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सर्वेश कुमार मारुतउपनाम- मारुत(कवि ,शायर व कहानीकार) जन्मतिथि-15/07/1988माता- श्रीमती माया देवीपिता- श्री रामेश्वर दयालपता- राजीव नगर गुलाब बाड़ी नवादा शेखान पोस्ट- श्यामगंज बरेली (उ० प्र ०) पिन 243005शिक्षा- बी० ए०, बी० एड०, एम० ए०( अर्थशास्त्र) कवि व शायर रचनाएँ- मैं पानी की बूँद हूँ छोटी, प्यारी कोयल, नारी, बादल काले, अब काँटा बन चुका शरीर आदि

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ख़ुद को बचाना यारों

18 मई 2021
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तिस्लिमी दुनिया से ख़ुद को बचाना यारों,क़दम भी आहिस्ते-आहिस्ते चलाना यारों।सोच समझ ले फ़िर चलना इसके दरमियां,ख़ुद को जगा लेना न ख़ुद को सुलाना यारों।मौत का खेल है यहाँ बड़ा ही मुश्किल मंज़र ,ख़ुद को न लिटाना बस ख़ुद को उठाना यारों।कोरोना लिए कफ़न फ़िर रहा तलाशने राही,एहतेराम ख़ूब

नारी तू बस नारी नहीं

6 मई 2021
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नारी तू बस नारी नहीं, सृष्टि का आधार हो तुम।जीवनदाता भाग्यविधाता, जय हो-जय हो नारी तेरी;तेरे विविध रूप और सत्कार हो तुम।।-सर्वेश कुमार मारुत

बारिस

5 मई 2021
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टिपटिपाती है बारिस, मानों मेघों में हों छेंद।गड़गड़ाती बिजलियाँ, ध्वनि बहुत है तेज़।तीव्र कभी-कभी हौले, जो बड़ा लगाये जोर।कभी इधर-कभी उधर, मानों लगी हो डोर।मेघ वारि भरकर लाए, और दिया निचोड़।और लाओ और लाओ, ऐसी लगी है होड़।।-सर्वेश कुमार मारुत

बेटी

3 मई 2021
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बेटी तो बेटी होती हैं,सृष्टि को तो यही संजोती ।सृष्टि ही जीवन का आधार,बेटी हैं खुशियों का भण्डार।।-सर्वेश कुमार मारुत

दस्तूर निभा देना

1 मई 2021
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रोक दूँ ग़र साँसें औ टूटती नब्ज़ भी,आख़िरी दस्तूर निभा देना हिलाकर मुझको।-सर्वेश कुमार मारुत

कुकड़ूँ-कूँ( हास्य कविता )

30 अप्रैल 2021
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एक पेड़ पर बैठा मुर्ग़ा, कुकडूँ-कूँ कर रहा था।वर्षात होने पर भी, उष्ण गर्मी से मर रहा था।मैंने पूछा अरे!भाई, इतना क्यों कर रहे हो शोर।मुर्गा कुकडूँ-कूँ करते हुए, बोल पड़ा बहुत ज़ोर।ए

जली चितायें

28 अप्रैल 2021
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व्याकुल अति कोरोना ने कहर डहाया हुई प्रचण्ड लाल फिजायें, पर मिल न सकी ऑक्सीजन और यहाँ अति जली चितायें ।1जलाने बड़ी देखो होड़ लगी, प्रतिक्षारत में बैठे करके तैयारी। एक ओर जला-जला पूत रे, दूसरी ओर जली-जली महतारी। 2-सर्वेश कुमार मारुत

टूटा हाथ औ टूटती चप्पल ( कहानी)

26 अप्रैल 2021
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ओए टुन्ना! कहाँ बैठा है?, टुन्ना के पापा चीतू ने आवाज़ लगाई। पर कोई जवाब न आया। फ़िर अंदर कमरे में घुसते हुए, ओए टुन्ना! क्या अभी तक सो रहा है? (कोई होता तो ही जवाब मिलता, पर वहाँ तो कोई न था।) आख़िर कहाँ चला गया? टुन्ना! मैंने उससे कहा

न छुपा पाऊँ

23 अप्रैल 2021
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न छुपा पाऊँ मिरी मन की तड़पती बेक़रारी,तलब रहती अक़्सर ही सिर्फ़ उनको देखने की। - सर्वेश कुमार मारुत

माँ

22 अप्रैल 2021
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मैं भूल गया अपने ग़म को,जब माँ ने मुझे पुकारा था।मैं जीत गया सारी दुनिया,मैंने जब-जब शीश नवाज़ा था।मेरी माँ की सेवा में भले ही,चाहें ज़िस्म लहू ही बिक जाए।सज़दे करूँ मैं सौ-सौ बारों,मेरा इसके बिना संसार कहाँ।। -सर्वेश कुमार मारुत

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