shabd-logo

माँ

22 अप्रैल 2021

475 बार देखा गया 475

मैं भूल गया अपने ग़म को,

जब माँ ने मुझे पुकारा था।

मैं जीत गया सारी दुनिया,

मैंने जब-जब शीश नवाज़ा था।

मेरी माँ की सेवा में भले ही,

चाहें ज़िस्म लहू ही बिक जाए।

सज़दे करूँ मैं सौ-सौ बारों,

मेरा इसके बिना संसार कहाँ।।

-सर्वेश कुमार मारुत

सर्वेश कुमार मारुत की अन्य किताबें

1

बसन्त का मौसम

30 जनवरी 2017
0
1
2

बसन्त का मौसम जब आता है, साथ नई खुशियाँ लाता है।देख इसे तब मानव ही क्या , जड़ चेतन को भी लहलहाता है।हुए थे पतझड़ से घायल ये, नई जान सी लाता है।खेत खलिहान हरित हो चले, सारे जग को महकाता है।फ़ूट चुकीं अब कलियाँ,दल पात्र,

2

मैं पानी की बूँद हूँ छोटी

23 फरवरी 2017
0
1
0

मैं पानी की बूँद हूँ छोटी,मैं तेरी प्यास बुझाऊँ।पी लेगा यदि तू मुझको ,मैं तुझको तृप्त कराऊँ।मैं छोटी सी बूँद हूँ,फ़िर क्यों न पहचाने?तू जाने न सही मग़र,किस्मत मेरी ऊपर वाला जाने।मैं पानी की बूँद हूँ छोटी,फ़िर क्यों खोटी मुझको माने?भटकता फ़िर रहा है तू,और क्यों अनजान है तू?तेरी महिमा मैं तो समझूँ न,जाने

3

कैसा खेल यह तूने खेला है

28 फरवरी 2017
0
2
0

कैसा खेल यह तूने खेला है?लगा दिया यहाँ रेला है।छायी हर तरफ उदासी है,और लगा दिया तूने मेला है।हम आँखों में उम्मीद लगाये,ढूँढे ऐसा स्वच्छ बसेरा है।हम सहम रहे मन में हो पाये या न हो पाये,न जाने वह कैसा अगला सवेरा है?कैसा खेल यह तूने खेला है?लगा दिया यहाँ रेला है।जख़्म दिया ऐसा हमको,न जाने छिपा हुआ कौन स

4

नारी

4 मार्च 2017
0
0
0

देखो आती है कैसे?,अपने हाथों में बारी।लड़ने को तैयार हो चुकीं,देखो अब हम सब नारी।जाग गयीं और जाग चुकीं हैं,अपने अत्याचारों को लेकर ,सुलगाई अब यह चिंगारी।अब हम देखें हमारे ऊपर ,कौन आँख उठायेगा?अब हम वो प्रचण्ड ज्वाला हो चलीं,निबटने को अब हर बाज़ी।तुमने हमको कायर समझा,और समझ लिया है अधमारी।बहुत हो चुका

5

मैं तुझमें ही खो जाऊँ

30 मार्च 2017
0
1
0

( 1)तू मुझमें छिपी , मैं तुझमें छिपा।मैं तुझमें ही खो जाऊँ, मैं अपनी प्यास बुझाऊँ।तरसूँ मैं तो तेरे बिन, फिर और कहाँ मैं जाऊँ?तेरे रूप का ऐसा चर्चा, न शब्दों में कह पाऊँ।होंठ रसीले-नयन कटीले, फ़िर मैं कैसे बच पाऊँ?चाल तुम्हारी बड़ी अलबेली, मैं देख वहीं

6

क्यों छू रही हैं यह परछाईयाँ ?

3 अप्रैल 2017
0
1
0

क्यों छू रही हैं यह परछाईयाँ ?,अज़ब हालात में हैं यह तनहाईयाँ।जाने ख़्वाहिशेँ मरी जा रही हैं क्यों?,हिल रहा है यह तन और चल रही पुरवाईयाँ।ग़रदिशे ज़िन्दगी है क्यों? ,और दिलों में क्यों रुसवाईयाँ ?तड़पती अब तो तमन्ना भी है,अब दूर ना हो रही यह बेहरुखियाँ।फ़ना क्यों ज़िन्दगी होती है सबकी ?,फिर क्यों यह रह जाती

7

अब तो मचा है हाहाकार (कविता)

13 जून 2017
0
0
1

अब तो मचा है हाहाकार, वृक्ष बिना बुरा हुआ है हाल।मानव ने यह किया कमाल, ख़ुद को पाएं नहीं सम्हाल।कैसे-कैसे अब किए हैं खेल ?, हाल बुरा है पेलम-पेल।गर्मी ने किया बुरा है हाल, आज ग्लोबल हुआ है लाल।ग्लेशियर पिघले हालम-हाल,

8

वर्षा देखकर हर्षा दिल ( कविता)

14 जून 2017
0
0
0

वर्षा देखकर हर्षा दिल,रिमझिम-रिमझिम-हिलमिल हिल।प्यासी धरा अब हो उठी खिल,बिजली चमकी चिल-चिल-चिल।बच्चे दौड़े हिल मिल हिल,बच्चे गये तब सभी फिसल।मेढ़कों के अब बने महल,और ज़ोर से बोले टिर-टिर-टिर।सभी बोले अब मिलकर,वर्षा गई अब और भी बढ़।वर्षा ऋतु का यही पहर,सब ऋतुओं से है बढ़कर।अकड़े आँगन गली नहर,पानी निकला फर-

9

क़िस्मत( कविता)

16 जून 2017
0
0
0

किस्मत ना तो वरदान है,और ना ही यह फ़रमान है।जो ज़िए इसके सहारे,रास्ते ग़ुमनाम हैं।अनज़ान यूँ छोर हैं,ख्वाहिशों के शोर हैं।हाँकते फ़िरते मग़र वे,समझते की हम नूँर हैं।चल पड़े वे दो डगर,ज़नाब कह दिए की रास्ते तो दूर हैं।जो ज़िए इस ‘मत’ सहारे,वे ज़िन्दगी की धूल हैं।किस्मत का मतलब य

10

प्यारी कोयल (कविता )

21 जून 2017
0
1
1

प्यारी कोयल-प्यारी कोयल, तू इतना प्यारा कैसे गाती है?तू क्या खाती और क्या पीती?, तू मुझको क्यों नहीं बतलाती है?कू-कू ,कू-कू तेरी बोली, मन में मेरे घर कर जाती है।तू अपना तो राज़ बता, फ़िर क्यों नहीं हमराज़ बनाती है?प्रभात हुआ सूरज निकला, और तू मधुर गति से गाती है।तभी पड़े का

11

नभ खुली आँखों से देखे

9 जुलाई 2017
0
1
1

नभ खुली आंखों से देखे, दुःखी दिख रहे हैं सारे। दूषित बसन यह कैसे छाय?, भीड़ लगाए पर सब हारे।शून्य का मन क्यों व्याकुल?, और आंखों में छाय आंसू रे। क्यों अश्रु गिराए ऐसे उसने?, धरा पर टप-टप, टप-टप रे। धरा व्याकुल वि

12

शख्सियत पर शख्सियत को , लुटा कर देख ले?

13 अक्टूबर 2017
0
1
0

शख्सियत पर शख्सियत को , क्यों न लुटा कर देख ले?फ़िर बने रौनक- ए- ज़िंदगी, तेरे लिए मेरे लिए।सोचता क्या फिर रहा तू ?, व्यर्थ कर यहाँ से वहाँ ।मरना है एक दिन सभी को, और फ़िर जाना कहाँ?कुछ साथ है,-कुछ छूट जाते, डगर पर डगर चलते हुए।पर न कर गुरूर खुद पर, साथ चल और हौसला देते हुए।इंसानियत ही इंसानियत हो, और

13

हालात-ए-ज़िन्दगी

18 जून 2018
0
0
0

मिल जाए जो तेरा साथ, हालात-ए ज़िन्दगी में। वरना ज़नाज़े अक्सर यहाँ, हर पल निकलते हैं1 शख़्सियत में जो लोग, सराबोर हैं तेरे। वो हर शख़्स मिलने की, तमन्ना दिल में रखता है।।2 वफ़ा का नाम लेते हो,सफ़ा न मुँह से कहते हो। तुम तो ऐसे वन्दे हो,जो फ़िजूल बदनाम करते हो।।3मर रहे हैं जो

14

हाल-ए-मारुत

19 अप्रैल 2021
0
0
0

उनकी जुदाई की बातें कभी भी छुप नहीं सकती,उनके नाम से ही तो मिरी साँसे उठती औ गिरती हैं।अक़्सर मिरी हर साँस से उनका ही नाम उठता है।कमबख्त क़ल्ब भी मेरा बनठन उछलता है।1क़त्ल कर बैठे वे अपनी निग़ाहों से ए ख़ुदा,अ

15

मस्त-मस्त सी मेरी प्रिय

20 अप्रैल 2021
0
0
0

मस्त-मस्त सी आँखें प्रिय, मस्त-मस्त से होंठ प्रिय।मध्यम-मध्यम धड़कन तेरी,नयन कंटीले विशाल प्रिय।पलकें तेरी विजय पताका, और भौंह तेरा अभिमान प्रिय।मस्त-मस्त से कन्दुक कपोल, अति काली घटा से केश प्रिय।हैं अद्भुत तेरे वक्ष हिमालय, और मध्यम-मध्यम स्वास प्रिय।ग्रीवा तेरी शंख

16

माँ

22 अप्रैल 2021
0
0
0

मैं भूल गया अपने ग़म को,जब माँ ने मुझे पुकारा था।मैं जीत गया सारी दुनिया,मैंने जब-जब शीश नवाज़ा था।मेरी माँ की सेवा में भले ही,चाहें ज़िस्म लहू ही बिक जाए।सज़दे करूँ मैं सौ-सौ बारों,मेरा इसके बिना संसार कहाँ।। -सर्वेश कुमार मारुत

17

न छुपा पाऊँ

23 अप्रैल 2021
0
0
0

न छुपा पाऊँ मिरी मन की तड़पती बेक़रारी,तलब रहती अक़्सर ही सिर्फ़ उनको देखने की। - सर्वेश कुमार मारुत

18

टूटा हाथ औ टूटती चप्पल ( कहानी)

26 अप्रैल 2021
0
0
0

ओए टुन्ना! कहाँ बैठा है?, टुन्ना के पापा चीतू ने आवाज़ लगाई। पर कोई जवाब न आया। फ़िर अंदर कमरे में घुसते हुए, ओए टुन्ना! क्या अभी तक सो रहा है? (कोई होता तो ही जवाब मिलता, पर वहाँ तो कोई न था।) आख़िर कहाँ चला गया? टुन्ना! मैंने उससे कहा

19

जली चितायें

28 अप्रैल 2021
0
0
0

व्याकुल अति कोरोना ने कहर डहाया हुई प्रचण्ड लाल फिजायें, पर मिल न सकी ऑक्सीजन और यहाँ अति जली चितायें ।1जलाने बड़ी देखो होड़ लगी, प्रतिक्षारत में बैठे करके तैयारी। एक ओर जला-जला पूत रे, दूसरी ओर जली-जली महतारी। 2-सर्वेश कुमार मारुत

20

कुकड़ूँ-कूँ( हास्य कविता )

30 अप्रैल 2021
0
0
0

एक पेड़ पर बैठा मुर्ग़ा, कुकडूँ-कूँ कर रहा था।वर्षात होने पर भी, उष्ण गर्मी से मर रहा था।मैंने पूछा अरे!भाई, इतना क्यों कर रहे हो शोर।मुर्गा कुकडूँ-कूँ करते हुए, बोल पड़ा बहुत ज़ोर।ए

21

दस्तूर निभा देना

1 मई 2021
0
0
0

रोक दूँ ग़र साँसें औ टूटती नब्ज़ भी,आख़िरी दस्तूर निभा देना हिलाकर मुझको।-सर्वेश कुमार मारुत

22

बेटी

3 मई 2021
0
0
0

बेटी तो बेटी होती हैं,सृष्टि को तो यही संजोती ।सृष्टि ही जीवन का आधार,बेटी हैं खुशियों का भण्डार।।-सर्वेश कुमार मारुत

23

बारिस

5 मई 2021
0
0
0

टिपटिपाती है बारिस, मानों मेघों में हों छेंद।गड़गड़ाती बिजलियाँ, ध्वनि बहुत है तेज़।तीव्र कभी-कभी हौले, जो बड़ा लगाये जोर।कभी इधर-कभी उधर, मानों लगी हो डोर।मेघ वारि भरकर लाए, और दिया निचोड़।और लाओ और लाओ, ऐसी लगी है होड़।।-सर्वेश कुमार मारुत

24

नारी तू बस नारी नहीं

6 मई 2021
0
0
0

नारी तू बस नारी नहीं, सृष्टि का आधार हो तुम।जीवनदाता भाग्यविधाता, जय हो-जय हो नारी तेरी;तेरे विविध रूप और सत्कार हो तुम।।-सर्वेश कुमार मारुत

25

ख़ुद को बचाना यारों

18 मई 2021
0
0
0

तिस्लिमी दुनिया से ख़ुद को बचाना यारों,क़दम भी आहिस्ते-आहिस्ते चलाना यारों।सोच समझ ले फ़िर चलना इसके दरमियां,ख़ुद को जगा लेना न ख़ुद को सुलाना यारों।मौत का खेल है यहाँ बड़ा ही मुश्किल मंज़र ,ख़ुद को न लिटाना बस ख़ुद को उठाना यारों।कोरोना लिए कफ़न फ़िर रहा तलाशने राही,एहतेराम ख़ूब

---

किताब पढ़िए