**शिव और शंकर में अंतर** शिव जी को "देवों के देव महादेव" कहा जाता है। उन्हें हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण देवता माना जाता है जिनकी पूजा विभिन्न रूपों में की जाती है। उन्हें वैष्णव, शैव और शाक्त पंथों में भी माना जाता है। शिव जी का अर्थ होता है "शुद्ध" या "अचल" और उन्हें संसार के सर्वोच्च भगवान में से एक माना जाता है। शिव भगवान हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण देवता हैं जो परम ब्रह्म का एक रूप हैं। वे सृष्टि, स्थिति और संहार के देवता होते हैं। शिव को त्रिमूर्ति में से एक माना जाता है जिसमें वे ब्रह्मा और विष्णु के साथ संसार की निर्माण, स्थिति और संहार का नियंत्रण करते हैं। शिव का ध्यान और पूजा हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण होता है। शिव के अनेक नाम होते हैं जैसे महादेव, शंकर, नीलकंठ, महाकाल आदि। शिव की पूजा करने के लिए बिल्व पत्र, जल, धातु आदि के उपयोग से शिवलिंग का पूजन किया जाता है। शिवजी के ध्यान में मन लगाने से मानसिक शांति और स्थिरता मिलती है। शंकर भगवान हिंदू धर्म में एक महान संत, ज्ञानी और आचार्य थे। वे आदि शंकराचार्य नाम से भी जाने जाते हैं। शंकराचार्य को हिंदू धर्म में एक महान आचार्य और ज्ञानी के रूप में माना जाता है, जिन्होंने वेदान्त के सिद्धांतों को समझाया और वेदों के वास्तविक अर्थ को स्पष्ट किया। शंकर जी ने अपने जीवन के दौरान भारत के विभिन्न भागों में धर्म की शिक्षा दी और लोगों को वेदान्त के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को समझाया। वे देवी और देवताओं के पूजन का महत्व भी समझाते थे। शंकराचार्य ने भारतीय संस्कृति और धर्म को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी भाषा साहित्य और दर्शन संस्कृति के विकास में महत्वपूर्ण योगदान है। शिव और शंकर दोनों ही हिंदू धर्म के देवताओं में से एक हैं, लेकिन शिव और शंकर में कुछ अंतर होता है। शिव हिंदू धर्म के महादेव होते हैं, जो जीवन के संचालन के लिए जाना जाता है। वे सृष्टि के देवता माने जाते हैं, जो संसार के सभी चीजों के निर्माण और संरक्षण के लिए जिम्मेदार होते हैं। शिव अपने त्रिशूल और नाग-फण के साथ विराजमान होते हैं, जो उनके विशिष्ट पहचान होते हैं। दूसरी ओर, शंकर एक विशिष्ट रूप से शिव हैं, जिन्हें 'शंकर' के नाम से भी जाना जाता है। शंकर ज्ञान के देवता होते हैं और वे अद्वैत वेदांत के संस्थापक माने जाते हैं। वे ज्ञान के लिए पूजे जाते
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