शख्सियत पर शख्सियत को , लुटा कर देख ले?
शख्सियत पर शख्सियत को , क्यों न लुटा कर देख ले?फ़िर बने रौनक- ए- ज़िंदगी, तेरे लिए मेरे लिए।सोचता क्या फिर रहा तू ?, व्यर्थ कर यहाँ से वहाँ ।मरना है एक दिन सभी को, और फ़िर जाना कहाँ?कुछ साथ है,-कुछ छूट जाते, डगर पर डगर चलते हुए।पर न कर गुरूर खुद पर, साथ चल और हौसला देते हुए।इंसानियत ही इंसानियत हो, और