ओए टुन्ना!
कहाँ बैठा है?, टुन्ना के पापा चीतू ने आवाज़ लगाई।
पर कोई जवाब न आया।
फ़िर अंदर कमरे में घुसते हुए, ओए टुन्ना! क्या अभी तक सो रहा है?
(कोई होता तो ही जवाब मिलता, पर वहाँ तो कोई न था।)
आख़िर कहाँ चला गया? टुन्ना!
मैंने उससे कहा था कि कल सुबह-सुबह चलेंगे,
दाख़िले के लिए स्कूल में; पर............. !
सिल्लिया सुनती हो, टुन्ना दिखाई नहीं दिया; कहाँ है वो?
सिल्लिया बोली, अरे! अभी कुछ पल ही बिस्तर से उठकर बैठा था, देखो बाहर कहीं होगा।
"यह लड़का भी किसी की नहीं मानता, हमेशा घूमने-फ़िरने की लगी रहती है" चीतू ने कहा।
फ़िर.............!
धड़ाम म म म म म म.................!
टुन्ना बहुत ज़ोर चिल्लाया, "हाय! मम्मी, मर गया। "
पापा मुझे बचाओ!!
अरे टुन्ना!, सिल्लिया चिल्लाई, हाए! मेरा लड़का मर गया।
(वह धरती पर अचेत पड़ा था, नब्ज़ चल रही थी तथा रोंगटे खड़े थे शरीर पर )
सिल्लिया बेटा-बेटा चिल्लाती रही, उसने अपने एकलौते को गोद में भर लिया और सिसकियां भर-भर के रोई।
चीतू भी दौड़ा-दौड़ा आया, हाय! ससुर के नाती....!
ले पड़ गयी कलेजे को ठंडक और न मान........!
सिल्लिया बोली, ऐसी हालत में भी तुम अपना मुँह बंद नहीं कर पाते हो, यहाँ मेरा बच्चा. ...!
"तुमने ही तो ऐसी तैसी कराई है अपनी, उसका ही हमेशा साथ दिया", चीतू बड़ी ज़ोर से चिल्लाया।
सिल्लिया- अब भी चुप नहीं रहा जाता तुमसे!
हाँ, मैं तो चुप ही रहूँगा; चीतू उससे बोला।
सिल्लिया जल्दी से पानी लाई और टुन्ना पर पानी छींटा।
चीतू ने अंदर कमरे में ले जाकर उसे लिटा दिया। टुन्ना को अब धीरे- धीरे होश आया .....
आह!
अह........!
मम्मी, मम्मी, मम्मी.......
सिल्लिया- हाँ बेटा! मैं तेरे ही पास बैठीं हूँ। मम्मी, मुझे पानी दे दो!, टुन्ना बोला।
अच्छा बेटा,
ले पानी पी ले,
टुन्ना ने आधा गिलास पानी पिया!
इसके बाद हल्दी वाला दूध भी पिलाया।
सिल्लिया बोली, "टुन्ना अपने हाथ- पैर चला तो, क्या कहीं दर्द हो रहा है, बोल न"
टुन्ना रोते हुए बोला, "मम्मी मेरा उल्टा हाथ नहीं उठ रहा है और बहुत तेज़ दर्द भी हो रहा है।"
जब उसके पापा ने यह सब सुना तो टुन्ना को गालियाँ देना शुरू कर दी और अपने पैरों की चप्पल निकाल कर उसे ख़ूब उचेला, जब तक चप्पल टूट न गयी!!!
सिल्लिया ने रोकने की बहुत कोशिश की पर खींचा तानी में उसे भी रख दिए!
बेचारे! दोनों माँ- बेटे एक दूसरे से चिपट कर रोने लगे।
टुन्ना बुरी तरह से करहा रहा। टुन्ना का टूटा हाथ और चप्पलों की ठुकाई अब दोनों मिलकर एक हो गए थे, दर्द अलग-अलग थे भले ही उसके लिए ; पर उसका शरीर ही जान सकता था, कि अब क्या हो?
यह क्या हुआ मुझको? टुन्ना मन ही मन सिसकियों से बुदबुदाने लगा।
तभी ज़ोर की आवाज़ आई, बाहर से।
कैसे टूटी टुन्ना?
सभी मोहल्ले वाले अब उसके घर पर आकर पूँछने लगे।
पर टुन्ना क्या कह पाता किसी से, उसका तो पहले से बुरा हाल था। टुन्ना मन में कहने लगा, सब आग में घी डालने आये गए एक साथ।
एक ओर टूटा हाथ.....!
दूसरी ओर चप्पलों से ठुकाई......!
तीसरे यह मोहल्ले वाले और इनकी जली कटी ..........!
लेकिन उसे ही न पता था कि हुआ क्या ?
कैसे हुआ?
किसी को न खबर थी!
फ़िर भी बेचारे ने अपने दिल पर पत्थर रखा और बोला- एक गिल्हरा !
एक गिल्हरा क्या, अब बोल न; चीतू झुलझुलाते हुए बोला।
टुन्ना बोला, " मैं बता तो रहा हूँ। "
फ़िर बोला टुन्ना, " एक गिल्हरा काली पतंग के पीछे। "
फ़िर क्या?, सीधे-सीदे क्यों नहीं बताता? क्यों टुकड़े-टुकड़े में बता रहा है; उसके पापा बोले!
टुन्ना ने कहा, "मुनिया की छत पर लटकी थी और उसे पकड़ने के लिए दीवार पर चढ़ा। "
सिल्लिया बोली इसके बाद क्या हुआ? टुन्ना।
"मम्मी, दीवार पर चढ़ते वक़्त ईंट निकल गयी और मैं..........!" दबे मन से बोला टुन्ना।
उल्टा हाथ टूट गया, अब टुन्ना दूसरे हाथ से अपना टूटा हाथ पकड़े हुए खड़ा रहा भीगी बिल्ली की तरह।
-सर्वेश कुमार मारुत