशी हो रही थी. शायद इसलिए क्यूँकी इस बार टूर पर और कहीं नहीं उसे उसके अपने शहर जाना था. हमेशा की तरह उसने रिजर्वेशन सेकंड AC में किया हुआ था. स्टेशन वो टाइम पर पहुं

भर ले तू ऊँची उड़ान

26 अगस्त 2017
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नहीं ख़्वाबों पर कोई बंदिशें,न वक़्त के साथ कोई बढ़ती रंजिशेंदे होसलों को नई पहचान,भर ले तू ऊँची उड़ान.कुछ नए ख़्वाब इन आँखों में बसा ले,जरा उम्मीदों वाला सुरमा लगा लेकसकर ज़िंदगी की कमानभर ले तू ऊँची उड़ान.आकाश है खुला पड़ा,समंदर तेरे क़दमों में पड़ापक्के इरादों से हासिल कर नए

चुन्नू

18 जून 2017
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वो मुस्कुराता चेहरा, कई सारे ख्व़ाब, कई ख़्वाहिशें, कई हसरतें और कई अरमान. कैसा हो अगर उन सभी ख्वाहिशों और अरमानों को कुछ चुनिंदा लम्हे ज़ज्बे और होंसलों के रंगों से उस मुस्कुराते चेहरे पर बसी दो प्यारी आँखों में भर दे. कैसा हो अगर सिर्फ एक पल उसकी सारी दुनिया बदल दे. कैसा

पर्चा

14 मई 2017
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घंटी बजते ही जा बैठे सबअपनी - अपनी जगह परकोई पेन्सिल छील रहा हैतो कोई शर्ट की बाँह मेंकुछ छुपाने की कोशिशमें लगा हुआ हैना जाने कब मास्टर जी ले आए पर्चाऔर थमा दिया कपकपाते हाथों मेंडरते डरते देखा तो पता चलाजो पड़ा था वो तो आया ही नहीं.

मिट्टी के सपने.

9 मई 2017
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सुबह के तकरीबन ६ बज रहे थे. मौसम में थोड़ी नमी थी और हवा भी हलके हलके बह रही थी. गाँव की एक छोटी सी झोपडी के एक कोने में मिट्टी के बिछोने पर शुभा दुनिया से बेख़बर मिट्टी के सपनों में खोई हुई थी. शुभा कहने क

वो पुराना घर…

7 मई 2017
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गली के कोने पर जो खंडहर नुमा मकान हैकिसी वक़्त बसेरा था कुछ ख़्वाबों का.कुछ ख़्वाब तड़के-तड़के उठना जाने किस उधेड़बुन में लग जाते.कभी इधर भागते, कभी उधर दौड़तेकभी उपर वाले कमरे में कुछ काग़ज़ात तलाशते.कभी

सप्रेम – तेरा प्यारा सा ख़्वाब

23 अप्रैल 2017
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एक ख्वाब मिला था किसी मोड़ परलिए एक पैगाम.थी एक पल की उसकी हस्तीऔर किया था एक पल सलाम.कर रहा था गुज़ारिश मुझसे मिलने की फिर एक बारजब रात हो खामोश और हर लम्हा हो तन्हा.मैने कहा भाई अब क्या काम है तेरा, क्यूँ मिलना है तुझे.तो मुस्कुरा कर बोला…सिर्फ़ इतना बताना है…शहर की इस दौड़ में भटक गया है तू,अजीबो

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