जो रूठे थे उन्हें फिर से , मनाने चल दिए है हम ।
शहर उजड़ा हुआ फिर से , बसाने चल दिए है हम ।।
मेरे महबूब का चेहरा , भी इक दिन मुस्कुराएगा ,,
चलेगा जिस सफर पर ,खूबसूरत हो ही जायेगा ,,
सफ़र में उनकी अब दरीयां , बिछाने चल दिए है हम ।।
शहर उजड़ा हुआ ..........
नही है जिंदगी का कुछ , ठिकाना ए मेरे हम दम,,
दिए थे घाव जो मैने , मिला तुझको नहीं मरहम ,,
तेरे घावों पे अब मरहम , लगाने चल दिए है हम ।।
शहर उजड़ा हुआ ...........
मुकद्दर ने मुझे समझा , भटकता सा कोई चेहरा ,
गुजरती जिंदगी में मैं , नही इक पल कही ठहरा,,
नई फिर से कोई दुनिया , सजाने चल दिए है हम ।।
शहर उजड़ा हुआ ............
तेरे हांथो की वो लाली , मेरे कारण से उतरी थी ,
जमाने भर के तानों को , सुना सुन कर के गुजरी थी ,,
बिक्की मेहँदी तेरे हाथों , रचाने चल दिए है हम ||
शहर उजड़ा हुआ .............
अभिषेक मिश्र (बिक्की)
तरौली मुबारक पुर
अम्बेडकर नगर