तिस्लिमी दुनिया से ख़ुद को बचाना यारों,
क़दम भी आहिस्ते-आहिस्ते चलाना यारों।
सोच समझ ले फ़िर चलना इसके दरमियां,
ख़ुद को जगा लेना न ख़ुद को सुलाना यारों।
मौत का खेल है यहाँ बड़ा ही मुश्किल मंज़र ,
ख़ुद को न लिटाना बस ख़ुद को उठाना यारों।
कोरोना लिए कफ़न फ़िर रहा तलाशने राही,
एहतेराम ख़ूब करना न ख़ुद को फँसाना यारों।
मिटना एक दिन सबक सबको पता कह दो न,
इल्म है, न यूँ अंजान बन ख़ुद को मिटाना यारों।।
सर्वाधिकार सुरक्षित-सर्वेश कुमार मारुत